शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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तितलियों का ज़िक्र हो

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प्यार का, अहसास का, ख़ामोशियों का ज़िक्र हो, महफ़िलों में अब ज़रा तन्हाइयों का ज़िक्र हो। मीर, ग़ालिब की ग़ज़ल या, जिगर के कुछ शे‘र ह...
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कुछ और

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मेरा कहना था कुछ और, उसने समझा था कुछ और । धुँधला-सा है शाम का  सफ़र, सुबह उजाला था कुछ और । गाँव जला तो बरगद रोया, उसका दुखड़ा था कुछ और । अ...
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महेन्‍द्र वर्मा
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