दो कविताएँ


एक

उस दिन
आईने में मेरा प्रतिबिंब
कुछ ज्यादा ही अपना-सा लगा
मैंने उससे कहा-
तुम ही हो 
मेरे सुख-दुख के साथी
मेरे अंतरंग मित्र !
प्रतिबिंब के उत्तर ने 
मुझे अवाक् कर दिया
उसने कहा-
तुम भ्रम में हो
मैं ही तो हूँ 
तुम्हारा
सबसे बड़ा शत्रु भी !

दो

इंसान को 
इंसान ही रहने दो न
क्यूँ उकसाते हो उसे
बनने के लिए
भगवान या शैतान
अरे, धर्म !
अरी, राजनीति !

                                      -महेन्द्र वर्मा

38 comments:

  1. सटीक बात कही है दोनों रचनाओं में ...

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  2. सही कहा आपने इन्सान को इन्सान ही रहने दो दोनों कवितायेँ बहुत सुंदर अच्छी लगी

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक सन्देश देती हुई रचनाएँ ..

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  4. एक - बिल्कुल सही कहा आपने, आईना सदा सच बोलता है मगर हम भ्रम में रहते हैं.
    दो - बहुत सटीक बात कही.

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  5. दूसरी रचना राह्जनीति पर करारा व्यंग्य है।
    पहली रचना एक यथार्थ है। खुद के प्रतिबिम्ब से परिचय या मुलाक़ात हो जाए तो वह तो शत्रु लगेगा ही।

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  6. दोनो ही रचनाये बेहद गहन और सटीक्।

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  7. इंसानी पक्ष को ख़ूबसूरती से पेश करती कवितायेँ!

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  8. बहुत सटीक और सार्थक सन्देश लिए कवितायेँ......

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  9. धर्म और राजनीति सबसे पहले इंसानियत का शिकार करते हैं. अपना प्रतिबिंब अपनी ही दृष्टि में मित्र और शत्रु होता है. बहुत खूब कहा है वर्मा जी.

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  10. छाई चर्चामंच पर, प्रस्तुति यह उत्कृष्ट |
    सोमवार को बाचिये, पलटे आकर पृष्ट ||

    charchamanch.blogspot.com

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  11. दोनों कवितायें अति अर्थ पूर्ण आधुनिक बिम्ब विधान समेटे .

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  12. मैं ही तो हूँ
    तुम्हारा
    सबसे बड़ा शत्रु भी !

    वाह वाह सर... कितने पते की बात कही है....
    दोनों ही क्षणिकाएं अद्भुत है...
    सादर बधाई....

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  13. अच्छी पोस्ट आभार ! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

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  14. इंसान को
    इंसान ही रहने दो न
    क्यूँ उकसाते हो उसे
    बनने के लिए
    भगवान या शैतान
    अरे, धर्म !
    अरी, राजनीति !

    साधु-साधु

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  15. dono rachnayen bahut badhia ...
    sateek baat kahati hui ....

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  16. बढ़िया लिखा है.दोनों रचना बहुत अच्छी लगी. प्रभावी..

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  17. bahut khoob ....

    Mahendr ji apni 10,12 kshnikayein sakshipt parichay aur tasveer bhej dein mujhe saraswati-suman ke liye .....

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  18. पहली कविता में छिपा है आईने का सच और दूसरे में जीवन का सच... एक बार दोनों कविताओं का मर्म समझ में आ जाए तो जीवन के प्रति दृष्टिकोण ही बदल जाए!!

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  19. दोनों ही सुंदर कवितायें !

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  20. आईने पर की कविता वाक़ई अचंभित कर गई। और दूसरी का 'अरे धर्म - अरी राजनीति' वाक्यांश अपने आप में एक सम्पूर्ण पुस्तक है। बधाई वर्मा जी।

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  21. तुम भ्रम में हो
    मैं ही तो हूँ
    तुम्हारा
    सबसे बड़ा शत्रु भी !...

    सच है अभिमान के रूप में यही तो होता है हमारा शत्रु

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  22. आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    बहुत प्रभावशाली कविताएं हैं
    आत्म-साक्षात् कराती यह रचना चमत्कृत करती है , जब आईने में से प्रतिबिंब उत्तर देता है -
    तुम भ्रम में हो
    मैं ही तो हूं
    तुम्हारा
    सबसे बड़ा शत्रु भी !



    …और इस अधिकार के साथ एक ईमानदार ही राजनीति को फटकार सकता है -
    इंसान को
    इंसान ही रहने दो न
    क्यूं उकसाते हो उसे
    बनने के लिए
    भगवान या शैतान
    अरे, धर्म !
    अरी, राजनीति !

    आपके यहां बहुत संतुष्टि मिलती है … रचना भले ही छंदबद्ध हो चाहे छदमुक्त ।


    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  23. इंसान को
    इंसान ही रहने दो न
    क्यूँ उकसाते हो उसे
    बनने के लिए
    भगवान या शैतान
    अरे, धर्म !
    अरी, राजनीति !

    bahut sundar..
    insaan yadi insaan hi ban jaaye to bahut hai.

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  24. महेन्द्र जी नमस्कार, सुन्दर अभिव्यक्ति ।

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  25. इंसान को
    इंसान ही रहने दो न
    क्यूं उकसाते हो उसे
    बनने के लिए
    भगवान या शैतान.gahan abhivaykti.

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  26. जब तक इंसान रहेगा ये राजनीति उसे बाँट कर ही रहेगी ...

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  27. प्रतिबिम्ब के बेबाक उत्तर ने अचंभित कर दिया और इस रचना में छिपे आपके चिंतन ने आवाक !
    अति सुन्दर !

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  28. बेहतरीन लिखा है,

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  29. बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  30. बहुत सुन्दर और रोचक अभिव्यक्ति ।

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  31. अरे, धर्म !
    अरी, राजनीति !

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  32. बहूत ही अच्छे और सार्थक दोहे है...

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