कभी सुनाती लोरियाँ, कभी मचातीं शोर,
जीवन सागर साधता, इन लहरों का जोर।
कटुक वचन अरु क्रोध में, चोली दामन संग,
एक बढ़े दूसर बढ़े, दोनों का इक रंग।
साथ न दे जो कष्ट में, दुश्मन उसकों जान,
दूरी उससे उचित है, मन में लो यह ठान।
द्वेषी मानुष आपनो, कहे न मन की बात,
केवल पर के हृदय में, पहुँचाए आघात।
ज्यों मिजरब की चोट से, गूँजे तार सितार,
तैसे नेहाघात से, हृदय ध्वनित सुविचार।
जो मनुष्य कर ना सके, नारी का सम्मान,
दया क्षमा अरु नेह का, नहीं पात्र वह जान।
मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।
-महेंद्र वर्मा
आदरणीय भाई महेंद्र जी बहुत ही सुंदर सामयिक दोहे बधाई
ReplyDeleteअच्छे और सार्थक दोहे हैं।
ReplyDeleteदोहे सामयिक हैं पर आदर्श स्थिति के लिए ही मुफ़ीद हैं !
ReplyDeleteजो मनुष्य कर ना सके, नारी का सम्मान,
ReplyDeleteदया क्षमा अरु नेह का, नहीं पात्र वह जान।
सारे दोहे काफ़ी अर्थवान। सटीक और सार्थक।
सारे दोहे सार्थक सीख देते हुए ...
ReplyDeleteवाह! बढ़िया दोहे।
ReplyDeleteसंदेशप्रद दोहे
ReplyDeleteगांठ बांधने योग्य सार्थक दोहे, आभार ........
ReplyDeleteमान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
ReplyDeleteसद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।...
---सुंदर सार्थक दोहे...बधाई
सुंदर दोहे. आपके दोहों में नीति का सागर हिलोरें ले रहा है.
ReplyDelete“सत्य, बराबर सत्य है, हर दोहों की बात.
ReplyDeleteजैसे हरकर रात को, आये नित्य प्रभात”
सार्थक, शिक्षाप्रद दोहे हैं भईया....
सादर....
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 26-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteदोहों के माध्यम से जीवन मूल्यों को बखानती यह पोस्ट संग्रहणीय है। खास कर क्रोध-कटुक वचन, मिजरब और नारी महत्ता वाले दोहे अद्भुत लगे।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी दोहे ! हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteसभी दोहे एक से बढ़कर एक. पढ़कर मज़ा आ गया.
ReplyDeleteमुग्ध हो जाता हूँ यहाँ आकर, आपकी गज़लें हों, दोहे हों या संतों की वाणी!! कुछ कहना है इसलिए कहना होता है, वरना सब कहा छोटा लगता है!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , सार्थक रचना , सार्थक तथा प्रभावी भावाभिव्यक्ति , ब धाई
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देते बहुत सुन्दर दोहे...आभार
ReplyDeleteप्रस्तुति स्तुतनीय है, भावों को परनाम |
ReplyDeleteमातु शारदे की कृपा, बनी रहे अविराम ||
बहुत ही शिक्षाप्रद दोहे।
ReplyDeleteमहेंद्र वर्मा जी के दोहे और नवगीत संस्कृति के तमाम रंगों से संसिक्त रहतें हैं .प्रकृति के रंग और तमाम उपादान उनकी रचना में माँ के आँचल से सुकून देते हैं .
ReplyDeleteहर एक दोहा अर्थपूर्ण और अनुकरणीय ....
ReplyDeleteगुणीजनों की अनुकरणीय बातें.
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देते अर्थपूर्ण और अनुकरणीय दोहे ...आभार
ReplyDeleteचाहे दोहा हो, या फिर गजल, आप जो भी लिखते हो कमाल लिखते हो।
ReplyDelete------
मनुष्य के लिए खतरा।
...खींच लो जुबान उसकी।
kamal ka leakhan.....sari bate shikshaprad va amal yogya hai
ReplyDeleteजो मनुष्य कर ना सके, नारी का सम्मान,
ReplyDeleteदया क्षमा अरु नेह का, नहीं पात्र वह जान।
सार्थक सन्देश देते, दोहे
सुन्दर और मनन योग्य दोहे, आभार!
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे और अच्छा सन्देश देते हुए . बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन दोहे , अंतिम दोहा तो लाज़वाब लगा ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके दोहे पढकर, मैं पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ ... आगे भी नियमित रहूँगा.
ReplyDeleteMy Blogs:
Life is just a Life
My Clicks...
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वाह , हर दोहा अर्थप्रद. आभार .
ReplyDeleteसुन्दर दोहे आपके, ज्यों कबिरा के रंग.
ReplyDeleteइसी तरह साधे रहें, हर पल नई उमंग.
हर इक दोहे में दिखे, अनुभव का संसार
वर्माजी की भावना, देती नव उपहार...
बधाई.
सभी दोहे बहुत सुन्दर है! एक से बढ़कर एक! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
ReplyDeleteसद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।
... बेहतरीन प्रस्तुती.... बधाई.
Mahendra verma ji....bahut hi achche lage ye dohe...mai inhe facebook par share kar raha hoon...
ReplyDeleteसाहित्य और संगीत मेरी ज्ञानेन्द्रियां हैं, इन्हीं के द्वारा मैं दुनिया को देखता और महसूस करता हूं.........
ReplyDeleteaapki rachnao se ham sabhi ko aisa hi pratit hota hai....aapki rachna aur aap dono apne dhang se hi is khubsoorat duniya ko dekhte hai...
प्रत्येक दोहा सुखी जीवन का एक मंत्र है.
ReplyDeleteश्रद्धा से नतमस्तक हूँ आपके आगे।
ReplyDeleteसाथ न दे जो कष्ट में, दुश्मन उसकों जान,
ReplyDeleteदूरी उससे उचित है, मन में लो यह ठान।
बहुत सुन्दर सीख देते दोहे ! हरेक दोहा सुन्दर जीवन का मंत्र है !
इन कमाल के दोहों के लिए ढेरों बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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ReplyDeleteदोहे बहुत सुंदर हैं … आभार और बधाई !
मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
ReplyDeleteसद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।
काबिले तारीफ । मेरी कविता 'मौन समर्थन' पर आपने गलत टिप्पणी दिया है । आपने नासवा जी को धन्यवाद दिया है जबकि यह मेरी कविता है । कृपया एक और टिप्पणी देकर संशोधन करें । धन्यवाद ।
अमूल्य वचन...स्तुत्य ग्रहणीय....
ReplyDeleteकाव्य सौन्दर्य की तो बात ही क्या कहूँ....
अद्वितीय...
गुनिजन का कहा मनन करने योग्य ही होता है ..आपका भी है.अच्छी लगी ..
ReplyDeleteजो मनुष्य कर ना सके, नारी का सम्मान,
ReplyDeleteदया क्षमा अरु नेह का, नहीं पात्र वह जान।
मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।
sabhi dohe laajabaab ek se badhkar ek hain.
bahut bahut badhiya dohe....
ReplyDeletebahoot khoob
ReplyDeleteद्वेषी मानुष आपनो, कहे न मन की बात,
केवल पर के हृदय में, पहुँचाए आघात।