सुख-दुख से परे

एकमात्र सत्य हो
तुम ही

तुम्हारे अतिरिक्त
नहीं है अस्तित्व
किसी और का

सृजन और संहार
तुम्ही से है
फिर भी
कोई जानना नहीं चाहता
तुम्हारे बारे में !

कोई तुम्हें
याद नहीं करता    
आराधना नहीं करता
कोई भी तुम्हारी

कितने उपेक्षित-से
हो गए हो तुम
पहले तो
ऐसा नहीं था !!

भले ही तुम
सुख-दुख से परे हो
किंतु,
मैं तुम्हारा दुख
समझ सकता हूं
ऐ ब्रह्म !!!

 

                                                   -महेन्द्र वर्मा


33 comments:

  1. कोई तुम्हें
    याद नहीं करता
    आराधना नहीं करता
    कोई भी तुम्हारी

    कितने उपेक्षित-से
    हो गए हो तुम
    पहले तो
    ऐसा नहीं था !!

    bilkul yatharth ......lajbab prastuti ke liye sadar abhar Verma ji .

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  2. गहन अभिव्यक्ति ....!!

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  3. वाह...
    सुन्दर एवं गहन रचना....
    सादर
    अनु

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  4. गहन भावों से भरी

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  5. बहुत बढ़िया भाई जी -

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  6. शिक्षा के कारण आजकल हर बात, हर अवधारणा, हर प्रत्यक्ष-परोक्ष चीज़ सवालों के तहत आ गई है. आपकी कविता इसे बखूबी कह गई है.

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  7. हुई हकीकत खोखली, विकल आत्मा व्यस्त |
    समय नहीं आकलन का, मनुज देह भी मस्त |
    मनुज देह भी मस्त, धर्म की धीमी धड़कन |
    परम ब्रह्म को भूल, दिखाती रहे अकड़पन |
    बचा ब्रह्म अस्तित्त्व, नहीं तो होगी दिक्कत |
    वंचक दें उपदेश, गालियाँ हुई हकीकत ||

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  8. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.

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  9. ब्रह्म का दुख .... सब अपने ही दुख से परेशान होते रहते हैं ... गहन अभिव्यक्ति

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  10. गहन भाव लिये बहुत ही उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति

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  11. भाई साहब अब गली गली भगवान् हो गए हैं .ऐसा तो होना ही था .भाह्वान श्री कोयला जी संसद में बैठे हैं .कुछ तिहाड़ में हैं अपनी महिमा के चलते .

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  12. भाई साहब अब गली गली भगवान् हो गए हैं .ऐसा तो होना ही था .भगवान श्री कोयला जी संसद में बैठे हैं .कुछ तिहाड़ में हैं अपनी महिमा के चलते .

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  13. कोई बहुत बड़ा दुःख ही व्यक्ति को , सुख दुःख से परे कर देता है , लेकिन समझने वाले उसकी हंसी में भी झिलमिलाते आंसुओं को पढ़ लेते हैं !

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  14. गहन भाव लिए अति उत्तम रचना..

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  15. भले ही तुम
    सुख-दुख से परे हो
    किंतु,
    मैं तुम्हारा दुख
    समझ सकता हूं
    ऐ ब्रह्म !!!

    कमाल की संवेदनशीलता !
    वाऽह ! क्या बात है !

    बेहतरीन !

    महेन्द्र वर्मा जी
    व्यापक दृष्टिकोण से उत्पन्न भाव और ओजपूर्ण शब्द !
    सुंदर और सार्थक रचना !

    …आपकी लेखनी से श्रेष्ठ रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे …
    शुभकामनाओं सहित…

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  16. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (24-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  17. शब्द ब्रह्म....
    अच्छी रचना

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  18. इतने डूबे हैं सब कि अपने कि अपने से बाहर निकल ही नहीं पाते !

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  19. कितने उपेक्षित-से
    हो गए हो तुम
    पहले तो
    ऐसा नहीं था !!

    भले ही तुम
    सुख-दुख से परे हो
    किंतु,
    मैं तुम्हारा दुख
    समझ सकता हूं
    ऐ ब्रह्म !!!

    वाह

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  20. बहुत बढ़िया रचना । बहुत गहरे भाव लिए ।


    मेरी नई पोस्ट-गुमशुदा

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  21. एक सच्चा हृदय अपने से छोटे-बड़े सभी के दुख क्लेश की चिंता करता है।

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  22. बहुत गहन सोच की अभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई आपको

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  23. दार्शनिक विचारों से ओत -प्रोत सुन्दर कविता |भाई महेंद्र जी आभार |

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  24. याद तो करते हैं सब पर मुसीबत में ।
    ब्रह्म को उपेक्षित कर ही नही सकते हम, स्वयं ही उपेक्षित हो जाते हैं ।
    गहरे भाव ।

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  25. महेंद्र सा.
    आज मैं कुछ नहीं कहूँगा.. मेरे बदले गुलज़ार साहब बताएँगे कि ये हाल क्यों है:
    चिपचिपे दूध से नहलाते हैं
    आंगन में खड़ा कर के तुम्हें ।
    शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
    घोल के सर पे लुंढाते हैं गिलसियां भर के
    औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर
    पांव पर पांव लगाये खड़े रहते हो
    इक पथरायी सी मुस्कान लिये
    बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी ।
    जब धुआं देता, लगातार पुजारी
    घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर
    इक जरा छींक ही दो तुम,
    तो यकीं आए कि सब देख रहे हो ।

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  26. कितने उपेक्षित-से
    हो गए हो तुम
    पहले तो
    ऐसा नहीं था !!

    भले ही तुम
    सुख-दुख से परे हो
    किंतु,
    मैं तुम्हारा दुख
    समझ सकता हूं
    ऐ ब्रह्म !!!

    param saty

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  27. सुंदर सर .....सच ही तो कहा आपने ।

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  28. भले ही तुम
    सुख-दुख से परे हो
    किंतु,
    मैं तुम्हारा दुख
    समझ सकता हूं
    ऐ ब्रह्म !!!

    ...लाजवाब अहसास...बहुत गहन और सुंदर अभिव्यक्ति...

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  29. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति....
    आप मेरे ब्लॉग पर आएं..एक योजना है उसे पढ़े और अवगत कराएं....

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  30. सृष्टि निर्माता की भी अपनी मजबूरियां हो सकती हैं।आपका चिंतन सटीक है।

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