गीतिका : दिन



सूरज का हरकारा दिन,
फिरता मारा-मारा दिन।


कहा सुबह ने हँस लो थोड़ा, 
फिर रोना है सारा दिन।


जिनकी किस्मत में अँधियारा,
तब क्या बने सहारा दिन।


इतराता आया पर लौटा, 
थका-थका सा हारा दिन।


रात-रात भर गायब रहता,
जाने कहाँ कुँवारा दिन।


मेरे ग़म को वह क्या समझे,
तारों का हत्यारा दिन।

                                                -महेन्द्र वर्मा

35 comments:

  1. एकदम नए मूड की ग़ज़ल है. इन पंक्तियों में जीवन संघर्ष बहुत अच्छा बन आया है-

    इतराता आया पर लौटा,
    थका-थका सा हारा दिन।

    बहुत खूब महेंद्र जी.

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  2. मेरे ग़म को वह क्या समझे,
    तारों का हत्यारा दिन।
    बहुत खूब!

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  3. इतराता आया पर लौटा,
    थका-थका सा हारा दिन।

    बहुत ही सुंदर.....

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  4. जिनकी किस्मत में अँधियारा,
    तब क्या बने सहारा दिन।


    इतराता आया पर लौटा,
    थका-थका सा हारा दिन।............तारों का हत्यारा दिन।
    बहुत खूब!

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  5. जो चाहे कल की रो-धो ले,
    हमको आज का प्‍यारा दिन.

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  6. जिनकी किस्मत में अँधियारा,
    तब क्या बने सहारा दिन।


    इतराता आया पर लौटा,
    थका-थका सा हारा दिन।


    सार्थक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.

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  7. आज तो दिन को ही लपेट लिया? लोग तो रातों को लपेटते हैं।

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..अजीत जी की टिप्पणी पढ़ कर हंसी आ गयी :)

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  9. वाह कितने खूबसूरत भाव संजोये हैं।

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  10. बहुत सुन्दर गीतिका... वाकई दिन तारों का हत्यारा होता है... नए विम्ब हैं कविता में..

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  11. रात-रात भर गायब रेहता
    जाने कहाँ वो कूवानरा दिन
    मेरे ग़म को वो क्या समझे
    तारों का हत्यारा दिन....
    वाह बहुत खूब लिखा है आपने भूषण जी की बात से सहमत हूँ एक अलग ही मूड की गजल लिखी है आपने ....
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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

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  14. मेरे गम को वह क्‍या समझे, तारों का हत्‍यारा दिन। बढि़या शेर।

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  15. जिनकी किस्मत में अँधियारा,
    तब क्या बने सहारा दिन।

    एक से बढ़कर एक शेर ...

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  16. इतराता आया पर लौटा,
    थका-थका सा हारा दिन।
    वाह वाह आदरणीय महेंद्र सर... आनंद आगया...
    सादर बधाई...

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  17. वर्मा साहब,
    आनंद आता है, आपकी हर पोस्ट में..

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  18. रात-रात भर गायब रहता,
    जाने कहाँ कुँवारा दिन।
    कितना सुन्दर बिम्ब प्रयोग है इस ग़ज़ल / गीतिका में।

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  19. बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

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  20. इतराता आया पर लौटा,
    थका-थका सा हारा दिन।


    रात-रात भर गायब रहता,
    जाने कहाँ कुँवारा दिन।

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  21. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  22. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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  23. क्या खूब मानवीकरण किया है दिन का गीतिका में ,हरकारा भी कुंवारा भी ,हत्यारा भी सारे आधुनिक सरोकार ज़िन्दगी के दिन के सिर कर दिए .खूब निर्वाह किया है आज की रवानी का जिंदगानी का .

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  24. दिन की बेचारगी को पहली बार समझा...अद्भुत अभिव्यक्ति..

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  25. दिन पर केन्द्रित गीतिका
    बहुत प्रभाव शाली बन पड़ी है
    बधाई .

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  26. बढ़िया लिखा है .लाजवाब .

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  27. मेरे ग़म को वह क्या समझे,
    तारों का हत्यारा दिन।.लाजवाब.

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  28. महेंद्र जी, बहुत देर से हासिलेगज़ल शेर चुनने की कोशिश कर रहा हूँ मगर हर शेर दूसरे पर सवा शेर है,पूरी की पूरी गज़ल ही मन की गहराई में उतर गई है.सारी निगाहें दिन को ही काम करती हैं मगर दिन पर गहरी निगाह डाली गई हो ,ऐसा पहली बार ही देखा है.बधाई.

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  29. रात-रात भर गायब रहता,
    जाने कहाँ कुँवारा दिन।

    .....बहुत खूब ! हर पंक्ति लाज़वाब..

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  30. नए बिम्ब को समेटती सुंदर रचना,...
    नये पोस्ट -प्रतिस्पर्धा-में आपका इंतजार है

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  31. मेरे ग़म को वह क्या समझे,
    तारों का हत्यारा दिन।

    उफ़! तारों का हत्यारा दिन.
    कहते हैं तारे छिप जाते हैं दिन में,
    फिर प्रकट हो जाते हैं रात में.

    आपकी रचना भाव और शब्दों के
    सुन्दर संयोजन से उत्कृष्ट बन गई है.

    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,महेंद्र जी.

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  32. बहुत सुन्दर गीतिका ..वर्माजी !

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  33. इतराता आया पर लौटा,
    थका-थका सा हारा दिन। ...

    वाह ... बुत ही जबरदस्त भाव लिए है ये शेर ... कमाल की रचना ...

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  34. मेरे ग़म को वह क्या समझे,
    तारों का हत्यारा दिन।

    Vah ...bahut khoob...abhar.

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