शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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आरती
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आरती
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बाँसुरी हो गई
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इल्म की चाह ही बंदगी हो गई, अक्षरों की छुअन आरती हो गई । सामना भी हुआ तो दुआ न सलाम, अजनबी की तरह ज़िंदगी हो गई । प्यास ही प्यास...
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पूजा से पावन
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जाने -पहचाने बरसों के फिर भी वे अनजान लगे, महफ़िल सजी हुई है लेकिन सहरा सा सुनसान लगे । ...
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