उतना ही सबको मिलना है



ग़ज़ल

उतना ही सबको मिलना है,
जिसके हिस्से में जितना है।


क्यूं ईमान सजा कर रक्खा,
उसको तो यूं ही लुटना है।


ढोते रहें सलीबें अपनी, 
जिनको सूली पर चढ़ना है।


मुड़ कर नहीं देखता कोई, 
व्यर्थ किसी से कुछ कहना है।


जंग आज की जीत चुका हूं,
कल जीवन से फिर लड़ना है।


सूरज हूं जलता रहता हूं,
दुनिया को ज़िंदा रखना है।


बोल सभी लेते हैं लेकिन,
किसने सीखा चुप रहना है।

                                              -महेन्द्र वर्मा


42 comments:

  1. बहुत प्रेरणादायक ,आशावादी और सशक्त रचना है.

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  2. जीवन दर्शन है आपकी इसकी रचना में। बधाई हो आपको।

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  3. सूरज हूं जलता रहता हूं,
    दुनिया को ज़िदा रखना है।

    वाह वाह वाह.
    बड़ी सहज और सार्थक अभिव्यक्ति आपके शेर में है.
    मज़ा आ जाता है आपको पढ़कर.

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  4. बोल सभी लेते हैं लेकिन,
    किसने सीखा चुप रहना है।

    आसान भाषा में पिरोए गए मोती. बहुत खूब.

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  5. जंग आज की जीत चुका हूं,
    कल जीवन से फिर लड़ना है।

    इन पंक्तियों ने मुझमे जोश भर दिया . आभार आपका .

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  6. बहुत सुंदर ग़ज़ल -
    प्रत्येक शेर गहराई से भरा-
    काबिले तारीफ़ . -

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  7. जंग आज की जीत चुका हूं,
    कल जीवन से फिर लड़ना है।
    बेहतरीन शे'र , सुन्दर ग़ज़ल, बधाई।

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  8. क्यूं ईमान सजा कर रक्खा,
    उसको तो यूं ही लुटना है।

    वाह ! बहुत सार्थक प्रस्तुति..हरेक शेर लाज़वाब..

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  9. बोल सभी लेते हैं लेकिन,
    किसने सीखा चुप रहना है।

    प्रेरणादायक सन्देश देती अच्छी गज़ल

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  10. वर्मा जी, नमस्कार !
    बहुत ही अर्थपूर्ण और गहन गंभीर रचना.
    साथ ही प्रेरणादायी भी.

    बोल सभी लेते हैं लेकिन,
    किसने सीखा चुप रहना है।

    दो शब्द कहने का मन कर रहा है -.

    मौन में भी यह चिंतन धारा
    दीप्त है, सतत प्रदीप्त है.
    मौन यह चिन्तक का हो,
    कवि का हो या संस्कृतिका.
    अथवा यह हो ब्लैक होल ,
    या अपनी प्रकृति का.
    यही मौन सृजन का पूर्वार्द्ध है,
    बाकी सब कुछ उत्तरार्द्ध है.

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  11. सार्थक शब्द हैं आपके।
    मौन रहना सीख लें तो लाभ ही लाभ है।

    इस पोस्ट से अलग कुछ बात, राहुल सिंह जी की पोस्ट ’देबार’ पर आपका कमेंट बहुत पसंद आया था। उसके लिये भी आभार स्वीकार करें।

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  12. वर्मा सा!
    आपके शेर प्रतिक्रिया करने के लिये नहीं होते, जीवन में उतारने के लिये होते हैं!!

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  13. हर शेर अर्थपूर्ण है जीवन के विविध पक्षों से सम्बंधित ...आपका आभार

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  14. मुड़ कर नहीं देखता कोई,
    व्यर्थ किसी से कुछ कहना है ...
    Jeevan se bhari baaten ... naya darshan hai har sher mein ....

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  15. बेहतरीन शेर ! उम्दा ग़ज़ल !!

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  16. sahi kaha sabne bolna hi seekha hai kisne seekha chup rahna hai.bahut khoob.

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  17. दुनिया को ज़िंदा रखने के लिए सूरज बन कर
    जलते रहने की भावना दिल को छू गयी. अच्छी रचना . आभार.

