मौन का सहरा हुआ हूँ


आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।

उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

देख लो तस्वीर मेरी,
वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।

बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।

आज बचपन के अधूरे, 

ख़्वाब-सा बिखरा हुआ हूँ

घुल रहा हूँ मैं किसी की
आँख का कजरा हुआ हूँ।

रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।
                                      -महेन्द्र वर्मा

46 comments:

  1. आग से गुज़रा हुआ हूँ,
    और भी निखरा हुआ हूँ।
    बेबसी बाहर न झाँके,
    लाज का पहरा हुआ हूँ।
    रेत सी यादें बिछी हैं,
    मौन का सहरा हुआ हूँ।

    बहुत खूबसूरत गज़ल

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  2. उम्र भर के अनुभवों के,
    बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

    देख लो तस्वीर मेरी,
    वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।
    - बहुत सधी और निखरी अभिव्यक्ति !

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  3. बहुत खूबसूरत गज़ल !!

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  4. वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, कितनी सादगी, कितना प्यार भरा जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......

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  5. खूब है ठहरे हुए वक्‍त की तस्‍वीर.

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  6. सुँदर तस्वीर उकेरी है . साधुवाद

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  7. रेत सी यादें बिछी हैं,
    मौन का सहरा हुआ हूँ।waah gazab ki abhiwaykti mahendra jee.....

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  8. रेत सी यादें बिछी हैं,
    मौन का सहरा हुआ हूँ।
    खाब एक ठहरा हुआ हूँ .बहुत उम्दा ग़ज़ल .झुर्रियों वाला चेहरा उभर आता है इसे पढ़ते पढ़ते हिन्दुस्तान के बुढापे का .

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  9. खाब एक ठहरा हुआ हूँ .बहुत उम्दा ग़ज़ल .झुर्रियों वाला चेहरा उभर आता है इसे पढ़ते पढ़ते हिन्दुस्तान के बुढापे का .
    बेबसी बाहर न झाँके,
    लाज का पहरा हुआ हूँ।
    खाब एक ठहरा हुआ हूँ .बहुत उम्दा ग़ज़ल .झुर्रियों वाला चेहरा उभर आता है इसे पढ़ते पढ़ते हिन्दुस्तान के बुढापे का . रहनुमा ऐसा रहा हूँ (काग्भगोड़े अपने मनमोहना याद आगये ).

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  10. महेंद्र जी एक और सशक्त प्रस्तुति ।

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  11. बहुत समर्थ सृजन, बधाई.

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  12. वाह...........

    बहुत बहुत बढ़िया.............
    लाजवाब प्रस्तुति....

    सादर.

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  13. आज कि प्रस्तुति का कोई जवाब नाहीं ...!लाजवाब है ...!एक-एक शेर अत्यंत गहराई लिए हुए ....!!
    बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ....!!

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  14. बेबसी बाहर न झाँके,
    लाज का पहरा हुआ हूँ।

    आज बचपन के अधूरे,
    ख़्वाब-सा बिखरा हुआ हूँ

    छोटी बहर की बेहतरीन ग़ज़ल। मुझे यह प्रयोग बहुत अच्छा लगा - बचपन के अधूरे, ख़्वाब-सा बिखरा हुआ हूँ

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  15. वक्‍त की तस्‍वीर लाजवाब उकेरी है ..

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  16. उम्र भर के अनुभवों के,
    बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

    देख लो तस्वीर मेरी,
    वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।

    बहुत खूब .....खूबसूरत गजल

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  17. बड़े साधारण और सधे शब्दों में मुझ जैसों की जुबां
    में ,मुझ जैसो की कहानी बयाँ कर दी आपने....
    आभार !

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  18. घुल रहा हूँ मैं किसी की
    आँख का कजरा हुआ हूँ।...

    छोटी बहर में गहरी और दूर की बात ... लाजवाब है पूरी गज़ल ...बधाई ...

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  19. उम्र भर के अनुभवों के,
    बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

    देख लो तस्वीर मेरी,
    वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ....सशक्त अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर..

