महाकवि संत गंगादास का जन्म ई. सन् 1823 में मेरठ जनपद के रसूलपुर गांव में हुआ था। इनका परिवार अत्यंत संपन्न था। उस समय इनके पिता के पास 600 एकड़ जमीन थी। किंतु परिवार से विरक्ति के कारण 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने बाबा विष्णुदास उदासी से शिष्यत्व ग्रहण कर लिया। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में संत गंगादास और उनके शिष्यों का उल्लेखनीय योगदान रहा।
संत गंगादास ने 25 से अधिक काव्य ग्रंथों और सैकड़ों स्फुट पदों का सृजन कर भारतेंदु हरिश्चंद्र के बहुत पहले खड़ी बोली को साहित्यिक भाषा का दर्जा दिया। इनके द्वारा रचित प्रमुख कथा-काव्य इस प्रकार हैं- पार्वती मंगल, नल दमयंती, नरसी भगत, ध्रुव भक्त, कृष्ण जन्म, नल पुराण, राम कथा, नाग लीला, सुदामा चरित, महाभारत पदावली, बलि के पद, रुक्मणी मंगल, भक्त प्रहलाद, चंद्रावती नासिकेत, भ्रमर गीत मंजरी, हरिचंद होली, हरिचंद के पद, गिरिराज पूजा, होली पूरनमल, पूरनलाल के पद, द्रौपदी चीर आदि।
संत गंगादास का देहावसान 90 वर्ष की आयु में भाद्रपद कृष्ण 8 वि. संवत 1970 तदनुसार ई. सन् 1913 को हुआ। इनकी समाधि रसूलपुर गांव के निकट चोपला में स्थित है।
प्रस्तुत है, संत गंगादास की दो कुंडलियां-
1.
बोए पेड़ बबूल के, खाना चाहे दाख,
ये गुन मत परगट करे, मन के मन में राख।
मन के मन में राख, मनोरथ झूठे तेरे,
ये आगम के कथन, कभी फिरते न फेरे।
गंगादास कह मूढ़, समय बीती जब रोए,
दाख कहां से खाय, पेड़ कीकर के बोए।
2.
जे पर के अवगुण लखे, अपने राखे गूढ़,
सो भगवत के चोर हैं, मंदमती जड़ मूढ़।
मंदमती जड़ मूढ़, करे निंदा जो पर की,
बाहर भरमें फिरे, डगर भूले निज घर की।
गंगादास बेगुरु पते पाए न घर के,
वो पगले हैं आप, पाप देखें जो पर के।
मंदमती जड़ मूढ़, करे निंदा जो पर की,
ReplyDeleteबाहर भरमें फिरे, डगर भूले निज घर की।
संत गंगा दास जी के कथन में शाश्वत सत्य है. पर निंदा करने वाला वास्तव में अपने घर का रास्ता भूल जाता है. आभार.
गंगादास बेगुरू पते पाये न घर के,
ReplyDeleteवो पगले हैं आप ,जो पाप देखें पर के।
आप जो काम इतिहास को प्रतिष्ठित करने का कर रहे हैं वह वंदनीय है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसंत गंगादास जी का जीवन परिचय और कुण्डलियाँ साहित्य की अनमोल धरोहर हैं.ऐसी विभूतियों की जानकारी नई पीढ़ी तक जरुर पहुँचनी चाहिये.साभार.
ReplyDeleteमहापुरुषों की जीवनी और
ReplyDeleteकृतियाँ प्रकाशित हो रही हैं |
सबसे बड़ा पुन्य कार्य
कर रहा है ब्लाग जगत ||
badhaai ||
औरन की फुल्ली लखैं , आपन ढेंढर नाय
ReplyDeleteऐसे मानुष ढेर हैं, चलिए सदा बराय
चलिए सदा बराय, काम न अइहैं भइया
करिहैं न सहयोग, जरुरत परिहै जेहिया
कह 'रविकर' समझाय, ठोकिये फ़ौरन गुल्ली
करिहैं न बकवाद, देख औरन की फुल्ली
फुल्ली = बहुत ही छोटी गलती
ढेंढर = ढेर सारा दोष
संत गंगा दास जी के कथन में शाश्वत सत्य है.
ReplyDeleteगहन बात कहती हुई अच्छी रचना
सच्ची बात कही आपने इस के लिए कोई भी तारीफ छोटी है...बहुत खूब हर्फ़ और सोच दोनों ही बहुत उम्दा...
