इस वर्ष दो भाद्रपद क्यों ? --- तेरह महीने का वर्ष



                   अभी भादों का महीना चल रहा है। इसके समाप्त होने के बाद इस वर्ष कुंवार का महीना नहीं आएगा बल्कि भादों का महीना दुहराया जाएगा। दो भादों होने के कारण वर्तमान वर्ष अर्थात विक्रम संवत् 2069 तेरह महीनों का है। इस अतिरिक्त तेरहवें मास को अधिक मास, अधिमास, लौंद मास, मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं।
                   अधिमास होने की घटना दुर्लभ नहीं है, प्रत्येक 32-33 महीनों के पश्चात एक अधिमास का होना अनिवार्य है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विश्व की किसी अन्य कैलेण्डर पद्धति में 13 महीने का वर्ष नहीं होता। हिन्दू कैलेण्डर में किसी वर्ष 13 महीने निर्धारित किए जाने की परंपरा खगोलीय घटनाओं के प्रति विज्ञानसम्मत दृष्टिकोण तथा गणितीय गणना पर आधारित है।
                     अधिमास का सबसे प्राचीन उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है, जिसका रचनाकाल 2500 ई. पूर्व माना जाता है। ऋग्वेद (1.25.8) में तेरहवें मास का वर्णन इस प्रकार आया है-‘‘जो व्रतालंबन कर अपने-अपने फलोत्पादक बारह महीनों को जानते हैं और उत्पन्न होने वाले तेरहवें मास को भी जानते हैं...।‘‘ वाजसनेयी संहिता (22.30) में इसे मलिम्लुच्च तथा संसर्प कहा गया है किंतु (22.31) में इसके लिए अंहसस्पति शब्द का प्रयोग हुआ है।
                      तैत्तिरीय ब्राह्मण (3.10.1) में तेरहवें महीने का नाम महस्वान दिया गया है। ऐतरेय ब्राह्मण (3.1) में अधिमास का वर्णन इस प्रकार है - ‘‘...उन्होंने उस सोम को तेरहवें मास से मोल लिया था इसलिए निंद्य है...।‘‘ नारद संहिता में अधिमास को संसर्प कहा गया है। इससे स्पष्ट है कि किसी वर्ष में तेरहवें मास को सम्मिलित किए जाने की परंपरा वैदिक युग या उसके पूर्व से ही चली आ रही है।
                       अधिक मास होने का सारा रहस्य चांद्रमास और सौरमास  के कालमान में तालमेल स्थापित किए जाने में निहित है। पूर्णिमा से अगली पूर्णिमा या अमावस्या से अगली अमावस्या तक के समय को चांद्रमास कहते हैं। सूर्य एक राशि (रविमार्ग का बारहवां भाग यानी 30 अंश की परिधि) पर जितने समय तक रहता है वह सौरमास कहलाता है। 12 चांद्रमासों के वर्ष को चांद्रवर्ष और 12 सौर मासों के वर्ष को सौरवर्ष कहते हैं। इन दोनों वर्षमानों की अवधि समान नहीं है। एक सौरवर्ष की अवधि लगभग 365 दिन 6 घंटे होती है जबकि एक चांद्रवर्ष की अवधि लगभग 354 दिन 9 घंटे होती है। अर्थात चांद्रवर्ष सौरवर्ष से लगभग 11 दिन छोटा होता है। यह अंतर 32-33 महीनों में एक चांद्रमास के बराबर हो जाता है। इस अतिरिक्त तेरहवें चांद्रमास को ही अधिमास के रूप में जोड़कर चांद्रवर्ष और सौरवर्ष में तालमेल स्थापित किया जाता है ताकि दोनों लगभग साथ-साथ चलें।
