पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
सहमे-सहमे से सपने हैं,
आशा के अपरूप,
वक्र क्षितिज से सूरज झाँके,
धुँधली-धुँधली धूप।
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
मेरा भव्य अतीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
छला गया मीठी बातों से,
नाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
अब तक कानों में जो गूँजा,
कोई काँपता गीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
-महेन्द्र वर्मा
हृदयस्पर्शी ...बहुत ही सुंदर रचना ...
ReplyDeleteतरस न खाओ मेरे हाल पर,
ReplyDeleteमेरा भव्य अतीत रहा है।
बहुत ही सुंदर!
बहुत सुंदर गीत है.. दिल से कहा हुआ
ReplyDeleteसुंदर नवगीत - आभार वर्मा जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवगीत
ReplyDeleteसहमे-सहमे से सपने हैं,
ReplyDeleteआशा के अपरूप,
वक्र क्षितिज से सूरज झाँके,
धुँधली-धुँधली धूप।
वाह! बहुत खुबसूरत नवगीत सर...
सादर.
बहुत सुंदर नवगीत ... जैसे सबके मन की बात कह दी हो ...
ReplyDeleteमन में सीधा प्रवेश करता नवगीत!!
ReplyDeleteछला गया मीठी बातों से,
ReplyDeleteनाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
beautiful lines withgreat emotions.
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
ReplyDeleteमेरा भव्य अतीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
आत्म विशवास और आत्म विश्लेषण ही तो हासिल है ज़िन्दगी का .बहतरीन रचना .
बहुत ही सुन्दर ... मन मोहक नव गीत है ... ह्रदय में उतरता हुवा ...
ReplyDeletebahut hi sundar prastuti.
ReplyDeleteगाफिल जी हैं व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
ReplyDeleteशुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
सोमवारीय चर्चा-मंच पर है |
charchamanch.blogspot.com
सुँदर नवगीत , आभार .
ReplyDeleteसुँदर नवगीत , आभार .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवगीत...आभार
ReplyDeleteसहमे-सहमे से सपने हैं,
ReplyDeleteआशा के अपरूप,
वक्र क्षितिज से सूरज झाँके,
धुँधली-धुँधली धूप।
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
मेरा भव्य अतीत रहा है।
मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ
हृदयस्पर्शी गीत ....
ReplyDeleteummdaa
ReplyDeletebadi hi shandar kavita
man praffulit ho gaya
बहुत बहुत सुन्दर गीत..........
ReplyDeleteकाव्य की ये विधा है ही बड़ी सहज...
शुक्रिया.
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
ReplyDeleteजीवन से कुछ रीत रहा है।
बहुत सुंदर भावों में पिरोया गया नवगीत .
उदासी पर चलता गीत मधुर भावों को जगाता चलता है. इस दृष्टि से इसे एक अद्भुत गीत कहा जा सकता है. बहुत ख़ूब महेंद्र जी.
ReplyDeletesunder navgeet
ReplyDeleteअब तक कानों में जो गूँजा,
कोई काँपता गीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।..............behatarin prastuti . badhai .
taras naa khaao mere haal par mera bhavya ateet...sach hai..behtarin rachna sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteअस्वस्थता और व्यस्तता ने लम्बे समय से ऐसे सुमनोहर रचनाओं से वंचित कर रखा था...
ReplyDeleteआज अवसर मिला और पढ़कर जो सुख आह्लाद मिला, शब्दों में नहीं बता सकती..
क्या तो लिखा है आपने...ओह...!!!
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
ReplyDeleteजीवन से कुछ रीत रहा है।
bahu hi gahre jajbat ke sath likha sunder navgit...
manbhavan ..sunder prastuti..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteहर बार रसीला लगता है यह गीत ,कहो इसे नवगीत ...
ReplyDeleteभाई महेंद्र जी बहुत ही सुंदर गीत बधाई |
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत..........
ReplyDeleteयह कविता आपके विशिष्ट कवि-व्यक्तित्व का गहरा अहसास कराती है।
ReplyDeleteतरंगित, आप्लावित कर रही है ये उत्कृष्ट रचना..
ReplyDeleteछला गया मीठी बातों से,
ReplyDeleteनाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
अब तक कानों में जो गूँजा,
ReplyDeleteकोई काँपता गीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
Beautiful expression .
.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. पलछिन को दिखाऊँगा.
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसच में जीवन से कुछ रीत रहा है..
ReplyDeletebahut sunder geet likha hai aapne......
ReplyDeleteछला गया मीठी बातों से,
ReplyDeleteनाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
अब तक कानों में जो गूँजा,
कोई काँपता गीत रहा है।
बहुत नाजुक सा गीत, वाह....
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
ReplyDeleteमेरा भव्य अतीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।.....
महेन्द्र जी, बहुत खूबसूरत गीत है। आनंद आ गया। धन्यवाद स्वीकार करें।