अब अंधेरे को डराना चाहिए
फिर कोई सूरज उगाना चाहिए।
शोर से ऊबी गली ने फिर कहा
झींगुरों को गुनगुनाना चाहिए।
जुगनुओं को देख तारे जल गए
अब हमें भी झिलमिलाना चाहिए।
प्यार के पल को समझने के लिए
सुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए।
आदमी को कुछ नही तो कम से कम
जि़्दगी से सुर मिलाना चाहिए।
क्या पता कब दाग़ लग जाए कहीं
वक़्त से दामन बचाना चाहिए।
-महेन्द्र वर्मा
बहुत उत्तम सीख है.अगर लोग पालन करें तो और भी उत्तम बात होगी
ReplyDeleteजुगनुओं को देख तारे जल गये,अब हमें भी झिलमिलाना चाहिये।
ReplyDeleteबहरे रम्ल में एक ख़ूबसूरत मुकम्मल ग़ज़ल के लिये वर्मा जी आप मुबारकबाद के मुस्तहक़ हैं ।
एक ज़बरदस्त इंक़लाब है इस ग़ज़ल में... बहुत ही सरल भाषा में, बिना कोई शब्दों काव्यर्थ जाल बुने,एक एक शेर अपनी बात गहराई सए कहता है.
ReplyDeleteकॉमा की जगह बड़ी कोष्ठक अखर रही है!
महेन्द्र जी, गजल के बहाने आपने बहुत प्यारी बातें कह दीं। बधाई।
ReplyDelete---------
पति को वश में करने का उपाय।
सुन्दर सन्देश देती हुई इस सार्थक ग़ज़ल के लिए आपका आभार .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! बेहतरीन रचना!
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल, अच्छे ख़्यालात।
ReplyDeleteबहुत उत्तम और व्यवहारिक सीख है आपकी इस रचना में-
ReplyDeleteआदमी को कुछ नही तो कम से कम
जि़ऩ्दगी से सुर मिलाना चाहिए।
जुगनुओं को देख तारे जल गए
ReplyDeleteअब हमें भी झिलमिलाना चाहिए
वाह वाह भाई,
खूब लिख रहे हैं और कमाल का लिख रहे हैं आप .
क्या बात है
क्या पता कब दाग़ लग जाए कहीं
ReplyDeleteवक़्त से दामन बचाना चाहिए.....
very interesting ....
महेन्द्र जी
ReplyDeleteनमस्कार !
सुन्दर सन्देश देती हुई इस सार्थक ग़ज़ल
पसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है
अब अंधेरे को डराना चाहिए
ReplyDeleteफिर कोई सूरज उगाना चाहिए।
महेंद्र जी बहुत ही सार्थक कदम के लिये प्रेरित करती सुंदर ग़ज़ल........ सुंदर प्रस्तुति.
प्यार के पल को समझने के लिए
ReplyDeleteसुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए।
... bahut sundar !!
क्या पता कब दाग़ लग जाए कहीं
ReplyDeleteवक़्त से दामन बचाना चाहिए।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल महेंद्र जी ...
आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ....
बहुत ही प्यारी ग़ज़ल.
ReplyDeletebahut sunder gajal
ReplyDeleteis bar mere blog par
"main"
bahut hi gyaandayak seekh hai....
ReplyDeleteachhi panktiyaan....
प्यार के पल को समझने के लिए
ReplyDeleteसुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए।
वाह बहुत सुन्दर गज़ल। बधाई।
umda gazal.
ReplyDeletehar sher sundar!
nav jagran ka sandesh deti sarthak rachna.
प्यार के पल को समझने के लिए
ReplyDeleteसुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए ..
Ye bhi sach hai ... par ye bhi sach hai ki kabhi kabhi pyaar ek pal mein hi samajh aa jata hai ...
bahut hi lajawaab hain sab sher Mahendr Ji ...
बहुत प्यारी रचना है , हार्दिक शुभकामनायें वर्मा जी !
ReplyDeleteअब अंधेरे को डराना चाहिए
ReplyDeleteफिर कोई सूरज उगाना चाहिए।
यकीनन सुन्दर संकल्पित रचना और आह्वान...
