दोनों हाथों की शोभा है दान करने से अरु,
मन की शोभा बड़ों का मान करने से है।
दोनों भुजाओं की शोभा वीरता दिखाने अरु,
मुख की शोभा तो प्यारे सच बोलने से है।
कान की शोभा है मीठी वाणी सुनने से अरु,
आंख की शोभा तो अच्छे भाव देखने से है।
चेहरा शोभित होता उर की प्रसन्नता से,
मानव की शोभा शुभ कर्म करने से है।
-महेन्द्र वर्मा
सुंदर भाव एवं अभिव्यक्ति भी ....!!
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeleteसारगर्भित पंक्तियाँ
ReplyDeleteउच्च भाव और ऊँचे विचार ,,,,
ReplyDeleteशुभकामनायें!
बहुत सुंदर भाव .... बहुत दिनों बाद आपको पढ़ना सुखद लगा ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं सार्थक भाव अभिव्यक्ति...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteवांछनीय मानव गुण... बहुत सुन्दर. बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन संवेदना से भरी चिंतन को प्रेरित करती
ReplyDeleteचेहरा शोभित होता उर की प्रसन्नता से,
मानव की शोभा शुभ कर्म करने से है।
अति सुन्दर..
ReplyDeleteसार गर्भित और सुन्दर रचना
ReplyDeleteसार्थक सूक्तियाँ........
ReplyDeleteउपयोगी और लाभकारी पंक्तियाँ. सुंदर भावमयी.
ReplyDeleteमानव की शोभा शुभ कर्म करने से है
बहुत अच्छा छंद लिखा है
आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी !
पिछली कई पोस्ट्स के दोहों और अन्य रचनाओं को भी अभी पढ़ा...
सारी रचनाएं सराहनीय हैं ।
श्रेष्ठ सृजन हेतु हार्दिक बधाई !
शुभकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार