सपना

ना सच है ना झूठा है,
जीवन केवल सपना है।

कुछ सोए कुछ जाग रहे,
अपनी-अपनी दुनिया है।

सत्य बसा अंतस्तल में,
बाहर मात्र छलावा है।

दुख ना हो तो जीवन में,
सूनापन सा लगता है।

मुट्ठी खोलो देख जरा,
क्या खोया क्या पाया है।

गर विवेक तुममें नहीं,
मानव क्यूं कहलाता है।

प्रेम कहीं देखा तुमने,
कहते हैं परमात्मा है।
                                  
                        -महेन्द्र वर्मा

46 comments:

  1. गर विवेक तुममें नहीं,
    मानव क्यूं कहलाता है।

    प्रेम कहीं देखा तुमने,
    कहते हैं परमात्मा है।... गहन , जिसे लोग समझना नहीं चाहते

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  2. प्रेम कहीं देका तुमने
    कहते हैं परमात्मा है ।
    सत्य वचन । जीवन माया है और प्रेम ही परमेशवर ।

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  3. "दुख ना हो तो जीवन में,
    सूनापन सा लगता है।"
    सुन्दर अभिव्यक्ति. आभार.

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  4. kewal naam bhar lete hein
    jo kahaa parmaatmaa ne
    use karte naheen hein

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  5. सत्य बसा अंतस्तल में,
    बाहर मात्र छलावा है।
    Verma ji gahan darshan ko sametati hui panktiyon ko naman hai .....apko bahut bahut badhai.

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  6. बेहद गहन रचना...
    बधाई.

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  7. बेहतरीन रचना ………शानदार्।

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  8. गर विवेक तुममें नहीं,
    मानव क्यूं कहलाता है।

    बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  9. बेहतरीन काव्य रचना की है आपने बधाई

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  10. और परमात्मा कण-कण में हैं..प्रेम में ही जो दिखते हैं ..अत्यंत सुन्दर ..

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  11. ना सच है ना झूठा है,
    जीवन केवल सपना है।

    कुछ सोए कुछ जाग रहे,
    अपनी-अपनी दुनिया है।

    सत्य बसा अंतस्तल में,
    बाहर मात्र छलावा है।

    दुख ना हो तो जीवन में,
    सूनापन सा लगता है।
    गीतिका का हर आबंध सुनदर है मनोहर भाव लिए है .जीवन की हर सांस सा सुवासित और भासित .

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  12. सत्य बसा अंतस्तल में,
    बाहर मात्र छलावा है।

    सत्य को कहती अच्छी रचना

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  13. क्या खोया क्या पाया हैं
    इसी के मोह में कुछ
    हाथ कभी नहीं
    आया हैं ,
    खाली हाथ आए थे
    खाली ही जायंगे
    कुछ अपनी यादे बस पीछे
    छोड़ जायंगे ....अनु

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  14. दुख ना हो तो जीवन में,
    सूनापन सा लगता है।
    सच!
    हर पंक्ति सत्य को बड़ी सुन्दरता से उद्घाटित कर रही है!
    सादर!

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  15. आज तो आध्यात्म के शिखर पर ले गए आप!! कितनी सादगी और कितनी गहराई!! बहुत सुन्दर!!

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  16. प्रेम कहीं देखा तुमने,
    कहते हैं परमात्मा है।

    बहुत सुन्दर भाव हैं.
    प्रेम में ही परमात्मा है.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,महेंद्र जी.

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  17. सही है ...जहाँ प्रेम है वहीँ परमात्मा निवास करते हैं ,शानदार और प्रभावी प्रस्तुति

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  18. सत्य बसा अंतस्तल में,
    बाहर मात्र छलावा है।
    bahut sunder ....

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  19. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना!

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  20. गर विवेक तुममें नहीं,
    मानव क्यूं कहलाता है।

    प्रेम कहीं देखा तुमने,
    कहते हैं परमात्मा है।

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!!

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  21. बहुत प्यारी ग़ज़ल है.

    मुट्ठी खोलो देख जरा,
    क्या खोया क्या पाया है।

    खोने-पाने का हिसाब अपनी मुट्ठी में ही रखा होता है. जीवन जीने के बाद का मूल्यांकन करके मनुष्य को संतोष मिलता है. बहुत बढ़िया महेंद्र जी.

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  22. बहुत बेहतरीन प्रस्‍तुति| धन्यवाद।

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  23. ना सच है ना झूठा है,
    जीवन केवल सपना है।

    लेकिन जीवन जीने के लिये
    मनुष्य को सपने चाहिए बिना
    सपनों के जीवित् रहना मुश्किल है !
    हर पंक्ति अच्छी लगी .....

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  24. बहुत ही गहन रचना...
    बधाई.

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  25. सुंदर दर्शन..उम्दा भाव।
    लय का टूटना कहीं कहीं खलता भी है। जैसे..मुट्ठी खोलो देख जरा।

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  26. सुंदर दर्शन..उम्दा भाव।
    लय का टूटना कहीं कहीं खलता भी है। जैसे..मुट्ठी खोलो देख जरा।

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  27. अंतस्थल के सत्य से मुंह चुराते हैं, और सत्य की खोज में निकल जाते हैं।

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  28. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति

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  29. बहुत बढ़िया

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  30. .


    सत्य बसा अंतस्तल में,
    बाहर मात्र छलावा है।

    दुख ना हो तो जीवन में,
    सूनापन सा लगता है।

    क्या बात है ! बहुत शानदार !

    महेन्द्र वर्मा जी ,

    बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने …
    आभार और बधाई !

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  31. बड़ी सादगी से सारी बातें आपने कह दीं.
    सभी शेर अच्छे.

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  32. जीवन की अनुभूति.. इसी को तो ज्ञान कहते हैं।

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  33. बहुत ही सुन्दर... खुबसूरत अशार हैं आदरणीय महेंद्र भईया...
    सादर बधाई...

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  34. परम सत्य... जीवन एक सपना और प्रेम ईश्वर का दूसरा नाम...
    सुन्दर रचना... आभार

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  35. सत्य बसा अंतस्तल में,
    बाहर मात्र छलावा है।

    .....बहुत सारगर्भित और सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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  36. मनोहर भाव लिए है सत्य इतनी शालीनता और सुन्दरता से चित्रित किया

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  37. सत्य बसा अंतस्तल में,
    बाहर मात्र छलावा है।वाह बडी गहन अभिव्यक्ति ।

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  38. आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन का आभार ...

    ।। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।।

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  39. सत्य बसा अंतस्तल में,
    बाहर मात्र छलावा है।

    महेंद्र जी, बहुत सुंदर नन्हीं-2 पंक्तियों में भाव पिरोये हैं.शैली में नवीनता....

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  40. सुंदर प्रस्तुति,गहन भावपूर्ण अच्छी रचना,..

    WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

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  41. सुन्दर कविता,
    सत्य से ओतप्रोत,
    सार्थकता से भरी हुई.....
    कृपया इसे भी पढ़े-
    क्या यही गणतंत्र है

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  42. कुछ सोए कुछ जाग रहे,
    अपनी-अपनी दुनिया है।

    दो पंक्तियों में पूरी पुस्तक का सार है ....
    आभार आपका !

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  43. शनिवार के चर्चा मंच पर
    आपकी रचना का संकेत है |

    आइये जरा ढूंढ़ निकालिए तो
    यह संकेत ||

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