नवगीत



शब्दों से बिंधे घाव
उम्र भर छले,
आस-श्वास पीर-धीर
मिल रहे गले।

सुधियों के दर्पण में
अलसाये-से साये,
शुष्क हुए अधरों ने
मूक छंद फिर गाए,

हृद के नेहांचल में
स्वप्न-सा पले।

उज्ज्वल हो प्रात-सा
युग का नव संस्करण,
चिंतन के सागर में
सुलझन का अवतरण,

रावण के संग-संग
कलुष सब जले।

-महेन्द्र वर्मा

36 comments:

  1. सुंदर भाव ...अच्छी सोच !
    शुभकामनाएँ!

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  3. बढ़िया नवगीत |
    बधाई महेंद्र भाई जी ||

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  4. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1040 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  5. वाह...
    बहुत सुन्दर नवगीत...

    सादर
    अनु

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  6. अति प्रवाहमयी रचना..

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  7. शब्दों से बिंधे घाव
    उम्र भर छले,
    आस-श्वास पीर-धीर
    मिल रहे गले।

    बहुत ही सुन्दर भावों की लड़ी

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  8. आस-श्वास पीर-धीर..
    यह पंक्ति बहुत अच्छी लगी
    और नवगीत बहुत ही बढ़िया भावों को लिए हुए

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  9. उज्ज्वल हो प्रात-सा
    युग का नव संस्करण,
    चिंतन के सागर में
    सुलझन का अवतरण,

    रावण के संग-संग
    कलुष सब जले।

    नव गीत नव बयार लेकर आया है .तंज भी सकारात्मक भाव भी लिए आया है यह गीत नव आस भी ,उजास भी .बधाई .

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  10. नवगीत की यह छटा अच्छी लगी.

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  11. बहुत ही सुंदर नवगीत
    सुंदर....
    :-)

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  12. बढ़िया ज़मीन तोड़ी है नवगीत की आभार आपकी द्रुत टिपण्णी का .

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  13. बढ़िया ज़मीन तोड़ी है नवगीत की आभार आपकी द्रुत टिपण्णी का .

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  14. सुन्दर गीत दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें |

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  15. उत्कृष्ट रचना ..... बहुत सुंदर

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  16. Virendra Kumar Sharma said...
    हास्य
    हार गया तो क्या हुआ, टेंशन गोली मार।
    कोचिंग सेंटर खोल ले, सिखला भ्रष्टाचार।।
    ......महेंद्र वर्मा जी .

    कभी अकेला ना रहूं, मेरा अपना ढंग।
    घिरा हुआ एकांत से, सन्नाटों के संग।।
    सीख
    संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र।
    कभी-कभी एकांत ही, सबसे उत्तम मित्र।।
    बहुत बढ़िया नीति और सीख पढ़ाते दोहे .दोहों में गद्य की तरह विस्तार की गुंजाइश नहीं रहती ,कम शब्दों में एक परिवेश एक भाव ,एक मानसिक कुन्हासा उड़ेलना होता है ,महेंद्र जी के दोहे इस कसौटी पर खरे उतरते हैं .
    Tue Oct 23, 06:55:00 PM 2012
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012
    गेस्ट पोस्ट ,गज़ल :आईने की मार भी क्या मार है

    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  17. उज्ज्वल हो प्रात-सा
    युग का नव संस्करण,
    चिंतन के सागर में
    सुलझन का अवतरण,

    रावण के संग-संग
    कलुष सब जले।

    यही तो दिक्कत है ,रावण लीला से तंत्र लोक फले ,जन मन को नित नित छले .बढिया नवगीत अपनी अलग धाक लिए लायें हैं आप .
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012
    गेस्ट पोस्ट ,गज़ल :आईने की मार भी क्या मार है

    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  18. रावण के संग-संग
    कलुष सब जले...
    लाजवाब म बहुत शानदार रचना के लिए बधाई ।

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  19. प्रतीकात्मक रावण दहन के पीछे उद्देश्य तो यही रहा होगा लेकिन हम उत्सवप्रेमियों ने पुतले जलाना ही उद्देश्य मान लिया।
    तदापि विजयादशमी पर्व की हार्दिन बधाई।

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  20. रावण के संग संग कलुष सब जले । तथास्तु ।
    विजया दशमी पर शुभेच्छाएं ।

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  21. दशहरा मुबारक भाई साहब !

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  22. नवगीत के माध्यम से जो सन्देश आपने दिया है वह हम तक पहुंचा.. शुभकामनाएँ!!

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  23. अच्छी एवं भावमय कविता । मेरे नए पोस्ट पर पधारें।

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  24. सुंदर अभिव्यक्ति ...सार्थक संदेश देती रचना

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  25. सुधियों के दर्पण में
    अलसाये-से साये,
    शुष्क हुए अधरों ने
    मूक छंद फिर गाए,

    ...बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना..

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  26. रावण के संग-संग
    कलुष सब जले।

    सच्ची कामना. सुंदर प्रस्तुति.

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  27. अद्भुत नवगीत!
    मूक छंद फिर गाए,
    इस प्रयोग ने मन को छुआ।

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  28. चिंतन के सागर में
    सुलझन का अवतरण,

    रावण के संग-संग
    कलुष सब जले।

    बहुत सुंदर नवगीत ।

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