धूप-हवा-जल-धरती-अंबर



किसे कहोगे बुरा-भला है,
हर दिल में तो वही ख़ुदा है।

खोजो उस दाने को तुम भी,
जिस पर तेरा नाम लिखा है।

शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है।

ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
आँसू सबका एक बहा है।

उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ भला-भला लगता है।

गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।

धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
सबके जी में यही बसा है।
                                                     


                                               -महेन्द्र वर्मा

36 comments:

  1. एक ही परमात्मा सबके ह्रदय में बसता है.. आपकी रचना हमेशा ही मन को शान्ति प्रदान करते हैं और आत्मा को शीतलता!!

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया ।

    पञ्च तत्व की देह ।

    ReplyDelete
  3. पञ्च तत्व का बना खिलौना, पञ्च तत्व में ख़ाक हुआ है .बढ़िया भाव और अर्थ ,रिदम लिए है ग़ज़ल .

    ReplyDelete
  4. कोमल भावो की अभिवयक्ति..

    ReplyDelete
  5. उसने दी है मुझे दुआएँ,
    सब कुछ भला-भला लगता है।

    ये शायद ऐसे ज्यादा सटीक लगेगा -

    सब कुछ भला भला लगता है
    जबसे उसकी मिली दुआ है .

    सादर

    ReplyDelete
  6. शायद रोया बहुत देर तक,
    उसका चेहरा निखर गया है ...

    बहुत खूब ... बहुत पसंद आया ये शेर ... पूरी गज़ल लाजवाब है ..

    ReplyDelete
  7. गीत प्रकृति का कभी न गाया,
    इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।... आओ एक पौधा हम लगायें

    ReplyDelete
  8. ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
    आँसू सबका एक बहा है।

    उसने दी है मुझे दुआएँ,
    सब कुछ लगता भला-भला है।

    गीत प्रकृति का कभी न गाया,
    इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।

    सुंदर दर्शन नन्हीं पंक्तियों में आध्यात्म और सृष्टि को एक साथ समेट दिया है.

    ReplyDelete
  9. गीत प्रकृति का कभी न गाया,
    इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।

    धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
    सबके जी में यही बसा है।
    सुंदर प्रस्तुति,

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

    ReplyDelete
  10. जहाँ चाह वहाँ राह .हम भी आशावान है

    ReplyDelete
  11. अपाने नाम वाला दाना ही तो नहीं खोजना चाहते हैं लोग ...दूसरे का छिनाना चाहते हैं।
    प्रेरणादायक कविता।

    ReplyDelete
  12. अपाने नाम वाला दाना ही तो नहीं खोजना चाहते हैं लोग ...दूसरे का छिनाना चाहते हैं।
    प्रेरणादायक कविता।

    ReplyDelete
  13. शायद रोया बहुत देर तक,
    उसका चेहरा निखर गया है।

    उसने दी है मुझे दुआएँ,
    सब कुछ भला-भला लगता है।

    अत्यंत संवेदन भरी प्रामाणिक अनुभूतियाँ. बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है महेंद्र जी. छोटी बहर संप्रेषणीयता को गति देती है.

    ReplyDelete
  14. शायद रोया बहुत देर तक,
    उसका चेहरा निखर गया है।

    Bahut Badhiya

    ReplyDelete
  15. धूप-हवा-जल-धरती-अंबर
    बेहतरीन ग़ज़ल वर्मा जी। सबमें उसी का नूर समाया, कौन है अपना कौन पराया। आंतरिक शांति मिलती है इस तरह की रचना पढ़ कर।

    ReplyDelete
  16. वाह...
    सुंदर सामायिक रचना..

    बधाई..

    अनु

    ReplyDelete
  17. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    ReplyDelete
  18. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    ReplyDelete
  19. शायद रोया बहुत देर तक,
    उसका चेहरा निखर गया है।

    गीत प्रकृति का कभी न गाया,
    इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति...
    एक पौधा लगाएँ ... जीवन को सफल बनाएँ!

    ReplyDelete
  20. ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
    आँसू सबका एक बहा है।

    उसने दी है मुझे दुआएँ,
    सब कुछ भला-भला लगता है।
    ALL MIGHTY GOD IS GREAT AND ITS CREATION IS SUPERB AS YOU SCRIPTED.

    ReplyDelete
  21. बहुत सुन्दर .....बधाई

    ReplyDelete
  22. सुन्दर प्रस्तुति!
    शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  23. धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
    सबके जी में यही बसा है।
    पञ्च तत्व का बढ़िया भाव और अर्थ,लाजवाब गज़ल.

    ReplyDelete
  24. खोजो उस दाने को तुम भी,
    जिस पर तेरा नाम लिखा है।

    बहुत सुंदर रचना ...

    ReplyDelete
  25. शायद रोया बहुत देर तक,
    उसका चेहरा निखर गया है

    bahut hi sundar panktiyan ...badhai verma ji.

    ReplyDelete
  26. प्रेरणात्म्क रचना ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

    ReplyDelete
  27. बहुत ख़ूबसूरत और प्रेरक प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  28. खोजो उस दाने को तुम भी,
    जिस पर तेरा नाम लिखा है।

    बहुत बढ़िया ..

    ReplyDelete
  29. किसे कहोगे बुरा-भला है,
    हर दिल में तो वही ख़ुदा है।

    खोजो उस दाने को तुम भी,
    जिस पर तेरा नाम लिखा है।

    मन को शांति प्रदान करती सुंदर रचना.

    ReplyDelete
  30. खोजो उस दाने को तुम भी,
    जिस पर तेरा नाम लिखा है।


    बहुत सुन्दर ...सच है ....प्रयास बिना सफलता नहीं मिलती

    ReplyDelete
  31. शायद रोया बहुत देर तक,
    उसका चेहरा निखर गया है।

    ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
    आँसू सबका एक बहा है.....................वाह !

    ReplyDelete
  32. सुन्दर विचार. जिन्होंने जाना, आनंद पाया.

    ReplyDelete
  33. शायद रोया बहुत देर तक
    उसका चेहरा निखर गया है...

    खुबसूरत रचना सर...
    सादर.

    ReplyDelete