युवा-शक्ति मिल कर करे, यदि कोई भी काम,
मिले सफलता हर कदम, निश्चित है परिणाम।
जिज्ञासा का उदय ही, ज्ञान प्राप्ति का स्रोत,
इसके बिन जो भी करे, ज्ञानार्जन न होत।
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
बीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
जिह्वा के आघात में, असि से अधिक प्रभाव,
रह-रह कर है टीसता, अंतर्मन का घाव।
जीवन-मरण अबूझ है, परम्परा चिरकाल,
पुनर्जन्म पुनिमृत्यु की, कहे कहानी काल।
जैसे दीमक ग्रंथ को, कुतर-कुतर खा जाय,
तैसे चिंता मनुज को, धीरे-धीरे खाय।
जहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
जहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
-महेन्द्र वर्मा
मिले सफलता हर कदम, निश्चित है परिणाम।
जिज्ञासा का उदय ही, ज्ञान प्राप्ति का स्रोत,
इसके बिन जो भी करे, ज्ञानार्जन न होत।
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
बीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
जिह्वा के आघात में, असि से अधिक प्रभाव,
रह-रह कर है टीसता, अंतर्मन का घाव।
जीवन-मरण अबूझ है, परम्परा चिरकाल,
पुनर्जन्म पुनिमृत्यु की, कहे कहानी काल।
जैसे दीमक ग्रंथ को, कुतर-कुतर खा जाय,
तैसे चिंता मनुज को, धीरे-धीरे खाय।
जहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
जहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
-महेन्द्र वर्मा
सत्य और सटीक दोहे , जीवन के विभिन्न पक्षों पर दृष्टि . आभार .
ReplyDeleteजहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
ReplyDeleteजहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
.....हर पंक्ति सुंदर सिख देती है बहुत बढ़िया दोहे हैं सर...!!!
बहुत सुंदर........
ReplyDeleteजिह्वा के आघात में, असि से अधिक प्रभाव,
रह-रह कर है टीसता, अंतर्मन का घाव।
सभी सार्थक एवं सटीक..........
सादर.
जहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
ReplyDeleteजहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
बहुत सुंदर........
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
ReplyDeleteबीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
सत्य वचन !
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
ReplyDeleteबीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
सत्य वचन !
sab kuchh kah diyaa
ReplyDeletechand panktiyon mein .....
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
ReplyDeleteबीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।... behtareen kathya
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 16-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 16-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
baut sundar prerak rachna..
ReplyDeleteजहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
ReplyDeleteजहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
आपने सही कहा...महेंद्र जी...
बहुत सुंदर रचना...
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
महेंद्र जी ,...आपका फालोवर बन गया हूँ
ReplyDeleteदोहे जैसे लघु छंद में जीवन के सत्य का निरूपण -गागर में सागर !
ReplyDeleteइतने सहज ढंग से इतनी सुन्दर शिक्षा, आपके दोहे से ही मिल सकती है... हर दोहा अपने आप में अमृत-कण से कम नहीं!! हम कृतार्थ हुए!!
ReplyDeleteजिह्वा के आघात में, असि से अधिक प्रभाव,
ReplyDeleteरह-रह कर है टीसता, अंतर्मन का घाव।
सुंदर दोहे कहे हैं.
खूबसूरती से राह दिखाते सुन्दर दोहे...
ReplyDeleteसादर.
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
ReplyDeleteबीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
बहुत सुन्दर वाह!
जैसे दीमक ग्रंथ को, कुतर-कुतर खा जाय,
ReplyDeleteतैसे चिंता मनुज को, धीरे-धीरे खाय।
सीख देते सावधान करते दोहे .सुन्दर मनोहर कल्याण कारी ,उपकारी .
BAHUT SATEEK V SARTHAK PRASTUTI .AABHAR
ReplyDeleteLIKE THIS PAGE AND WISH INDIAN HOCKEY TEAM FOR LONDON OLYMPIC
वाह!
ReplyDeleteसुन्दर सुन्दर पंक्तियाँ, भरते सुन्दर भाव ।
ReplyDeleteपाठ सरस गाते चलो, सीख सरल अपनाव ।
जीवन-मरण अबूझ है, परम्परा चिरकाल,
ReplyDeleteपुनर्जन्म पुनिमृत्यु की, कहे कहानी काल।
जैसे दीमक ग्रंथ को, कुतर-कुतर खा जाय,
तैसे चिंता मनुज को, धीरे-धीरे खाय।
बेहतरीन दोहे
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
ReplyDeleteबीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
जिह्वा के आघात में, असि से अधिक प्रभाव,
रह-रह कर है टीसता, अंतर्मन का घाव।
सभी दोहे बहुत सार्थक
जहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
ReplyDeleteजहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
sahi hai ....sabhi dohe sarthak hai,..
