शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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अब न कहना

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सबने उतना पाया जिसका हिस्सा जितना, क्या मालूम, मेरे भीतर कुछ  मेरा है या  सब उसका, क्या मालूम । कि़स्मत का आईना बेशक होता है बेहद नाज़ुक, ...
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महेन्‍द्र वर्मा
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