धूप गरीबी झेलती,
बढ़ा ताप का भाव,
ठिठुर रहा आकाश है,
ढूँढ़े सूर्य अलाव ।
बढ़ा ताप का भाव,
ठिठुर रहा आकाश है,
ढूँढ़े सूर्य अलाव ।
रात रो रही रात भर,
अपनी आंखें मूँद,
पीर सहेजा फूल ने,
पीर सहेजा फूल ने,
बूँद-बूँद फिर बूँद ।
सूरज हमने क्या किया,
सूरज हमने क्या किया,
क्यों करता परिहास,
धुआँ-धुआँ सी ज़िन्दगी
धुआँ-धुआँ सी ज़िन्दगी
धुंध-धुंध विश्वास ।
मानसून की मृत्यु से,
मानसून की मृत्यु से,
पर्वत है हैरान,
दुखी घाटियाँ ओढ़तीं,
दुखी घाटियाँ ओढ़तीं,
श्वेत वसन परिधान ।
कितनी निठुरा हो गई,
कितनी निठुरा हो गई,
आज पूस की रात,
नींद राह तकती रही,
नींद राह तकती रही,
सपनों की बारात ।
उम्र नहीं अब देखती,
उम्र नहीं अब देखती,
चादर का परिमाप
मन को ऊर्जा दे रहा,
मन को ऊर्जा दे रहा,
जीवन का संताप ।
बुझी अँगीठी देखती,
बुझी अँगीठी देखती,
मुखिया बेपरवाह,
परिजन हुए विमूढ़-से,
परिजन हुए विमूढ़-से,
वाह करें या आह । -महेन्द्र वर्मा
बहुत सुन्दर दोहे।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर गजल
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