वह
अनादि है
अनंत है
उसे
न तो
उत्पन्न किया जा सकता है
और न ही नष्ट
उसका
नहीं कोई आकार
रूप नहीं, गुण नहीं
वह
पदार्थ भी नहीं
किंतु विद्यमान है यत्र-तत्र-सर्वत्र
कण-कण में है वह
व्यक्त कर लेता है
स्वयं को अनेक रूपों में भी
कुछ विद्वान
इसे ऊर्जा कहते हैं
किंतु
मुझे तो यह
‘क्लोन’ लगता है
छांदोग्य उपनिषद
में वर्णित ब्रह्म का।
-महेन्द्र वर्मा
अनादि है
अनंत है
उसे
न तो
उत्पन्न किया जा सकता है
और न ही नष्ट
उसका
नहीं कोई आकार
रूप नहीं, गुण नहीं
वह
पदार्थ भी नहीं
किंतु विद्यमान है यत्र-तत्र-सर्वत्र
कण-कण में है वह
व्यक्त कर लेता है
स्वयं को अनेक रूपों में भी
कुछ विद्वान
इसे ऊर्जा कहते हैं
किंतु
मुझे तो यह
‘क्लोन’ लगता है
छांदोग्य उपनिषद
में वर्णित ब्रह्म का।
-महेन्द्र वर्मा
ऊर्जा के अनेक आयाम ... सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteनई परिभाषा
ReplyDeleteऊर्जा को कुछ भी कह लीजिए, बस अंधविश्वास के प्रति जागरूक रहिए.
ReplyDeleteशब्दों में उतरे हैं भाव खुद ही ...सुन्दर
ReplyDeleteवाह कितनी सुन्दर व्याख्या .... सच है ब्रह्म के ही विविध स्वरूप हैं कण कण में
ReplyDeleteबहुत खूब, मंगलकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर बन पड़ा है।
ReplyDeleteनिखूट सत्य .
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