सुंदर सन्देश ...घर-घर पहुचे !
ReplyDeleteजहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
जहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
शुभकामनाएँ!
जहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
ReplyDeleteजहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।bilkul sah nd satik bat.. jahan nhi neh wo kaisa geh>
जीवन-मरण अबूझ है, परम्परा चिरकाल,
ReplyDeleteपुनर्जन्म पुनिमृत्यु की, कहे कहानी काल।
भलमनसाहत के साथ मेरे मेल बॉक्स में ये दोहे डा
दीजिये .आप खुद समझदार हैं .संकलन हेतु .
क्या कहूँ सुन्दर नहीं अनुकरणीय
sundar prastuti.नारियां भी कम भ्रष्ट नहीं.
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई को दर्शाते बहुत सुन्दर और सटीक दोहे...
ReplyDeleteजहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
ReplyDeleteजहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
सुंदर और सटीक रचना ..
शानदार
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
ReplyDeleteबीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
जीवन की सच्चाई बतलाते दोहे !!!
जहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
ReplyDeleteजहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार।
सभी दोहे सार्थक और सटीक!
इन दोहों में जीवन का मर्म है.. और अनुकरणीय संदेश..
ReplyDelete
ReplyDelete♥
आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
नमस्कार !
जहां प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार ।
जहां द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार ॥
सभी दोहे अच्छे हैं … बधाई और आभार !
शुभकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बेहतरीन, बेहतरीन और बेहतरीन।
ReplyDeleteअहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
बीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
लाजवाब! बहुत ही नीति की बातें बड़े सरल सुंदर शब्दों में। जवाब नहीं।
जिज्ञासा का उदय ही, ज्ञान प्राप्ति का स्रोत
ReplyDeleteवर्मा जी के कविता, आनंद प्राप्ति का स्रोत....
शानदार....
वाह,सभी दोहे सटीक-सार्थक व शिक्षाप्रद.
ReplyDeleteशिक्षाप्रद दोहे!
ReplyDeleteसच्चाई को दर्शाते सुन्दर और सटीक दोहे...
ReplyDeleteजिज्ञासा का उदय ही, ज्ञान प्राप्ति का स्रोत,
ReplyDeleteइसके बिन जो भी करे, ज्ञानार्जन न होत...
वाह .. सभी दोहे कुछ न कुछ नया कह रहे हैं .. सफलता की सीख देते हुवे ...
sunkar baatein neeti kee hata manuj man bhar.....accha jeewan chah ho padhe ye jeewan saar,,,dhanywad hai aapko jo diya ye shabd haar..ab man halka ho gaya rah na dil par bhar..sadar pranam aaur apne blog par aapke aagman kee abhilasha me
ReplyDeletevery nice...
ReplyDeleteजहाँ प्रेम सत्कार हो, वही सही घर-द्वार,
ReplyDeleteजहाँ द्वेष-अभिमान हो, वह कैसा परिवार। बहुत ही सही कहा आपने आभार
bahut sundar prastuti...sabhi dohe bahut achchhe hain..
ReplyDeletesabhi dohe bahut arthpurn...
ReplyDeleteजिह्वा के आघात में, असि से अधिक प्रभाव,
रह-रह कर है टीसता, अंतर्मन का घाव।
badhai.
अहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
ReplyDeleteबीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
मनुष्य को सीख देती रचना .
बहुत सुन्दर दोहे भाई महेंद्र जी
ReplyDeleteअहंकार जो पालता, पतन सुनिश्चित होय,
ReplyDeleteबीज प्रेम अरु नेह का, निरहंकारी बोय।
बहुत सुंदर.......
Satya vachan ..Bahut sundar ....
ReplyDeletebilkul lajabab dohe bahut bahut abhar Verma ji .
ReplyDeleteदोहों में सीखें भरीं, और भरा आनंद,
ReplyDeleteसागर तल की सीपियों में ज्यों मोती बंद।
बाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
सार्थक और सटीक!!!
आशीष
--
द नेम इज़ शंख, ढ़पोरशंख !!!
shubh uddeshya ke saath kareM tabhee saMgaThan kaa faayadaa hai
ReplyDeleteशुभ उद्देश्य के साथ करें तभी संगठन का फ़ायदा है
ReplyDeleteशुभ उद्देश्य के साथ करें तभी संगठन का फ़ायदा है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और शानदार दोहे..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...