सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।
पुष्प रंगीले हो गए
किसलय करें किलोल,
माघ करे जादूगरी
अपनी गठरी खोल।
गंध पचीसों तिर रहे
पवन हुए उनचास,
सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।
अमराई में कूकती
कोयल मीठे बैन,
बासंती-से हो गए
क्यूं संध्या के नैन।
टेसू के संग झूमता
सरसों का उल्लास,
सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।
पुलकित पुष्पित शोभिता
धरती गाती गीत,
पात पीत क्यूं हो गए
है कैसी ये रीत।
नृत्य तितलियां कर रहीं
भौंरे करते रास,
सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।
-महेन्द्र वर्मा
bahut sunder ...geet basant ka ...
ReplyDeleteकुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !
ReplyDeleteबसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteइस रचना में आपने प्रकृति के विभिन्न बिम्बों में और उसके सौंदर्य में छिपे जादुई आकर्षण को समेट कर जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, उसके लिए आप बधाई के पात्र है ।
ReplyDeleteपुष्प रंगीले हो गए
ReplyDeleteकिसलय करें किलोल,
माघ करे जादूगरी
अपनी गठरी खोल।
पुष्प का खिलना तो प्रकृति का अपनी गाँठ खोलकर माध्री विखेरना है. माघ भी गाँठ खोल अपनी कड़क और अकड़ कम करता है और बसंत के साथ रंग जाता है. किन्त यह मन की गांठ क्यों नहीं खुलती? इसे क्या कहा जाय - मानव मन की जटिलता या उसकी संवेदनहीनता ? क्या कुछ पंक्तियों का फूट पढ़ना ही मन का उच्छ्वास है? यह तो साथी मुस्कान भर है. फिर महत्वपूर्ण यह इसलिए है कि प्रारंभ तो हुआ, विकसित होगा ही. आभार मन को कुरेदने और कुछ बात कहने कि प्रेरणा देने वाली रचना के लिए.
बसंतोस्सव की शुभकामनाएँ।.
अलौकिक छटा बिखेरती मधुमासी गीत के लिए बधाई..
ReplyDeletebahut sundar kavita likhi hai prakarti ki khoobsurti bahut badhia chitran kiya hai vasant ki badhaai.vaqt mile to aap mere blog par bhi aamantrit hain vasant ke rango ke saath.
ReplyDeleteसुंदर गीत बसंत का
ReplyDeleteसुंदर शब्द आभास
वर्मा जी को शुक्रिया
पढ़कर मिटती प्यास।
सुंदर मधुमास आया है
ReplyDeleteदिग दिगंत में छाया है।
साधु-साधु
ReplyDeleteनृत्य तितलियां कर रहीं
ReplyDeleteभौंरे करते रास,
सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।
मनमोहक वासंतिक गीत ......
बाग में बैठकर प्रकृति को निहारने का आनंद आ गया!!
ReplyDeleteअमराई में कूकती
ReplyDeleteकोयल मीठे बैन,
बासंती-से हो गए
क्यूं संध्या के नैन।
आनुप्रासिक छटा बिखरी हुई है पूरे गीत में .सुन्दर मनोहर .प्रकृति वर्णन के नए आयाम रच रहें हैं आप .
मधुर गीत ले कर आया ऋतुराज ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही सुन्दर लगी और तुरंत ही मैंने इसे फेसबुक पर साझा भी कर लिया.
ReplyDeleteअल्हड़ सी चाल पुरवा की मंद मंद मुस्काए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteशीतल सुगन्धित बयार सी कविता..
वसंत के मौक़े पर सामयिक और सुन्दर रचना है.
ReplyDeleteबहुत खूब! लाज़वाब मनमोहक शब्द चित्र..बसन्त का बहुत सुन्दर स्वागत..