शोर से ऊबी गली ने फिर कहा
ReplyDeleteझींगुरों को गुनगुनाना चाहिए।
वाह !वाह !
इस शेर ने तो कमाल कर दिया !
धन्यवाद महेंद्र जी !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आनंद! आनंद! आनंद!
ReplyDeleteआशीष
.
ReplyDeleteप्यार के पल को समझने के लिए
सुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए....
जो प्यार को नहीं समझते वो , उन्हें वाकई में एक ज़माना लगता है समझने में। और जो समझने वाले होते हैं वो कई ज़माने तक उन लम्हों को जीते हैं।
.
आपकी तरह बाकी शायरों को भी,
ReplyDeleteनज़रिया-ए-उम्मीद अपनाना चाहिए ;)
बहुत अच्छे साहब , लिखते रहिये ...
आदमी को कुछ नहीं तो कम से कम
ReplyDeleteजिंदगी से सुर मिलाना चाहिए।
आज दुबारा आपकी गजल पढी, तो इस शेर पर नजर ठहर सी गयी। वाकई बहुत अच्छी बात कही आपने। बधाई।
---------
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
शोर से ऊबी गली ने फिर कहा
ReplyDeleteझींगुरों को गुनगुनाना चाहिए।
वाह !वाह !शुभकामनायें....
Happy Lohri To You And Your Family..
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bhai mahendraji bahut hi damdar prastuti badhai makar sankranti/pongal ki bhi
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक कदम के लिये प्रेरित करती सुंदर ग़ज़ल| बधाई।
ReplyDeleteआदमी को कुछ नही तो कम से कम
ReplyDeleteजि़्दगी से सुर मिलाना चाहिए।
सुंदर अभिव्यक्ति .....
आदमी को कुछ नही तो कम से कम
ReplyDeleteजि़्दगी से सुर मिलाना चाहिए।
बहुत सुंदर मन पर छाप छोड़ती हुई रचना -
शुभकामनाएं
sahitya aur sangeet se mili hui veena hai --tabhi to itni sureeli hai.
बहुत सुन्दर गज़ल.. महेंद्र जी !! आज आपकी यह गज़ल चर्चामंच पर है..
ReplyDelete...आपका धन्यवाद ...मकर संक्रांति पर हार्दिक बधाई
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_14.html
प्यार के पल को समझने के लिए
ReplyDeleteसुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए।
nahi lagta ki pyar ko samjhne ke liye, ek zamaana guzaarna padega......
kehte hain in bhawnaaon ko samajhne ke liye to kshan bhar ke liye aankhe milna hi kaafi hai........
अक्सर देखने में आता है कि लोग मतला और उस के बाद के चंद शे'र तो प्रभावशाली ले लेते हैं, और उस के बाद एक ऊब सी लगाने लगती है, पर महेंद्र भाई आपकी इस ग़ज़ल का हर एक शे'र पूरअसर है| बधाई|
ReplyDeleteजुगनुओं को देख तारे जल गए ...
ReplyDelete......प्रभावशाली ग़ज़ल...
बहुत सुंदर भाव ........
ReplyDeleteप्यार के पल को समझने के लिए
सुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए।
लाजवाब!!
सादर
अनु
बहुत ज़रूरी है ज़िन्दगी से सुर मिलाना !
ReplyDeleteआदमी को कुछ नही तो कम से कम
ReplyDeleteजिंदगी से सुर मिलाना चाहिए।
बिलकुल सही कहा है आपने... गहन अभिव्यक्ति
अब अंधेरे को डराना चाहिए
ReplyDeleteफिर कोई सूरज उगाना चाहिए।bilkul sahi kaha apne....
आदमी को कुछ नही तो कम से कम
ReplyDeleteजि़्दगी से सुर मिलाना चाहिए।
मिले सुर मेरा-तुम्हारा...
तो सुर बने हमारा...
और जब हमारा-तुम्हारा सुर मिले तो
जिंदगी से भी सुर मिल ही जाएगा...