                       अब यह स्पष्ट करना है कि किसी चांद्रवर्ष के किस मास को अधिमास निश्चित किया जाए। इसके निर्धारण के लिए प्राचीन हिन्दू खगोल शास्त्रियों ने कुछ गणितीय और वैज्ञानिक आधार निश्चित किए हैं तथा चांद्रमास को सुपरिभाषित किया है। इसे समझने के लिए कुछ प्रारंभिक तथ्यों को ध्यान में रखना होगा -
1.    चांद्रमासों का नामकरण दो प्रकार से प्रचलित है। पूर्णिमा से पूर्णिमा तक की अवधि पूर्णिमांत मास और अमावस्या से अमावस्या तक की अवधि को अमांत मास कहते हैं। अधिमास निर्धारित करने के लिए केवल अमांत मास पर ही विचार किया जाता है।
2.    सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण को संक्रांति कहते हैं।
3.    सभी 12 सौरमासों की अवधि बराबर नहीं होती। सौरमास का अधिकतम कालमान सौर आषाढ़ में 31 दिन, 10 घंटे, 53 मिनट और न्यूनतम मान पौष मास में 29 दिन, 10 घंटे, 40 मिनट का होता है। जबकि चांद्रमास का अधिकतम मान 29 दिन, 19 घंटे, 36 मिनट और न्यूनतम मान 29 दिन, 5 घंटे, 54 मिनट है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर अधिमास को निम्न दो प्रकार से परिभाषित किया गया है -
क.    जब किसी चांद्रमास में सूर्य की संक्रांति नहीं होती तो वह मास अधिमास होता है।
ख.    जब किसी सौरमास में दो अमावस्याएं घटित हों तब दो अमावस्याओं से प्रारंभ होने वाले चांद्रमासों का एक ही नाम होगा। इनमें से पहले मास को अधिमास और दूसरे को निज या शुद्ध मास कहा जाता है।
                  इस वर्ष होने वाले दो भादों को उदाहरण के रूप में लें -
सूर्य की सिंह संक्रांति 16 अगस्त को और कन्या संक्रांति 16 सितम्बर को(शाम 5:52 बजे से) है। इन तारीखों के मध्य 18 अगस्त से 16 सितम्बर (प्रातः 7:40 बजे) तक की अवधि के चांद्रमास में सूर्य की कोई संक्रांति नहीं है। इसलिए यह चांद्रमास अधिमास होगा।
                    पुनः, सूर्य की सिंह राशि में रहने की अवधि ( 16 अगस्त से 16 सितम्बर, शाम 5:52 बजे तक) के मध्य दो अमावस्याएं, क्रमशः 17 अगस्त और 16 सितम्बर (प्रातः 7:40 बजे) को घटित हो रही हैं। अतः इन अमावस्याओं को समाप्त होने वाले दोनों चांद्रमासों का नाम भादों होगा। इनमें से एक को प्रथम भाद्रपद तथा दूसरे को द्वितीय भादपद्र कहा जाएगा।
                     हिन्दू काल गणना पद्धति में अधिमास की व्यवस्था प्राचीन हिन्दू खगोल शास्त्रियों के ज्ञान की श्रेष्ठता को सिद्ध करता है। इस संबंध में प्रसिद्ध गणितज्ञ डाॅ. गोरख प्रसाद ने लिखा है -‘‘ कई बातें, जो अन्य देशों में मनमानी रीति से तय कर ली गई थीं, भारत में वैज्ञानिक सिद्धांतों पर निर्धारित की गई थीं। पंचांग वैज्ञानिक ढंग से बनता था जिसकी तुलना में यूरोपीय पंचांग भी अशिष्ट जान पड़ता है।‘‘