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  20. अच्छी प्रस्तुति,

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  21. देख लो तस्वीर मेरी,
    वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।

    बेबसी बाहर न झाँके,
    लाज का पहरा हुआ हूँ।

    बहुत खूबसूरत गज़ल

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  22. बेहतरीन सर! क्या बात है।

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  23. वाह महेंद्र जी, एक दम तराशी हुई ग़ज़ल. वाह!!

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  24. बहुत सुंदर ग़ज़ल.. सारे शेर एक से बढ़कर एक
    देख लो तस्वीर मेरी, वक्त ज्यों ठहरा हुआ हूं।

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  25. घुल रहा हूँ मैं किसी की
    आँख का कजरा हुआ हूँ।

    रेत सी यादें बिछी हैं,
    मौन का सहरा हुआ हूँ।

    yakeenan ...lajbab prastuti ...badhai sweekaren verma ji.

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  26. उम्र भर के अनुभवों के,
    बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

    ....बेहतरीन गज़ल...सभी शेर बहुत उम्दा...

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  27. "मौन का सहरा".. वर्मा साहब, आपकी रचनाएं बस स्तब्ध करती हैं, चमत्कार की तरह!! इतनी साफ़ सोंच और इतनी सुन्दर बयानी!! मुग्ध हूँ!!

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  28. "मौन का सहरा".. वर्मा साहब, आपकी रचनाएं बस स्तब्ध करती हैं, चमत्कार की तरह!! इतनी साफ़ सोंच और इतनी सुन्दर बयानी!! मुग्ध हूँ!!

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  29. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  30. रेत सी यादें बिछी हैं,
    मौन का सहरा हुआ हूँ।
    गहरे भाव... सुन्दर रचना...आभार

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  31. आग से गुज़रा हुआ हूँ,
    और भी निखरा हुआ हूँ।

    Bahut Sunder...

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  32. हरेक शेर जबरदस्त.... आनंद आ गया वर्मा जी...

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  33. लाजवाब नज्म खूबसूरती के साथ ..... बधाईयाँ जी /

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  34. एक पंक्ति दूसरी से खूबसूरत....

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  35. बेबसी बाहर न झाँके,
    लाज का पहरा हुआ हूँ।
    वाह बहुत सुंदर ...

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  36. आग से गुज़रा हुआ हूँ,
    और भी निखरा हुआ हूँ।

    उम्र भर के अनुभवों के,
    बोझ से दुहरा हुआ हूँ।..waah bahut khoobsurat gajal . hardik badhai . aapko

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  37. Behad khubsurat....yahan bi padharein http://kunal-verma.blogspot.com

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  38. आग से गुज़रा हुआ हूँ,
    और भी निखरा हुआ हूँ।
    बेबसी बाहर न झाँके,
    लाज का पहरा हुआ हूँ।
    रेत सी यादें बिछी हैं,
    मौन का सहरा हुआ हूँ।

    लाजवाब नज्म.

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  39. आग से गुज़रा हुआ हूँ,
    और भी निखरा हुआ हूँ।
    सुन्दर अभिव्यक्ति.....बधाई.....

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  40. आग से गुज़रा हुआ हूँ,
    और भी निखरा हुआ हूँ।
    उम्र भर के अनुभवों के,
    बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

    महेंद्र जी, आपकी रचनायें सीधे मन में उतर जाती हैं, बधाई.....

    आग में जो जलके निखरे
    हाँ वही तो स्वर्ण है
    दान दे जीवन कवच जो
    हाँ वही तो कर्ण है

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  41. देख लो तस्वीर मेरी,
    वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।

    बहुत खूबसूरत गज़ल .

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  42. सुन्दर प्रस्तुति . क्या कंहू ये समझ नहीं पा रहा हूं....कोई शब्द नहीं हैं बस इतना ही वाह क्या बात है..
    हार्दिक शुभकामना है कि आप ऐसे ही लिखते रहें

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  43. सभी शेर लाजबाव हैं .......उम्दा !

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