उर की प्रसन्नता




दोनों हाथों की शोभा है दान करने से अरु,
मन की शोभा बड़ों का मान करने से है।
दोनों भुजाओं की शोभा वीरता दिखाने अरु,
मुख की शोभा तो प्यारे सच बोलने से है।
कान की शोभा है मीठी वाणी सुनने से अरु,
आंख की शोभा तो अच्छे भाव देखने से है।
चेहरा शोभित होता उर की प्रसन्नता से,
मानव की शोभा शुभ कर्म करने से है।

                                         -
महेन्द्र वर्मा

13 comments:

  1. सुंदर भाव एवं अभिव्यक्ति भी ....!!

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  2. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा

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  3. सारगर्भित पंक्तियाँ

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  4. उच्च भाव और ऊँचे विचार ,,,,
    शुभकामनायें!

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  5. बहुत सुंदर भाव .... बहुत दिनों बाद आपको पढ़ना सुखद लगा ।

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  6. बहुत ही सुंदर एवं सार्थक भाव अभिव्यक्ति...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  7. वांछनीय मानव गुण... बहुत सुन्दर. बधाई.

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  8. बेहतरीन संवेदना से भरी चिंतन को प्रेरित करती

    चेहरा शोभित होता उर की प्रसन्नता से,
    मानव की शोभा शुभ कर्म करने से है।

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  9. सार गर्भित और सुन्दर रचना

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  10. उपयोगी और लाभकारी पंक्तियाँ. सुंदर भावमयी.

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  11. मानव की शोभा शुभ कर्म करने से है
    बहुत अच्छा छंद लिखा है
    आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी !

    पिछली कई पोस्ट्स के दोहों और अन्य रचनाओं को भी अभी पढ़ा...
    सारी रचनाएं सराहनीय हैं ।
    श्रेष्ठ सृजन हेतु हार्दिक बधाई !

    शुभकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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