आदमी को आदमी-सा फिर बना दे देवता,
काल का पहिया ज़रा उल्टा घुमा दे देवता।
लोग सदियों से तुम्हारे नाम पर हैं लड़ रहे,
अक़्ल के दो दाँत उनके फिर उगा दे देवता।
हर जगह मौज़ूद पर सुनते कहाँ हो इसलिए,
लिख रखी है एक अर्ज़ी कुछ पता दे देवता।
शौक से तुमने गढ़े हैं आदमी जिस ख़ाक से,
और थोड़ी-सी नमी उसमें मिला दे देवता।
लोग तुमसे भेंट करवाने का धंधा कर रहे,
दाम उनको बोल कर कुछ कम करा दे देवता।
धूप-धरती-जल-हवा-आकाश के अनुपात को,
कुछ बदल कर देख थोड़ा फ़र्क़ ला दे देवता।
आजकल दुनिया की हालत देख तुम ग़मगीन हो,
कुछ ग़लत मैंने कहा हो तो सज़ा दे देवता।
-महेन्द्र वर्मा
काल का पहिया ज़रा उल्टा घुमा दे देवता।
लोग सदियों से तुम्हारे नाम पर हैं लड़ रहे,
अक़्ल के दो दाँत उनके फिर उगा दे देवता।
हर जगह मौज़ूद पर सुनते कहाँ हो इसलिए,
लिख रखी है एक अर्ज़ी कुछ पता दे देवता।
शौक से तुमने गढ़े हैं आदमी जिस ख़ाक से,
और थोड़ी-सी नमी उसमें मिला दे देवता।
लोग तुमसे भेंट करवाने का धंधा कर रहे,
दाम उनको बोल कर कुछ कम करा दे देवता।
धूप-धरती-जल-हवा-आकाश के अनुपात को,
कुछ बदल कर देख थोड़ा फ़र्क़ ला दे देवता।
आजकल दुनिया की हालत देख तुम ग़मगीन हो,
कुछ ग़लत मैंने कहा हो तो सज़ा दे देवता।
-महेन्द्र वर्मा
बहुत खूब , मंगलकामनाएं वर्मा जी !!
ReplyDeleteBahut Umda.....
ReplyDeleteशौक से तुमने गढ़े हैं आदमी जिस ख़ाक से,
ReplyDeleteऔर थोड़ी-सी नमी उसमें मिला दे देवता।
वाह क्या खूबसूरत लिखते हैं।
वर्मा सा.
ReplyDeleteवर्त्तमान युग की अनोखी और सटीक प्रार्थना. यही नहीं, आपकी इस प्रार्थना पर आमीन कहने को दिल चाहता है!!
शौक से तुमने गढ़े हैं आदमी जिस ख़ाक से,
ReplyDeleteऔर थोड़ी-सी नमी उसमें मिला दे देवता।
लोग तुमसे भेंट करवाने का धंधा कर रहे,
दाम उनको बोल कर कुछ कम करा दे देवता।
धूप-धरती-जल-हवा-आकाश के अनुपात को,
कुछ बदल कर देख थोड़ा फ़र्क़ ला दे देवता।
बहुत सच्ची ग़ज़ल आदरणीय
लोग तुमसे भेंट करवाने का धंधा कर रहे,
ReplyDeleteदाम उनको बोल कर कुछ कम करा दे देवता।...
बहुत खूब ... जबरदस्त व्यंग की धार है आपकी लेखनी में ... बधाई हो इस कमाल की ग़ज़ल के लिए ...
सुन्दर रचना !
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर !
मैं आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हु,
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है , अगर पसंद आये तो कृपया फॉलो करे और अपने सुझाव भेजते रहे !
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपकी आवाज़ उन तक पहुंचे. सुन्दर लिखा है.
ReplyDeleteआज के यथार्थ की सटीक अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआजकल दुनिया की हालत देख तुम ग़मगीन हो,
ReplyDeleteकुछ ग़लत मैंने कहा हो तो सज़ा दे देवता।
दिल तक उतर गयी
भावमयी प्रवाहमयी रचना और बहुत सुंदर भी. वाह!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना। बहुत बहुत मंगलकामनाएं आपको।
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत ही सुदर ग़ज़ल है सर जी।
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