क्या हुआ

बाग दरिया झील झरने वादियों का क्या हुआ,
ढूंढते थे सुर वहीं उन माझियों का क्या हुआ।

कह रहे कुछ लोग उनके साथ है कोई नहीं,
हर कदम चलती हुई परछाइयों का क्या हुआ।

जंग जारी है अभी तक न्याय औ अन्याय की,
राजधानी में भटकती रैलियों का क्या हुआ।

मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।
 

है जुबां पर और  उनके बगल में कुछ और है,
सम्पदा को पूजते सन्यासियों का क्या हुआ।

बेबसी लाचारियों से हारती उम्मीदगी,
दिल जिगर से फूटती चिन्गारियों का क्या हुआ।

लुट रहा यह देश सुबहो-शाम है यह पूछता,
जेल में सुख भोगते आरोपियों का क्या हुआ।

                                                         -महेन्द्र वर्मा

34 comments:

  1. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।
    गहन और बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति .....!!

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  2. बेबसी लाचारियों से हारती उम्मीदगी,
    दिल जिगर से फूटती चिन्गारियों का क्या हुआ।

    भारी सवालों से लोडिड ग़ज़ल. जवाबों के लिए एक अलग किस्म की कलम चाहिए होगी.

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  3. बागी हुई हवाएं ..कोई तो कारण बताये.. प्रभावी रचना..

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  4. क्या हुआ.क्यों हुआ ओर कैसे हुआ ...???
    एक सवाल हम सब की जुबान पर ......

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  5. बहुत सुन्दर गज़ल....
    बढ़िया शेर...सभी के सभी..

    सादर
    अनु

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  6. शाश्वत शिल्प
    हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित vermamahendra55@gmail.com

    Monday, October 8, 2012
    क्या हुआ
    बाग दरिया झील झरने वादियों का क्या हुआ,
    ढूंढते थे सुर वहीं उन माझियों का क्या हुआ।

    कह रहे कुछ लोग उनके साथ है कोई नहीं,
    हर कदम चलती हुई परछाइयों का क्या हुआ।

    जंग जारी है अभी तक न्याय औ अन्याय की,
    राजधानी में भटकती रैलियों का क्या हुआ।

    मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    जीभ पर कुछ और उनके बगल में कुछ और है(,है जुबान पर और उनके बगल में कुछ और है)
    सम्पदा को पूजते सन्यासियों का क्या हुआ।

    बेबसी लाचारियों से हारती उम्मीदगी,
    दिल जिगर से फूटती चिन्गारियों का क्या हुआ।

    लुट रहा यह देश सुबहो-शाम है यह पूछता,
    जेल में सुख भोगते अपराधियों का क्या हुआ।

    ख्याल की परवाज़ अच्छी है गज़ल की तकनीकी स्थिति भी ठीक है .गजल का मुख्य भाव ख्याल ही होता है .एक दो शब्द प्रयोग अखरते हैं जैसे अपराधियों ,जीभ पर ,जीभ रसना के रूप में है ,मुख में राम बगल में छुरी का भाव ,जुबान शब्द से ज्यादा मुखरित होगा .आदर से ,नेहा से .
    वीरुभाई .

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  7. जंग जारी है अभी तक न्याय औ अन्याय की,
    राजधानी में भटकती रैलियों का क्या हुआ।
    बहुत सुंदर गज़ल .......

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  8. लुट रहा यह देश सुबहो-शाम है यह पूछता,
    जेल में सुख भोगते अपराधियों का क्या हुआ।....

    बहुत उम्दा गजल,,,बधाई,,,,,
    RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,

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  9. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।
    ......... कौन देगा उत्तर,सब तो खून की नदियाँ बहाने में लगे हैं

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  10. कह रहे कुछ लोग उनके साथ है कोई नहीं,
    हर कदम चलती हुई परछाइयों का क्या हुआ।खुबसूरत अभिवयक्ति.....

