शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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घर की चौखट

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गूँज उठा पैग़ाम आखि़री, चलो ज़रा, ‘जो बोया था काट रहा हूँ, रुको ज़रा।’ हर बचपन में छुपे हुए हैं हुनर बहुत, आहिस्ता से चाबी उनमें भरो ज़रा। ...
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महेन्‍द्र वर्मा
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