दोहे : गूँजे तार सितार


कभी सुनाती लोरियाँ, कभी मचातीं शोर,
जीवन सागर साधता, इन लहरों का जोर।


कटुक वचन अरु क्रोध में, चोली दामन संग,
एक बढ़े दूसर बढ़े, दोनों का इक रंग।


साथ न दे जो कष्ट में, दुश्मन उसकों जान,
दूरी उससे उचित है, मन में लो यह ठान।


 द्वेषी मानुष आपनो, कहे न मन की बात,
केवल पर के हृदय में, पहुँचाए आघात।


ज्यों मिजरब की चोट से, गूँजे तार सितार,
तैसे नेहाघात से, हृदय ध्वनित सुविचार।


जो मनुष्य कर ना सके, नारी का सम्मान,
दया क्षमा अरु नेह का, नहीं पात्र वह जान।


मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।


                                                                            -महेंद्र वर्मा

49 comments:

  1. आदरणीय भाई महेंद्र जी बहुत ही सुंदर सामयिक दोहे बधाई

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  2. अच्‍छे और सार्थक दोहे हैं।

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  3. दोहे सामयिक हैं पर आदर्श स्थिति के लिए ही मुफ़ीद हैं !

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  4. जो मनुष्य कर ना सके, नारी का सम्मान,
    दया क्षमा अरु नेह का, नहीं पात्र वह जान।
    सारे दोहे काफ़ी अर्थवान। सटीक और सार्थक।

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  5. सारे दोहे सार्थक सीख देते हुए ...

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  6. गांठ बांधने योग्य सार्थक दोहे, आभार ........

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  7. मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
    सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।...

    ---सुंदर सार्थक दोहे...बधाई

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  8. सुंदर दोहे. आपके दोहों में नीति का सागर हिलोरें ले रहा है.

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  9. “सत्य, बराबर सत्य है, हर दोहों की बात.
    जैसे हरकर रात को, आये नित्य प्रभात”

    सार्थक, शिक्षाप्रद दोहे हैं भईया....
    सादर....

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  10. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 26-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  11. दोहों के माध्यम से जीवन मूल्यों को बखानती यह पोस्ट संग्रहणीय है। खास कर क्रोध-कटुक वचन, मिजरब और नारी महत्ता वाले दोहे अद्भुत लगे।

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  12. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी दोहे ! हार्दिक शुभकामनायें !

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  13. सभी दोहे एक से बढ़कर एक. पढ़कर मज़ा आ गया.

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  14. मुग्ध हो जाता हूँ यहाँ आकर, आपकी गज़लें हों, दोहे हों या संतों की वाणी!! कुछ कहना है इसलिए कहना होता है, वरना सब कहा छोटा लगता है!!

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  15. बहुत सुन्दर , सार्थक रचना , सार्थक तथा प्रभावी भावाभिव्यक्ति , ब धाई

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  16. सार्थक सन्देश देते बहुत सुन्दर दोहे...आभार

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  17. प्रस्तुति स्तुतनीय है, भावों को परनाम |
    मातु शारदे की कृपा, बनी रहे अविराम ||

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  18. बहुत ही शिक्षाप्रद दोहे।

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  19. महेंद्र वर्मा जी के दोहे और नवगीत संस्कृति के तमाम रंगों से संसिक्त रहतें हैं .प्रकृति के रंग और तमाम उपादान उनकी रचना में माँ के आँचल से सुकून देते हैं .

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  20. हर एक दोहा अर्थपूर्ण और अनुकरणीय ....

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  21. गुणीजनों की अनुकरणीय बातें.

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  22. सार्थक सन्देश देते अर्थपूर्ण और अनुकरणीय दोहे ...आभार

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  23. चाहे दोहा हो, या फिर गजल, आप जो भी लिखते हो कमाल लिखते हो।

    ------
    मनुष्‍य के लिए खतरा।
    ...खींच लो जुबान उसकी।

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  24. kamal ka leakhan.....sari bate shikshaprad va amal yogya hai

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  25. जो मनुष्य कर ना सके, नारी का सम्मान,
    दया क्षमा अरु नेह का, नहीं पात्र वह जान।

    सार्थक सन्देश देते, दोहे

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  26. सुन्दर और मनन योग्य दोहे, आभार!

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  27. बहुत सुंदर दोहे और अच्छा सन्देश देते हुए . बधाई.

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  28. बेहतरीन दोहे , अंतिम दोहा तो लाज़वाब लगा ।

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  29. बहुत अच्छा लगा आपके दोहे पढकर, मैं पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ ... आगे भी नियमित रहूँगा.
    My Blogs:
    Life is just a Life
    My Clicks...
    .

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  30. वाह , हर दोहा अर्थप्रद. आभार .

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  31. सुन्दर दोहे आपके, ज्यों कबिरा के रंग.
    इसी तरह साधे रहें, हर पल नई उमंग.
    हर इक दोहे में दिखे, अनुभव का संसार
    वर्माजी की भावना, देती नव उपहार...
    बधाई.

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  32. सभी दोहे बहुत सुन्दर है! एक से बढ़कर एक! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  33. मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
    सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।
    ... बेहतरीन प्रस्तुती.... बधाई.

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  34. Mahendra verma ji....bahut hi achche lage ye dohe...mai inhe facebook par share kar raha hoon...

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  35. साहित्य और संगीत मेरी ज्ञानेन्द्रियां हैं, इन्हीं के द्वारा मैं दुनिया को देखता और महसूस करता हूं.........
    aapki rachnao se ham sabhi ko aisa hi pratit hota hai....aapki rachna aur aap dono apne dhang se hi is khubsoorat duniya ko dekhte hai...

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  36. प्रत्येक दोहा सुखी जीवन का एक मंत्र है.

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  37. श्रद्धा से नतमस्तक हूँ आपके आगे।

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  38. साथ न दे जो कष्ट में, दुश्मन उसकों जान,
    दूरी उससे उचित है, मन में लो यह ठान।

    बहुत सुन्दर सीख देते दोहे ! हरेक दोहा सुन्दर जीवन का मंत्र है !

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  39. इन कमाल के दोहों के लिए ढेरों बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  40. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  41. .



    दोहे बहुत सुंदर हैं … आभार और बधाई !

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  42. मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
    सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।

    काबिले तारीफ । मेरी कविता 'मौन समर्थन' पर आपने गलत टिप्पणी दिया है । आपने नासवा जी को धन्यवाद दिया है जबकि यह मेरी कविता है । कृपया एक और टिप्पणी देकर संशोधन करें । धन्यवाद ।

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  43. अमूल्य वचन...स्तुत्य ग्रहणीय....
    काव्य सौन्दर्य की तो बात ही क्या कहूँ....
    अद्वितीय...

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  44. गुनिजन का कहा मनन करने योग्य ही होता है ..आपका भी है.अच्छी लगी ..

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  45. जो मनुष्य कर ना सके, नारी का सम्मान,
    दया क्षमा अरु नेह का, नहीं पात्र वह जान।


    मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
    सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि-कहि जाहिं।
    sabhi dohe laajabaab ek se badhkar ek hain.

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  46. bahut bahut badhiya dohe....

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  47. bahoot khoob

    द्वेषी मानुष आपनो, कहे न मन की बात,
    केवल पर के हृदय में, पहुँचाए आघात।

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