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  18. आशावादी और सकारात्मक सोच लिए पंक्तियाँ ..... बेहद सुंदर

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  19. sundar...varmaji, maza aa gaya. kamaal kalekhan hai aapkaa. khush hoo yah soch kar ki apne rajy men bhi is tarah ka lekhan karane vale log hai. shubhkamanaye.

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  20. आद. महेंद्र जी,
    ढोते रहें सलीबें अपनी,
    जिनको सूली पर चढ़ना है।

    इस एक शेर ने पूरी व्यवस्था की सच्चाई बयाँ कर दिया है !
    पूरी ग़ज़ल समाज के सरोकारों को रखांकित करती है !
    आभार

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  21. महेंद्र जी ,सूली चढ़ ..सूरज सा जलता रहना और प्रतिदिन का जंग जीतना
    ....एक हौसला देती रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामना..

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  22. क्यूं ईमान सजा कर रक्खा,
    उसको तो यूं ही लुटना है।

    बेहद उम्दा शेर। हर शेर दाद के काबिल।

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  23. वाह...वाह...वाह...

    सभी के सभी शेर दिल तक पहुँचने वाले...

    बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर...

    सुन्दर ग़ज़ल रची आपने...

    आनंद आ गया पढ़कर...

    बहुत बहुत आभार..

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  24. आदरणीय महेन्‍द्र जी, आपने जीवन के रहस्‍यों को इतनी सुंदर तरीके से कैसे गजल में पिरो दिया। मैं तो हतप्रभ हूं देखकर।

    ---------
    शिकार: कहानी और संभावनाएं।
    ज्‍योतिर्विज्ञान: दिल बहलाने का विज्ञान।

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  25. जंग आज की जीत चुका हूँ
    कल जीवन से फिर लड़ना है
    यही तो है जिन्दगी ...
    उम्दा शेर....जागती ग़ज़ल

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  26. सूरज हूं जलता रहता हूं,
    दुनिया को ज़िदा रखना है।

    हर पंक्ति में
    एक आह्वान , एक सन्देश ....
    मुबारकबाद .

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  27. बोल सभी लेते हैं लेकिन,
    किसने सीखा चुप रहना है।
    निशब्द हूँ , बहुत अच्छी रचना बधाई

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  28. ढोते रहें सलीबें अपनी,
    जिनको सूली पर चढ़ना है।

    बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल.
    सलाम

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  29. आदरणीय महेंद्र जी
    नमस्कार !
    वाह ! बहुत सार्थक प्रस्तुति..हरेक शेर लाज़वाब..

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  30. सूरज हूं जलता रहता हूं,
    दुनिया को ज़िदा रखना है।

    अच्छी रचना. बहुत बधाई!!

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  31. ढोते रहें सलीबें अपनी,
    जिनको सूली पर चढ़ना है।

    जंग आज की जीत चुका हूं,
    कल जीवन से फिर लड़ना है।सूरज हूं जलता रहता हूं,
    दुनिया को ज़िदा रखना है।

    वाह! हमेशा की तरह सार्थक प्रस्तुति…………हर शेर बेहतरीन्।

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  32. .

    उतना ही सबको मिलना है,
    जिसके हिस्से में जितना है॥

    निर्विकार होकर कर्म में सतत लगे रहने में ही जीवन की सार्थकता है । कभी कभी बहुत कुछ पा जाने की होड़ में व्यक्ति अपना छोटा सा सुख भी गवां बैठता है ।

    .

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  33. बहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति......

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  34. सूरज हूं जलता रहता हूं,
    दुनिया को ज़िंदा रखना है।

    सार्थक जीवन दर्शन. आभार...

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  35. बहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  36. बहुत खुबसूरत बात कही है ....

    बोल सभी लेते हैं लेकिन,
    किसने सीखा चुप रहना है |
    बहुत सुन्दर रचना |

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  37. ''जंग आज की जीत चुका हूं,
    कल जीवन से फिर लड़ना है।''
    कभी मैत्री, कभी झगड़ा, जीवन का द्वंद्व.

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  38. भाई महेंद्र जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आपको बधाई |

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  39. मौत की मंजि‍ल बड़ी अनूठी

    चाहो ना चाहो, बढ़ना है

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  40. यही जीवन है , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! शुभकामनायें आपको

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  41. बोलने से अधिक मुश्किल है चुप रहना, सीखना.

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