किसे कहोगे बुरा-भला है,
हर दिल में तो वही ख़ुदा है।
खोजो उस दाने को तुम भी,
जिस पर तेरा नाम लिखा है।
शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है।
ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
आँसू सबका एक बहा है।
उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ भला-भला लगता है।
गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।
धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
सबके जी में यही बसा है।
-महेन्द्र वर्मा
एक ही परमात्मा सबके ह्रदय में बसता है.. आपकी रचना हमेशा ही मन को शान्ति प्रदान करते हैं और आत्मा को शीतलता!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteपञ्च तत्व की देह ।
पञ्च तत्व का बना खिलौना, पञ्च तत्व में ख़ाक हुआ है .बढ़िया भाव और अर्थ ,रिदम लिए है ग़ज़ल .
ReplyDeleteवाह! क्या खूब कहा है!!
ReplyDeleteकोमल भावो की अभिवयक्ति..
ReplyDeleteउसने दी है मुझे दुआएँ,
ReplyDeleteसब कुछ भला-भला लगता है।
ये शायद ऐसे ज्यादा सटीक लगेगा -
सब कुछ भला भला लगता है
जबसे उसकी मिली दुआ है .
सादर
शायद रोया बहुत देर तक,
ReplyDeleteउसका चेहरा निखर गया है ...
बहुत खूब ... बहुत पसंद आया ये शेर ... पूरी गज़ल लाजवाब है ..
गीत प्रकृति का कभी न गाया,
ReplyDeleteइतने दिन तक व्यर्थ जिया है।... आओ एक पौधा हम लगायें
ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
ReplyDeleteआँसू सबका एक बहा है।
उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ लगता भला-भला है।
गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।
सुंदर दर्शन नन्हीं पंक्तियों में आध्यात्म और सृष्टि को एक साथ समेट दिया है.
गीत प्रकृति का कभी न गाया,
ReplyDeleteइतने दिन तक व्यर्थ जिया है।
धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
सबके जी में यही बसा है।
सुंदर प्रस्तुति,
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
जहाँ चाह वहाँ राह .हम भी आशावान है
ReplyDeleteअपाने नाम वाला दाना ही तो नहीं खोजना चाहते हैं लोग ...दूसरे का छिनाना चाहते हैं।
ReplyDeleteप्रेरणादायक कविता।
अपाने नाम वाला दाना ही तो नहीं खोजना चाहते हैं लोग ...दूसरे का छिनाना चाहते हैं।
ReplyDeleteप्रेरणादायक कविता।
शायद रोया बहुत देर तक,
ReplyDeleteउसका चेहरा निखर गया है।
उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ भला-भला लगता है।
अत्यंत संवेदन भरी प्रामाणिक अनुभूतियाँ. बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है महेंद्र जी. छोटी बहर संप्रेषणीयता को गति देती है.
शायद रोया बहुत देर तक,
ReplyDeleteउसका चेहरा निखर गया है।
Bahut Badhiya
धूप-हवा-जल-धरती-अंबर
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल वर्मा जी। सबमें उसी का नूर समाया, कौन है अपना कौन पराया। आंतरिक शांति मिलती है इस तरह की रचना पढ़ कर।
वाह...
ReplyDeleteसुंदर सामायिक रचना..
बधाई..
अनु
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
शायद रोया बहुत देर तक,
ReplyDeleteउसका चेहरा निखर गया है।
गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति...
एक पौधा लगाएँ ... जीवन को सफल बनाएँ!
ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
ReplyDeleteआँसू सबका एक बहा है।
उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ भला-भला लगता है।
ALL MIGHTY GOD IS GREAT AND ITS CREATION IS SUPERB AS YOU SCRIPTED.
बहुत सुन्दर .....बधाई
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
ReplyDeleteसबके जी में यही बसा है।
पञ्च तत्व का बढ़िया भाव और अर्थ,लाजवाब गज़ल.
bahut sundar
ReplyDeleteखोजो उस दाने को तुम भी,
ReplyDeleteजिस पर तेरा नाम लिखा है।
बहुत सुंदर रचना ...
शायद रोया बहुत देर तक,
ReplyDeleteउसका चेहरा निखर गया है
bahut hi sundar panktiyan ...badhai verma ji.
प्रेरणात्म्क रचना ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और प्रेरक प्रस्तुति...
ReplyDeleteखोजो उस दाने को तुम भी,
ReplyDeleteजिस पर तेरा नाम लिखा है।
बहुत बढ़िया ..
किसे कहोगे बुरा-भला है,
ReplyDeleteहर दिल में तो वही ख़ुदा है।
खोजो उस दाने को तुम भी,
जिस पर तेरा नाम लिखा है।
मन को शांति प्रदान करती सुंदर रचना.
खोजो उस दाने को तुम भी,
ReplyDeleteजिस पर तेरा नाम लिखा है।
बहुत सुन्दर ...सच है ....प्रयास बिना सफलता नहीं मिलती
Awesome !
ReplyDeleteशायद रोया बहुत देर तक,
ReplyDeleteउसका चेहरा निखर गया है।
ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
आँसू सबका एक बहा है.....................वाह !
सुन्दर विचार. जिन्होंने जाना, आनंद पाया.
ReplyDeleteशायद रोया बहुत देर तक
ReplyDeleteउसका चेहरा निखर गया है...
खुबसूरत रचना सर...
सादर.