गुरु गोविंदसिंह जी विरचित सुविख्यात ग्रंथ ‘श्री दसम ग्रंथ‘ एक अद्वितीय आध्यात्मिक और धार्मिक साहित्य है। इस ग्रंथ में गुरु जी ने लगभग 150 प्रकार के वार्णिक और मात्रिक छंदों में भारतीय धर्म के ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक पात्रों के जीवन-वृत्तों की जहाँ एक ओर पुनर्रचना की है, वहीं देवी चंडी के प्रसंगों एवं चैबीस अवतारों के माध्यम से लोगों में धर्म-युद्ध का उत्साह भी भरा है।
‘जापु‘, ‘अकाल उसतति‘, ‘तैंतीस सवैये‘ आदि रचनाएँ आध्यात्मिक विकास एवं मानसिक उत्थान के मार्ग में आने वाले अवरोधों और उनके निराकरण का मार्ग प्रस्तुत करते हुए प्रेम को भगवद्प्राप्ति का सबल साधन मानती हैं।
‘चंडी चरित‘, ‘चंडी दी वार‘ स्त्री शक्ति को स्थापित करते हुए समाज में स्त्री को उचित सम्मान दिलाने का संकेत करती हैं।
प्रस्तुत है, ‘श्री दसम ग्रंथ‘ के अंतर्गत ‘चंडी चरित्र उकति बिलास‘ से उद्धरित आदिशक्ति देवी शिवा की अर्चना-
देहि सिवा बर मोहि इहै, सुभ करमन ते कबहूँ न टरौं।
न डरौं अरि सों जब जाई लरौं, निसचै करि आपनि जीत करौं।।
अरु सिखहों आपने ही मन को, इह लालच हउ गुन तउ उचरौं।
जब आव की अउध निदान बनै, अति ही रन में तब जूझ मरौं।।
अर्थ- हे परम पुरुष की कल्याणकारी शक्ति ! मुझे यह वरदान दो कि मैं शुभ कर्म करने में न हिचकिचाऊँ। रणक्षेत्र में शत्रु से कभी न डरूँ और निश्चयपूर्वक युद्ध को अवश्य जीतूँ। अपने मन को शिक्षा देने के बहाने मैं हमेशा ही तुम्हारा गुणानुवाद करता रहूँ तथा जब मेरा अंतिम समय आ जाए तो मैं युद्धस्थल में धर्म की रक्षा करते हुए प्राणों का त्याग करूँ।
धर्म ,अध्यात्म गुरुगोविन्द सिंह जी सभी के बारे में आपकी सुंदर और प्रवाहपूर्ण लेखनी से लिखा यह आलेख बहुत ही सार्थक और वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक भी है |आपका आभार
ReplyDeleteबहुमूल्य जानकारी प्रदान करने के लिये आभार.
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक प्रसंग और पंक्तियां हैं।
ReplyDeleteदसवी पातशाही श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की कई उत्कृष्ठ रचनाए हैं जिनमें से एक ---'चंडी दी वार' महिलाओ के त्याग और बलिदान का सरूप हैं वही ओरतो के शोर्य का भी वर्णन हैं ..उन्होंने हमेशा ओरतो को प्रोत्साहन दिया ---आज भी हमारे समाज में ओरतो को बराबर का हक मिला हुआ हें ---जहाँ पुरुष को 'सिंह' (शेर ) वही ओरतो को ' कौर' (शेरनी) का नाम दिया हैं ..आपका बहुत -बहुत धन्यवाद महेंदर जी ..
ReplyDelete.
ReplyDeleteहे परम पुरुष की कल्याणकारी शक्ति ! मुझे यह वरदान दो कि मैं शुभ कर्म करने में न हिचकिचाऊँ। रणक्षेत्र में शत्रु से कभी न डरूँ और निश्चयपूर्वक युद्ध को अवश्य जीतूँ। अपने मन को शिक्षा देने के बहाने मैं हमेशा ही तुम्हारा गुणानुवाद करता रहूँ तथा जब मेरा अंतिम समय आ जाए तो मैं युद्धस्थल में धर्म की रक्षा करते हुए प्राणों का त्याग करूँ।
यदि हम धर्म समझ सकें और उसका पालन कर सकें अंतिम समय तक , तो जीवन सार्थक हो जाए।
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वर्मा साहब,
ReplyDeleteये पंक्तियाँ मुर्दों में जान फूंक देने का काम करती हैं... आभार इस प्रस्तुति के लिए!!
