शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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दरिया
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अपने हिस्से की बूँदें
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तूफ़ाँ बनकर वक़्त उमड़ उठता है अक्सर, खोना ही है जो कुछ भी मिलता है अक्सर । उसके माथे पर कुछ शिकनें-सी दिखती हैं, मेरी साँसों का हिसाब र...
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