शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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श्रद्धा की आंखें नहीं

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जंगल तरसे पेड़ को, नदिया तरसे नीर, सूरज सहमा देख कर, धरती की यह पीर । मृत-सी है संवेदना, निर्ममता है शेष, मानव ही करता रहा, मानवता से द्वेष...
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महेन्‍द्र वर्मा
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