‘चंडी चरित‘, ‘चंडी दी वार‘ स्त्री शक्ति को स्थापित करते हुए समाज में स्त्री को उचित सम्मान दिलाने का संकेत करती हैं।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !
सुन्दर और ज्ञान वर्धक जानकारी ... शुक्रिया ...
ReplyDeleteआपको नव रात्री की बहुत बहुत शुभकामनाएं .
सुन्दर जानकारी देती प्रस्तुति के लियी सादर आभार बड़े भईया....
ReplyDeleteगुरु जी ने अपने समय में कई क्रांतिकारी कार्य किए थे. उनके पाँच प्यारे निम्न जातियों से थे. चमकौर का गढ़ जीतने वाली सेना में इन्हीं जातियों के लोग थे. गुरु जी के कार्य का तथ्यपरक आकलन अभी भी अपेक्षित है. गुरु गोविंद सिंह के जुझारू रूप को रूपायित करती रचना देने के लिए आभार.
ReplyDeleteसार्थक और ज्ञानवर्धक पोस्ट ..
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक और सार्थक पोस्ट .. आपको नव रात्री की बहुत बहुत शुभकामनाएं .
ReplyDeleteसुंदर जानकारी देती बढ़िया प्रस्तुति.
ReplyDeleteचंडी के रूप में नारी के सम्मान में ग्रंथों की अच्छी जानकारी दी है देवी शिवा की अर्चना बहुत पसंद आई !वर्ना किसी कवी का यह दोहा तो मुझे आज तक समझ नहीं आया वो मन की भावना थी ये व्यंग .......ढोल गंवार ,शूद्र पशु नारी .......
ReplyDeleteभाषिक एवं भाव सौन्दर्य से भरपूर प्रस्तुति राष्ट्रीयता से सिंचित सच्चे हृदय की रचना .आभार इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगा! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteदुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bahut hi achchi jaankari...indian culture aur literature ko improvment aise hi rachnao se milta hai...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति महेंद्र जी !
ReplyDeleteगुरु जी के छंद बहुत ही अच्छे और प्रभावशाली हैं |
behad rocha chand...amooman is tarah ke sahitya se parichit karana ,,hame hamari dharohar se milana,,, ek kabile tarif prayas hai...gyan vardhak in tathyon tak pahuchaane ke liye aapko hardik dhanyawad,,,sadar pranam ke sath
ReplyDeleteगुरु गोविंदसिंह जी विरचित सुविख्यात ग्रंथ ‘श्री दसम ग्रंथ‘ की बढ़िया प्रस्तुति.
ReplyDeleteसादर निवेदन-
मेरी पुस्तक - सिख कथाएं - भी प्रकाशनाधीन है.
जीवन का बीजमंत्र..अति सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteसुंदर प्रेरणादायी पंक्तियाँ .....
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर बहुत ही अचछी जानकारी मिली । मेरी ओर से नवमी एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद .
ReplyDeleteये पंक्तियाँ महेंद्र कपूर जी ने गई हैं और हमेशा बाजुओं में जोश पैदा कर देती हैं ... नमन है सच्चे गुरु को ...
ReplyDeleteविजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
बहुत ही प्रेरक प्रसंग . दशहरा की शुभकामनायें
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteगुरु ग्रन्थ साहिब में 7 सिख गुरुओं और 18 हिंदू संतों की बानी है | राम शब्द चार हज़ार बार , परब्रह्म तीन हज़ार बार , हरी शब्द दो हज़ार बार , विष्णु शब्द एक हज़ार से अधिक बार और बहुत से हिंदू शब्द भगवान , ईश्वर , जगदीश , कृष्ण , आदि का उपयोग हजारों बार हुआ है | पर कुछ मुर्ख अपने ही गुरु ग्रन्थ साहिब की बाणी की व्याख्या बदलते हुए यह दावा करते हैं की ये वो राम या वो कृष्ण नहीं हैं जिनकी पूजा हिंदू करते हैं , पर जब गुरु ग्रन्थ साहिब में जिन हिंदू संतों की बाणी हैं उन्होंने तो इन्ही के गुण गाये हैं | तो उसका मतलब कैसे बदल गया ??
ReplyDeleteजब गुरु गोबिंद सिंह जी "चंडी दी वार " लिखते हैं तो सीधा उसमें माँ दुर्गा की आराधना है कटटर सिख कह देता है की चंडी का मतलब तलवार है पर "महिषासुर " शब्द फिर जो है उसमें वो कहाँ से आया ??? "दे शिवा वर मोहे एहे " सीधे सीधे महादेव की आराधना है