यादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है,
ख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है।
जाने कैसी चोट लगी है अंतःतल में,
टूटे दिल को आस बंधाना बहुत कठिन है।
तैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
उन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है।
नादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
समझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।
जीवन सरिता के इस तट पर दुख का जंगल,
क्या होगा उस पार बताना बहुत कठिन है।
झूठ बोलने वालों ने आंखें दिखलाईं,
ऐसे में सच का टिक पाना बहुत कठिन है।
मौत किसे कहते हैं यह तो सभी जानते,
जीवन को परिभाषित करना बहुत कठिन है।
-महेन्द्र वर्मा
बेहतरीन..दिल को छू लेने वाली गीतिका।
ReplyDeleteतैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
ReplyDeleteउन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है।
वाह! बहुत ही सुंदर गीत महेंद्र जी.
एक एक पंक्ति दिल में बसने वाली है। बहुत ही श्रेष्ठ रचना।
ReplyDeleteयादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है,
ReplyDeleteख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है।... पर देते हैं धोखा खुद को ही हम , भ्रम को सत्य कहके . यादें तो हमसफ़र होती हैं
तैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
ReplyDeleteउन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है।
नादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
समझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।
जीवन को परिभाषित करना बहुत कठिन है ... बहुत सुंदर रचना ...
तैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
ReplyDeleteउन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है।
वाह!
yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahte hain to sampark karen
ReplyDeleterasprabha@gmail.com
वाह!!
ReplyDeleteनादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
समझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।
बहुत सुन्दर!!!
नादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
ReplyDeleteसमझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।
bahut sahi v bhavpoorn prastuti.
aasaan nahee jeevan mein kuchh
ReplyDeletesab kathin hai
sahajtaa se le lo agar
kathinaayee kam hotee
दिल को छूती हुई गीतिका आदरणीय महेंद्र सर....
ReplyDeleteसादर बधाई स्वीकारें...
जीवन सरिता के इस तट पर दुख का जंगल,
ReplyDeleteक्या होगा उस पार बताना बहुत कठिन है।
झूठ बोलने वालों ने आंखें दिखलाईं,
ऐसे में सच का टिक पाना बहुत कठिन है।
VERMA JI KYA LIKHUN .....GAJAB KI ABHIVYKTI ....AK AK SHER SMARNEEY HAI ....BILKUL ANTARMAN KO CHHOOTI HUI .....APKI ES RACHANA KO NAMAN...SATH HI APKO SADAR BADHAI
मौत किसे कहते हैं यह तो सभी जानते,
ReplyDeleteजीवन को परिभाषित करना बहुत कठिन है।
शानदार ग़ज़ल .जीवन की पहेली और दार्शनिकता को छिपाए .
नादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
ReplyDeleteसमझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।
.दिल को छू लेने वाली
DADA AAP BAHUT KHUBSURAT LIKHATE HAIN
BAR BAR PADANELAYAK.
PRANAM.
सच कहा हर कठिनाई से पार पाना बहुत कठिन है।
ReplyDeleteनादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
ReplyDeleteसमझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।
तैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
उन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है।
बहुत सुन्दर गीतिका
वाह महेन्द्र जी सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति । Welcome to my New Post.
ReplyDeleteकठिन तो बहुत है...यूँ उन्हें शब्द दे देना भी बहुत कठिन है...बहुत खूब!!
ReplyDeleteमौत किसे कहते हैं यह तो सभी जानते,
ReplyDeleteजीवन को परिभाषित करना बहुत कठिन है।
बेहद उम्दा.
सादर.
तैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
ReplyDeleteउन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है।
निरुत्तर करती पंक्तियाँ, कवि की सार्थक उड़ान बधाई
बहुत सारगर्भित गीतिका है। सरल शब्दों में गहरे भाव समेट लेते हैं आप।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 27-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
कर छल का एहसास पुन: ,
ReplyDeleteछलके नैनों के बाद रही ।
खाकर धोखा भूल गया,
पर याद तुम्हारी याद रही ।।
महेंद्र जी,..खुद को धोखा दे पाना बहुत कठिन है,.
ReplyDeleteअति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना के लिए बधाई,...फालोवर बन रहा हूँ
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
यादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है,
ReplyDeleteख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है।
sateek bat v sarthak prastuti .aabhar
झूठ बोलने वालों ने आंखें दिखलाईं,
ReplyDeleteऐसे में सच का टिक पाना बहुत कठिन है..
बहुत सुंदर
गहरे तक जाती गीतिका बस ..मोहित कर रही है..
ReplyDeleteतैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
ReplyDeleteउन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है...
हर पंक्ति में एक 'दर्शन' छुपा है...
.
गीतिका बहुत सुन्दर हैं |
ReplyDeleteआशा
जीवन को परिभाषित कर पाना बहुत कठिन है...
ReplyDeleteवाकई सच कहा आपने सार्थक रचना....
अच्छी सवेदनापूर्ण सार्थक रचना.
ReplyDeleteभावों की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति पर तो
ReplyDeleteकुछ भी कहना, कुछ भी सुनना बड़ा कठिन है!!
नादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
ReplyDeleteसमझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।
बिल्कुल सही...
यादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है,
ReplyDeleteख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है।..
बहुत ही सुन्दर रचना,
पर हम जीवन की राह में कई बार ख़ुद को भरम में डाल कर ख़ुद को धोखा दे देते हैं......
जी,बहुत कठिनाई है जीवन में,वर्मा जी
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति भावपूर्ण और विचारोत्तेजक है.
ReplyDeleteकठनाईयों में सधना ही असल साधना है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार,महेंद्र जी.
जीवन सरिता के इस तट पर दुख का जंगल,
ReplyDeleteक्या होगा उस पार बताना बहुत कठिन है।
....बिलकुल सच....जीवन की सच्चाई को सटीकता से व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना...
नादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
ReplyDeleteसमझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।
Ji .... Sach kaha... Bahut Sunder
तैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
ReplyDeleteउन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है।waah....
जीवन सरिता के इस तट पर दुख का जंगल,
ReplyDeleteक्या होगा उस पार बताना बहुत कठिन है ..
बरबस ये पंक्तियाँ याद आ गयीं ... इस पार प्रिय तुम रहती हो उस पर न जाने क्या होगा ... बहुत खूब ...
asardar vazandar gitika .
ReplyDeleteasardar vazandar gitika .
ReplyDeleteयादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है,
ReplyDeleteख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है।
bahut sunder rachna
नादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
ReplyDeleteसमझदार को समझा पाना बहुत कठिन है....
इस रचना की तारीफ लायक शब्द जुटा पाना कठिन है।
बहुत प्यारी रचना,,
ReplyDeleteदिल को छू गयी..
सादर नमन.