शीत - सात छवियाँ



धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव,
ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव ।

रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद,
पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर बूँद ।

सूरज हमने क्या किया, क्यों करता परिहास,
धुआँ-धुआँ सी जि़ंदगी, धुंध-धुंध विश्वास ।

मानसून की मृत्यु से, पर्वत है हैरान,
दुखी घाटियाँ ओढ़तीं, श्वेत वसन परिधान ।

कितनी निठुरा हो गई, आज पूस की रात,
नींद राह तकती रही, सपनों की बारात ।

उम्र नहीं अब देखती, छोटी चादर माप,
मन को ऊर्जा दे रहा, जीवन का संताप ।

बुझी अँगीठी देखती, मुखिया बेपरवाह,
परिजन हुए विमूढ़-से, वाह करें या आह ।
                                                                  -महेन्द्र वर्मा

13 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना।

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  2. छवियोंं की विविधता में अनुभूतियों की विराटता को समोना आप ही कर सकते हैं. बहुत खूब.

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  3. वाह..बहुत सुन्दर और रोचक दोहे...

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  4. बेहद भावपूर्ण दोहे, बधाई.

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  5. बहुत प्रभावशाली दोहे......बहुत बहुत बधाई.....

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  6. सुन्दर व सार्थक रचना...
    नववर्ष मंगलमय हो।
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  7. वाह! लाजवाब!

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  8. सुन्दर और रोचक दोहे...

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  9. बहुत कमाल के दोने .. अनेक जीवन के रंग समेटे हुए ... बेहतरीन ...

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  10. बहुत सुन्दर दोहे

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