ढूँढो कोई कहाँ पर रहती मानवता,
मानव से भयभीत सहमती मानवता।
रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय,
इसीलिए आहत सी लगती मानवता।
मानव ने मानव का लहू पिया देखो,
दूर खड़ी स्तब्ध लरजती मानवता।
है कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
पूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता।
मेरे दुख को अनदेखा न कर देना
नए वर्ष से अनुनय करती मानवता।
-महेन्द्र वर्मा
नव-वर्ष शुभकर हो !
मानव से भयभीत सहमती मानवता।
रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय,
इसीलिए आहत सी लगती मानवता।
मानव ने मानव का लहू पिया देखो,
दूर खड़ी स्तब्ध लरजती मानवता।
है कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
पूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता।
मेरे दुख को अनदेखा न कर देना
नए वर्ष से अनुनय करती मानवता।
-महेन्द्र वर्मा
नव-वर्ष शुभकर हो !
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को .-2013
ReplyDelete"मेरे दुख को अनदेखा मत कर देना
ReplyDeleteनए वर्ष से अनुनय करती मानवता।"
तथास्तु-सादर
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनव वर्ष पर बधाइयाँ !!
ReplyDeleteबहुत सटीक अभिव्यक्ति...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें .....
नव वर्ष की शुभकामनायें!
ReplyDeleteनववर्ष की ढेरों शुभकामना!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 01-01-2013 को मंगलवारीय चर्चामंच- 1111 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
नव वर्षकी ढेर सारी मंगलकामनायें।
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteआपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसार्थक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपको सहपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ....
:-)
नव वर्ष शुभ और मंगलकारी हो
ReplyDeleteआशा
इस समय मानवता किसी कोने में छिपकर रो रही है
ReplyDeleteहै कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
ReplyDeleteपूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता।
...बहुत प्रभावी और सार्थक अभिव्यक्ति..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteनब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteमार्मिक सत्य,आएं कोशिश करें मानवता को
ReplyDeleteसही अर्थ देने की.
ऐसी सुंदर सोच की ही ..तो तलाश है मानवता को .
ReplyDeleteशुभकामनाये हम सब को !
आमीन..नव वर्ष की समस्त शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteमानवता की इसी पुकार, इसी आह्वान की आवश्यकता है.. नववर्ष आपकी आशाओं का सूरज लेकर आये महेंद्र सा!!
ReplyDeleteमेरे दुख को अनदेखा न कर देना
ReplyDeleteनए वर्ष से अनुनय करती मानवता।
तथास्तु । मानवता जागृत हो इस नये वर्ष में और उत्तरोत्तर बढे ।
मानव ने मानव का लहू पिया देखो,
ReplyDeleteदूर खड़ी स्तब्ध लरजती मानवता ..
सच कहा है महेंद्र जी ... मानवता लज्जित है आज ...
आपको २०१३ शुभ हो ...
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
ढूँढो कोई कहाँ पर रहती मानवता,
मानव से भयभीत सहमती मानवता।
रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय,
इसीलिए आहत सी लगती मानवता।
मानव ने मानव का लहू पिया देखो,
दूर खड़ी स्तब्ध लरजती मानवता।
है कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
पूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता।
मेरे दुख को अनदेखा न कर देना
नए वर्ष से अनुनय करती मानवता।
अत्युत्कृष्ट !
किस बंध को कम आंकूं ?
पूरी रचना प्रभावशाली है ...
आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी !
आपकी लेखनी से तो सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन ही होता आया है ,
आगे भी इसी तरह सरस्वती मां का प्रसाद बांटते रहें …
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय,
ReplyDeleteइसीलिए आहत सी लगती मानवता।
एक बेबाक कथन और सत्य को उद्घाटित करती उद्घोषक रचना .
इस वर्ष इससे बेहतरीन रचना नहीं पढ़ी ...
ReplyDeleteबधाई आपको !
बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति. आप को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteमेरे दुख को अनदेखा न कर देना
ReplyDeleteनए वर्ष से अनुनय करती मानवता।
बहुत बहुत शुभकामनायें आपको
सुंदर अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ...हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteनया साल बढ़िया से चले जी
ReplyDeleteबाऊ जी नमस्ते!
ReplyDeleteसार्थक चिंतन!
ऐसा ही हो!
ढ़
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थर्टीन रेज़ोल्युशंस
है कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
ReplyDeleteपूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता। ...
बहुत खूब महेंद्र जी ... लाजवाब शेर हैं सभी मानवता को खोजते ... अपना अर्थ ढूंढती मानवता ...