महेंद्र वर्माजी संत परम्परा का प्राण -पोषण संजीवन इस दौर की महती आवश्यकता है .आप इसकी आपूर्ति कर रहें हैं .बधाई
ReplyDeleteएक से एक रत्न से आप हमें परिचय कराते रहते हैं। इसी श्रृंखला की यह कड़ी बहुत ही ज्ञानवर्धक और प्रेरक है।
ReplyDeleteनए संत की रचनाएं...वाह !
ReplyDeleteसंत गंगादास जी के विषय में सरल शब्दों में रोचक जानकारी प्रदान की है आपने .दोनों कुण्डलियाँ बहुत अच्छी लगी .आभार
ReplyDeleteबेहद संतुलित शब्दों में कहते है संत गंगादास जी, जानकारी के लिए साधुवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छी क्षणिकाएं .बहुत अच्छी प्रस्तुति बधाई
ReplyDeleteआज जिसे देखो वही बबूल कीकर बो रहा है और आम अंगूर की अपेक्षा करता है ! कवी गंगादास जी ने दूरदृष्टि के माध्यम से बहुत सही लिखा है ! वर्तमान समय में बेहद सटीक.!
ReplyDeleteInformative and educative.
ReplyDeleteशिक्षा प्रद और अनुकरणीय |बधाई
ReplyDeleteआशा
वो पगले हैं आप, पाप देखें जो पर के.....
ReplyDeleteअच्छी रचना व संकलन है.....
संत गंगा दास के बारे में पहली बार जाना, आभार आपका !
ReplyDeleteभारतेंदु हरिश्चंद्र जी से पहले k साहित्यिक प्रयासों से अवगत कराने के लिए बहुत बहुत आभार|
ReplyDeleteसंत गंगादास के विषय में इतनी सुन्दर पोस्ट पढवाने के लिए हार्दिक आभार .कुण्डलियाँ तो बस भीतर उतर रही है.
ReplyDeleteभाई महेंद्र जी बहुत ही सार्थक जानकारी देती आपकी यह पोस्ट भी अच्छी लगी बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteमहेंद्र भाई सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपको दिल से नमन.
ReplyDeleteमोती चुन चुन कर रख रहें हैं आप हमारे समक्ष.
प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
आभार.
कम पढ़ने को मिलती हें ऐसी रचनाएं, धन्यवाद.
ReplyDeleteसंत गंगादास जी का जीवन परिचय साहित्य की अनमोल धरोहर हैं.....ऐसी जानकारी नई पीढ़ी तक जरुर पहुँचनी चाहिये.....साभार
ReplyDeleteसंतो की वाणी हम सबके सामने रखने के लिए आप साधुवाद के पात्र है . आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
महेन्द्र जी, सच कहूँ गंगादास जी के बारे में पहली बार पढ या सुन रहा हूँ। ऐसे विस्मृत रचनाकार को प्रकाश में लाने के लिए आपका बहुत आभार।
ReplyDeleteमहापुरुषों की जीवनी और
ReplyDeleteकृतियाँ प्रकाशित हो रही हैं |
सबसे बड़ा पुन्य कार्य
कर रहा है ब्लाग जगत ||
badhaai ||
गंगादास कह मूढ़, समय बीती जब रोए,
ReplyDeleteदाख कहां से खाय, पेड़ कीकर के बोए।
हमारे देश में संत महात्माओं ने समाज सुधार के उल्लेखनीय प्रयास किये ..संत जी की दोनों कुंडलियाँ गागर में सागर भरने वाली हैं..
कोटि कोटि नमन...एवं शुभ कामनाएं !!!
आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके द्वारा हमें बहुत से अतुलनीय लोगों के बारे में जानकारी मिलती रहती है।
ReplyDeleteसंतकवि गंगा दास जी के बारे में नयी जानकारी मिली ....
ReplyDeleteउनकी नीतिपरक जीवनोपयोगी कुण्डलियाँ बड़ी अच्छी हैं..
बहुत-बहुत साधुवाद वर्मा जी ...
बहुत सुन्दर और प्रेरक जानकारी ...आभार
ReplyDeleteसंत गंगादार की उत्तम रचनाओं को पढवाने का शुक्रिया ...
ReplyDeleteSant gangadas ke darshan karwane ke liye aapka aabhaar.
ReplyDeleteChhota moonh badi baat , Lekin aap "daakh" ki ped bo rahe hain... Shubhkamnayein!!
इस सुन्दर पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
ReplyDeleteऐसी जानकारियाँ प्रेषित करने में बहुत कम लोग दिलचस्पी रखते हैं..आपका साधुवाद..