जो भी होगा अच्छा होगा



जो  भी   होगा  अच्छा   होगा,
फिर क्यूँ सोचें कल क्या होगा ।

भले  राह  में  धूप  तपेगी,
मंज़िल पर तो साया होगा ।

दिन को ठोकर खाने वाले,
तेरा  सूरज  काला  होगा ।

पाँव  सफ़र  मंज़िल सब ही हैं,
क़दम-दर-क़दम चलना होगा ।

कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे   घर   आईना   होगा ।
 

-महेन्द्र वर्मा

10 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " होरी को हीरो बनाने वाले रचनाकार मुंशी प्रेमचंद “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. ‘‘ब्लाग बुलेटिन’’ के प्रति आभार ।

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  3. बहुत बढ़िया पंक्तियाँ

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  4. बहुत सुंदर कविता जो कदम-दर-कदम जीवन जीने के नुक़्ते बताती चलती है.
    कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
    तेरे घर आईना होगा ।
    अंततः ख़ुद को अपने ही आईने में परखना और सँवरना होता है. बहुत ख़ूब महेंद्र जी.

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  5. दिन को ठोकर खाने वाले ...
    वाह .. बहुत ही लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल में ... दिल में सीधे उतरते हैं ...

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  6. कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
    तेरे घर आईना होगा ।

    ...वाह...बहुत सुन्दर...सभी अशआर लाज़वाब...

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  7. कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
    तेरे घर आईना होगा ।
    ...........
    शब्द ऐसे जी दिल में सीधे उतरते हैं

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