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  11. बहुत बढ़िया

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  12. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    बेहतरीन रचना है वर्मा जी... संकलन योग्य !
    बधाई आपको !

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  13. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    बेहतरीन रचना है वर्मा जी... संकलन योग्य !
    बधाई आपको !

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  14. वर्मा साहब किस शे’र को कोट करूं किसको छोड़ूं। बस इतना कह सकता हूं, कि इतनी बेहतरीन ग़ज़ल ब्लॉग जगत में उंगलियों पर गिने जा सकते हैं, वह भी एक हाथ की उंगलियों से।

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  15. बहुत सुन्दर गज़ल...जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ !!!!

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  16. कह रहे कुछ लोग उनके साथ है कोई नहीं,
    हर कदम चलती हुई परछाइयों का क्या हुआ।
    मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।
    ......
    सम्पदा को पूजते सन्यासियों का क्या हुआ।

    बहुत प्रभावी ग़ज़ल

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  17. एक बहुत प्रभावशाली गज़ल.. हमेशा की तरह प्रेरक!!

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  18. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    हर शेर छाप छोड़ती हुई प्रभावी!!

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  19. लाजवाब लाजवाब.... बहुत सुंदर गज़ल

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  20. क्या बात, बहुत सुंदर रचना


    बेबसी लाचारियों से हारती उम्मीदगी,
    दिल जिगर से फूटती चिन्गारियों का क्या हुआ।

    लुट रहा यह देश सुबहो-शाम है यह पूछता,
    जेल में सुख भोगते अपराधियों का क्या हुआ।

    बहुत बढिया

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  21. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    बहुत सुन्दर गज़ल !

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  22. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    सार्थक पंक्तियाँ

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  23. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    है जुबां पर और उनके बगल में कुछ और है,
    सम्पदा को पूजते सन्यासियों का क्या हुआ।

    कितने प्रश्न मथते हैं मन को ... बहुत सुंदर गज़ल

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  24. मुझे तो इस प्रस्तुति में दुष्यंत कुमार की कलम सी झलक दिखी है, वर्मा साहब। भेदती हुई भीतर तक।

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  25. महेंद्र जी लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने...कमाल...हर शेर पर वाह...वाह...निकल रहा है मुंह से...आज के हालात पर क्या खूब शेर कहें हैं...सुभान अल्लाह...भाई ढेरों दाद कबूल करें...

    नीरज

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  26. लुट रहा यह देश सुबहो-शाम है यह पूछता,
    जेल में सुख भोगते आरोपियों का क्या हुआ............सटीक प्रश्न और लाजवाब ग़ज़ल।

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  27. जंग जारी है अभी तक न्याय औ अन्याय की,
    राजधानी में भटकती रैलियों का क्या हुआ।

    मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    वाह, वाह महेंद्र जी.भाव,शब्द,तीर,खंजर मन को सराबोर कर गये.हम तो यही कहेंगे कि रस में जिसे डूबना हो, वह शाश्वत शिल्प पर आये.

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  28. मजहबों के नाम पर बस खून की नदियां बहीं,
    जो कबीरा ने कही उन साखियों का क्या हुआ।

    ....बहुत सटीक..लाज़वाब गज़ल..

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  29. हकीकत से रूबरू कराती बेहतरीन ग़ज़ल ..

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  30. बेबसी लाचारियों से हारती उम्मीदगी,
    दिल जिगर से फूटती चिन्गारियों का क्या हुआ।

    बहुत खूबसूरत और बेहद गंभीर अभिव्यक्ति.

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  31. जंग जारी है अभी तक न्याय औ अन्याय की,
    राजधानी में भटकती रैलियों का क्या हुआ।

    हर आदमी के मन का आक्रोश लिये यह गज़ल बहुत प्रभावी है ।

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  32. एक एक शेर लाजबाव कर देनेवाला है। बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई।

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  33. सब लस्टम्-पस्टम् चले जा रहा है -कुछ हुआ कहाँ है अभी तक !

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