घर की चौखट

गूँज उठा पैग़ाम आखि़री, चलो ज़रा,
‘जो बोया था काट रहा हूँ, रुको ज़रा।’

हर बचपन में छुपे हुए हैं हुनर बहुत,
आहिस्ता से चाबी उनमें भरो ज़रा।

औरों के बस दोष ढूँढ़ते रहते हो,
अपने ज़ुल्मों की गिनती भी करो ज़रा।

ऊब उठेगा, किसको फुरसत सुनने की,
अपने दिल का
हा किसी से कहो ज़रा।

ख़ामोशी की भी अपनी भाषा होती है,
मन के ज़रिए अहसासों को सुनो ज़रा।

कितनी बेरहमी से सर काटे तुमने,
ऊपर भी है एक अदालत, डरो ज़रा।

क़द ऊँचा कर दिया तुम्हारा अपनों ने,
घर
की चौखट  छोटी-सी है, झुको ज़रा।

                                                              
-महेन्द्र वर्मा

11 comments:

  1. एक अच्छी और असल में दिलनशीं ग़ज़ल वही होती है जिसकी व्यापकता मानवीय स्तर तक चली जाती है. प्रशंसनीय ग़ज़ल.

    हर बचपन में छुपे हुए हैं हुनर बहुत,
    आहिस्ता से चाबी उनमें भरो ज़रा।

    औरों के बस दोष ढूँढ़ते रहते हो,
    अपने ज़ुल्मों की गिनती भी करो ज़रा।

    ये दो शे'र बहुत अच्छे लगे.

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  2. क़द ऊँचा कर दिया तुम्हारा अपनों ने,
    घर की चौखट छोटी-सी है, झुको ज़रा।
    ............. बहुत सुन्दर
    नम्रता शालीनता की निशानी है

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  3. ख़ामोशी की भी अपनी भाषा होती है,
    मन के ज़रिए अहसासों को सुनो ज़रा।

    अद्भुत पंक्तियाँ

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  4. Bahut achchi ghazal hai. Har sher behtareen

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  5. हर बचपन में छुपे हुए हैं हुनर बहुत,
    आहिस्ता से चाबी उनमें भरो ज़रा।..
    बहुत खूब ... हर शेर जैसे कुछ न कुछ कहना चाहता है ... समाज और परिस्थितियों का विश्लेषण करता ...

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  6. सभी शेर बहुत उम्दा. ये बहुत ख़ास लगे...

    औरों के बस दोष ढूँढ़ते रहते हो,
    अपने ज़ुल्मों की गिनती भी करो ज़रा।

    क़द ऊँचा कर दिया तुम्हारा अपनों ने,
    घर की चौखट छोटी-सी है, झुको ज़रा।

    दाद स्वीकारें.

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  7. ख़ामोशी की भी अपनी भाषा होती है,
    मन के ज़रिए अहसासों को सुनो ज़रा।

    ...क्या बात वाह!

    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….... बारिश की वह बूँद:)

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  8. कितनी बेरहमी से सर काटे तुमने,
    ऊपर भी है एक अदालत, डरो ज़रा। jis din darenge us din se ye kam chhod denge ..

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  9. हर बचपन में छुपे हुए हैं हुनर बहुत,
    आहिस्ता से चाबी उनमें भरो ज़रा। अच्‍छी नसीहत छिपी हुई है इस शेर में। बढि़या।

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  10. ख़ामोशी की भी अपनी भाषा होती है,
    मन के ज़रिए अहसासों को सुनो ज़रा।

    कितनी बेरहमी से सर काटे तुमने,
    ऊपर भी है एक अदालत, डरो ज़रा।

    बहुत खूबसूरती से बयां किया है दिल के अहसासों को।

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  11. वाह...सुन्दर पोस्ट...
    समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हिन्दी
    और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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