1.
कितनी धुँधली-सी
हो गई हैं
छवियाँ
या
आँखों में
भर आया है कुछ
शायद
अतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !
2.
विवेक ने कहा-
हाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !
3.
दिन गुजर गया
विलीन हो गया
दूर क्षितिज में
एक बिंदु-सा
लेकिन
अपने पैरों में
बँधे राकेट के धुएँ से
सफेद बादलों की लकीर
उकेर गया
मन के आकाश में !
-महेन्द्र वर्मा
शाश्वत सत्य
ReplyDeleteमहेंद्र सा.
ReplyDeleteहमेशा की तरह दिल में उतरने वाली क्षणिकाएं.. अतीत की नदी में गोता लगा रही है आँखें या आँखों में उभर आयी है अतीत की नदी, दिल को छू गयी ये लाइनें..
और रॉकेट बंधे पैरों की लकीर ने आसमां उड़ने का एहसास दिया!!
बहुत ही सुन्दर!! आभार!!
क्षणिकाएं.. वाह!गूड सत्य लिए हुए !बहुत रहस्य समेटे हुए !
ReplyDeleteखुश रहें!
महेंद्र जी,,बधाई,,,,
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा,लाजबाब क्षणिकाएँ ....
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
दिन गुजर गया
ReplyDeleteविलीन हो गया
दूर क्षितिज में
एक बिंदु-सा
लेकिन
अपने पैरों में
बँधे राकेट के धुएँ से
सफेद बादलों की लकीर
उकेर गया
मन के आकाश में !
गजब की क्षनिकाए सोचने को प्रेरित करती १ बड़ी या २ कहूँ या कह दूँ ३
वाह.....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत क्षणिकाएँ...
बहुत बढ़िया..
सादर
अनु
हर क्षणिक गहन भाव लिए हुये
ReplyDeleteशायद
अतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !
यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं ...
सहज सरल शब्दों में गूढ़ बातें बयान करती क्षणिकाएं.. सुंदर
ReplyDeleteखूबसूरत क्षणिकाएं। बस इतना ही कहूँगा- देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गम्भीर।
ReplyDeleteशायद
ReplyDeleteअतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !
वाह ... बेहतरीन
BHAUT HI KHUBSURAT....
ReplyDeleteविवेक ने कहा-
ReplyDeleteहाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !
....बिल्कुल सच...सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर..
बहुत खुबसूरत प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लगी ..
ReplyDeleteसुंदर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteसरल एवं भावपूर्ण।।।
बहुत सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से कही आपने ये क्षणिकाएं ...बधाई
ReplyDeleteबिम्ब अनोखे छू गये, क्षणिकाओं के मित्र
ReplyDeleteगूढ़ सत्य को बाँध कर,खींचा अनुपम चित्र ||
adbhut bimb goodh saty..sundar rachna..
ReplyDeleteon the dot -utam ***
ReplyDeletePrnam swikar karne ka kasht kijiye
दिल में समा गई सारी बातें। शब्द और बिम्ब मन को बांधते हैं।
ReplyDeleteविवेक ने कहा-
ReplyDeleteहाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !
चंद शब्दों में जीवन का फलसफा पेश कर दिया महेंद्र जी. सुंदर हैं सारी क्षणिकाएँ.
सुन्दर बिम्ब बनाएँ है रचनाओं के इर्द गिर्द ... दिल में उतर जाती हैं सभी क्षण्काएं ...
ReplyDeleteविवेक ने कहा-
ReplyDeleteहाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !
बहुत अच्छी बात कही आपने...
सभी क्षणिकाएँ सुंदर हैं!!
hakiqat ko bayan karti sunder kshanikayen..
ReplyDeleteउम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteवाह महेन्द्र जी
ReplyDeleteकितनी धुँधली-सी
हो गई हैं
छवियाँ
या
आँखों में
भर आया है कुछ
अतीत में झांकती आंखों से एक नगमा याद आ गया -
# आईना तोड़ दिया
ऐसा धुंधला हो गया चेहरा
देखना छोड़ दिया ...
आदरणीय महेंद्र जी
तीनों क्षणिकाएं सुंदर और प्रभावशाली हैं ।
बधाई एवं साधुवाद !
नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
विवेक जागृत रहे तो कालिमा का कोई काम नहीं। तीनों क्षणिकायें बहुत खूबसूरत हैं, दूसरी वाली विशेष रूप से पसंद आई।
ReplyDeleteतीनों क्षणिकांएं बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआँखों का अतीत में गोता लगाना,
और विवेक से फैला अंतर्मन का प्रकाश
और दिन का आसमान पर सपेद बादलों वाली लकीर उकेरना
सब प्रतिमान दिल को छू गये ।
शायद
ReplyDeleteअतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !
bahut sundar verma ji ......achchhi rachana ke liye badhai .
बहुत खूब |
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