ReplyDeleteपुलकित पुष्पित शोभिता
ReplyDeleteधरती गाती गीत,
पात पीत क्यूं हो गए
है कैसी ये रीत।
spreaded the fragerence of basant
through out the lines.very nice lines
thanks.
नृत्य तितलियां कर रहीं
ReplyDeleteभौंरे करते रास,
सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।
मनभावन गीत...
वाह क्या बात है!!! बहुत ही सुंदर शब्दों से सजी बंसत का स्वागत करती मनमोहक रचन ...
ReplyDeleteअमराई में कूकती
ReplyDeleteकोयल मीठे बैन,
बासंती-से हो गए
क्यूं संध्या के नैन।
दोहों के रूप में वसंत का वासंती गीत. बिंबों की नवीनता मन को रस से भर देती है.
वसंत का सुन्दर चित्रण !
ReplyDeleteबसंत पर्व का सुन्दर वर्णन है आज की पोस्ट में|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत लिखा है आपने ,महेंद्र जी.
ReplyDeleteबहुत बधाई.
बहुत बेहतरीन .......
ReplyDeletesoft, subtle and beautiful creation...बसंत पचंमी की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteनृत्य तितलियां कर रहीं
ReplyDeleteभौंरे करते रास,
सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।
sundar bhav. badhai!
अरे वाह। पुराने गीतों की याद दिला दी आपने। अच्छा स्वागत वसंत का!
ReplyDeleteमहेंद्र जी बसन्त का बहुत सुन्दर स्वागत..बसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमनमोहक!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता भाई महेंद्र जी |ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
ReplyDeleteमहेंद्र जी,प्रकृति के सुंदर बिम्बो समेट कर प्रस्तुति करने के लिए बहुत२ बधाई,...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,
welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
मधुमास का पूर्वाभास.
ReplyDeleteशानदार वसंत गीत ...!!!
ReplyDeleteशब्दों के मकरंद में ये मधुमासी छंद
ReplyDeleteअंग अंग पुलकित हुआ,हृदय बसा आनंद.
बहुत रंगीन और कोमल गीत, वाह !!!!!!!!!
वसंत के सभी रंग शामिल हैं एक इसी गीत में !
ReplyDeleteवासंती अभिव्यक्ति !
बहुत ख़ूबसूरत और मधुर गीत! आनंद आ गया! सुन्दर प्रस्तुती!
ReplyDeleteनृत्य तितलियां कर रहीं
ReplyDeleteभौंरे करते रास,
सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास ...
बसंत के साथ ही मधुमास का माहोल आने लगता है ... और खुशियाँ छाने लगती हैं ... सुन्दर गीत है ...
नृत्य तितलियां कर रहीं
ReplyDeleteभौंरे करते रास,
सुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।very nice.
ye basnti geet bahut hi khub........mhendra ji bahut bahut shubhkamnayen basant ki
ReplyDeleteगीत मधुर व सुन्दर है ।
ReplyDeleteबासंती रंग लिए एक खूबसूरत गीत...आभार..
ReplyDeleteवासंतीय अभिव्यक्ति निःसंदेह सराहनीय...
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या
namaskar mahendra ji .
ReplyDeleteसुरभित मंद समीर ले
आया है मधुमास।
पुष्प रंगीले हो गए
किसलय करें किलोल,
माघ करे जादूगरी
अपनी गठरी खोल।
....bahut sunder abhivyakti .sach me basant aa gaya .bahut bahut badhai .shabdo se jhalak rahi hai umang .dekho aaya basant . sunder rachna ke liye abhar .
बहुत सुंदर रचना,लाजबाब
ReplyDeleteMY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
प्रकृति की खूबसूरतियों से भरी हुई रचना!
ReplyDeleteपहली बार आना हुआ, बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद!
basanti hawa me basanti rachana ka jhoka man ko bha gaya hai....badhai Verma ji
ReplyDeletebahut sundar prastuti...
ReplyDeletegeet padhkar majaa aa gyaa
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