सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग,
बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग।
भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव,
पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव।
सूरज बोला सुन जरा, धरती मेरी बात,
मैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी बरसात।
सूरज है मुखिया भला, वही कमाता रोज,
जल-थल-नभचर पालता, देता उनको ओज।
पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
धूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।
धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
मानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार।
जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।
-महेन्द्र वर्मा
बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण दोहे................
ReplyDeleteसूर्य की महत्ता जानते हैं मगर फिर भी लगता है क्यूँ तपाते हो सूरज इतना??????
सादर.
जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
ReplyDeleteबिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।
बढ़िया दोहे -
बधाई स्वीकारें ||
पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
ReplyDeleteधूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।
बेहद उम्दा और सार्थक दोहे
vaah vaah , kamaal ke dohe...
ReplyDeleteसूरज बोला प्रेम से, सुन धरती इक बात,
ReplyDeleteमैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी बरसात।|
बहुत खूब भाई जी -
सूरज बोला प्रेम से, सुन धरती मेरी बात,
ReplyDeleteमैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी बरसात।
सुंदर भाव पुर्ण सार्थक अभिव्यक्ति ,...बेहतरीन दोहे,....
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
सूर्य देव की महिमा अपरम्पार...
ReplyDeleteशानदार रचना...
धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
ReplyDeleteमानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार...
waah ! ati sundar..
.
अर्थपूर्ण कविता और शब्दों का सुंदर चयन ...!!
ReplyDeleteसुंदर और अर्थपूर्ण दोहे...सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteपानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव।
ReplyDeleteआजकल ऐसी ही गरमी पड़ रही है। लेकिन आपने सूरज के इस रूप के अलावा उसके प्रकृति के संरक्षण में अन्य रूपों को भी दर्शाया है। वह काफ़ी रोचक लगा।
पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
ReplyDeleteधूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।
Very meaningful couplets highlighting the importance of The Sun which is the primary source of energy on earth .It is the sun which carries photosynthesis and regulates the water cycle.
जीवनदायी सूर्य के विभिन्न रूपों का वर्णन इन सात दोहों में, मानो सूरज के सात घोड़े!!
ReplyDeleteअद्भुत, वर्मा साहब!!
बहुत सुंदर दोहे................
ReplyDeleteसुंदर सधे दोहे.
ReplyDeleteवाह! सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं।..बहुत बधाई।
ReplyDeleteसभी दोहे सुंदर हैं
ReplyDeleteअंतिम दोहे ने तो मन मोह लिया
धूप से तपे मौसम में ये काव्याग्नि में तपे सुंदर दोहे. बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteजल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
ReplyDeleteबिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।
वाह !!!! यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग. नायाब दोहे.
अश्व खींचते सूर्य रथ, सुंदर दोहे सात
सदा महेंद्र वर्मा कहें,नई निराली बात.
बहुत सुन्दर सार्थक सारगर्भित दोहे.....आभार
ReplyDeleteपेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
ReplyDeleteधूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।
सभी दोहे बहुत अच्छे ... सुंदर प्रस्तुति
जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
ReplyDeleteबिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।
....बहुत खूब ! बहुत सुंदर और सार्थक दोहे...आभार
वाह ...बहुत ही बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteकल 16/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
...'' मातृ भाषा हमें सबसे प्यारी होती है '' ...
धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
ReplyDeleteमानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार।
जीवन का अर्थ ....समझाते दोहे !
बहुत सुंदर !
आभार!
सच तो है .....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपकों !
सूरज से तप तप कर निकले सूरज पर सुंदर भाव...
ReplyDeleteसभी दोहे सार्थक हैं...
भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव,
ReplyDeleteपानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव..
सभी दोने सूरज के ताप कों ऊंचा उठा रहे हैं ... बहुत ही सुन्दर ...
जीवन दर्शन कराते सुंदर दोहे....
ReplyDeleteसूर्य देवता के प्रकोप से हम सब परेशां हैं ...लेकिन आपके दोहों ने सूर्य के महत्व को भी दोहों में सजा दिया .......बढ़िया
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुन्दर इन्द्रधनुषी दोहे...
ReplyDeleteसादर बधाईयाँ सर...
पहली बार में ही दोहों से एक विशेष नेह सा जुड़ जाता है . भाव तो रोक ही लेता है..बहुत ही अच्छा लगता है पढ़ना..
ReplyDeleteपेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
ReplyDeleteधूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।
धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
मानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार।
जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।
बहुत सुन्दर नहीं खुबसूरत संग्रहनीय
जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
ReplyDeleteबिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।
बहुत बढ़िया दोहे