सद्गुण ही पर्याप्त है

   
पुष्पगंध विसरण करे, चले पवन जिस छोर,
किंतु कीर्ति गुणवान की, फैले चारों ओर ।

ग्रंथ श्रेष्ठ गुरु जानिए, हमसे कुछ नहिं लेत,
बिना क्रोध बिन दंड के, उत्तम विद्या देत ।

मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि कहि जाहिं ।

जो जो हैं पुरुषार्थ से, प्रतिभा से सम्पन्न,
संपति पांच विराजते, तन मन धन जन अन्न ।

पाने की यदि चाह है, इतना करें प्रयास,
देना पहले सीख लें, सब कुछ होगा पास ।

आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में है व्यर्थ,
एक वर्ष उद्यम भरा, महती इसका अर्थ ।

विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का संसार ।

                                             
                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

11 comments:

  1. आदरणीय महेन्द्र सा, अद्भुत इनका ज्ञान,
    शब्द नहीं सामर्थ्य नहीं, कैसें करें बखान!
    नेह यूँ ही बरसाइये, अनुभव की बरसात
    मार्ग दिखाए यह हमेंं ज्ञान दीप दिन रात!

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  2. विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
    बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का संसार ।
    .... बहुत सुन्दर सीख भरी प्रस्तुति

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  3. आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में है व्यर्थ,
    एक वर्ष उद्यम भरा, महती इसका अर्थ ।

    गहन ,शिक्षाप्रद और विवेकपूर्ण प्रस्तुति ...आभार

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  4. आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में है व्यर्थ,
    एक वर्ष उद्यम भरा, महती इसका अर्थ ।
    .... विवेकपूर्ण प्रस्तुति ...आभार

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  5. बहुत सुन्दर, अर्थपूर्ण दोहे.....

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  6. सार्थक ... अर्थपूर्ण दोहे हैं ...

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  7. नि:सृत भाव स्वयं में ही रोक ले रहा है.. अति सुन्दर..

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  8. नीति के ये दोहे छंद में आपकी महारत को सिद्ध करते हैं।

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  9. ज्ञान के सुंदर मोती
    कविता शाश्वत शिल्प में पिरोती

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  10. ज्ञान के सुंदर मोती
    कविता शाश्वत शिल्प में पिरोती

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