शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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बाँसुरी हो गई

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 इल्म की चाह ही बंदगी हो गई, अक्षरों की छुअन आरती हो गई । सामना भी हुआ तो दुआ न सलाम, अजनबी की तरह ज़िंदगी हो गई । प्यास ही प्यास...
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महेन्‍द्र वर्मा
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