  • (मेरे एक शोध-पत्र का सारांश)

                                                                                                                                     -महेन्द्र वर्मा


36 comments:

  1. बहुत बढ़िया...
    अच्छी जानकारी...वो भी इतने संक्षिप्त रूप में..
    आभार आपका.

    अनु

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  2. भादों के बारे में जानने की उत्सुकता थी..
    इस वक्त यह बहुत चर्चा में है..
    आपके पोस्ट से बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त हुई..
    आभार सर जी...
    धन्यवाद...
    :-)

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  3. अच्छी जानकारी.

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  4. इससे प्रमाणित होता है कि भारत में चंद्र और सूर्य की गतियों में रखे कैलेंडर का निर्माण कितने वैज्ञानिक तरीके से किया गया था. जानकारी पूर्ण आलेख के लिए आभार महेंद्र जी.

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  5. प्रेम बनाये रखना चाहते हैं तो अविलम्ब पोस्ट को मेल करें संग्रह के लिए . इतनी खुबसूरत चीजें संग्रहणीय हैं साथ ही पाठशाला में सुनाने योग्य ,ज्यादा क्या लिखूं आप स्वयं समझदार है .पत्र को तार समझें

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  6. नई जानकारी दी है आपने |आभार |
    आशा

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  7. आपने सुन्दरता से समझाया है लेकिन इस अधिमास को लोग अशुभ क्यों मानते हैं ?

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  8. उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।।

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  9. महेंद्र सा,
    जब आपका आलेख पढ़ रहा था तो जो पहला विचार मस्तिष्क में आया वह यह था कि यह आलेख किसी शोध-पत्र सा प्रतीत होता है और अंत में जब देखा तो मुझे अपने आप पर हँसी आ गयी..
    सचमुच जितनी सरलता से आपने हमारे प्राचीन खगोलीय गणनाओं के माध्यम से अधिक-वर्ष तथा अन्य विषय को समेटा है, वह दुर्लभ है.
    (जब से दुबारा वापस आया हूँ, आपको ही खोज रहा था, आज आप मिले, प्रणाम स्वीकारें!)

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  10. महेंद्र जी,,,,भारत में चंद्र और सूर्य की गतियों के अनुसार गणनाकर मलमास माह बनाया जाता है

    दुर्लभ संग्रहणीय प्रस्तुति,,,,
    RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....

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  11. अमृता जी,
    प्राकृतिक घटनाओं में शुभ-अशुभ जैसा कुछ नहीं है। यह सब कर्मकांडी पुरोहितों के द्वारा बाद में जोड़ी गई बातें हैं।

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  12. अच्छी जानकारी....हमारी कई मान्यताएं वैज्ञानिक नियमों पर ही आधारित है....

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  13. सरल ढंग से गूढ़ लगने वाले इस विषय को समझाने के लिए आभार।

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  14. very informative post Mahendra ji. Thanks.

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  15. रोचक जानकारी ... अधिकतर लोगों को इसके बारे में इतना विस्तार से नहीं पता होगा ... अधिमास की इस जानकारी का शुक्रिया ...
    सार्गाह्र्भित पोस्ट ...

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  16. saargarbhit jaankaari ..aabhaar.

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  17. दुर्लभ जानकरी के लिए आभार

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  18. Very nice post.....
    Aabhar!
    Mere blog pr padhare.

    ***HAPPY INDEPENDENCE DAY***

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  19. शायद ये जानकारिया ही वैदिक वैज्ञानिक सिद्धांतों पर हमारी आस्था दृढ करती हैं.

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  20. इस तेरहवें मास के बारे में तरीके से अब ही दो साल पहले ही जाना समझा था, आपने और स्पष्टता से और सरलता से समझा दिया| बुकमार्क करने लायक पोस्ट है ये|
    आभार स्वीकारें|

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  21. सारगर्भित जानकारी...वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होते हैं हिन्दी कैलेन्डर !!

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  22. आप ने अपने महत्वपूर्ण शोध पत्र का सार विज्ञान जगत को मुहैया करवाया जो विज्ञान सम्मत है .खगोल विज्ञान एक प्रेक्षण आधारित विज्ञान रहा है जिसकी गणनाएं परिशुद्ध्तम रही आईं हैं चाहे वह किसी धूमकेतु के पुनर -आगमन की सूचना हो या कुछ और .धूमकेतु भी कुछ अल्पावधि के बाद लौट आतें हैं (short period comets )और कुछ दीर्घावधि के बात आतें हैं सूरज से मिलने .जो २०० साल या उससे अधिक अंतराल पर आतें हैं वह long period comets कहलातें हैं .ये तमाम गणनाएं परिशुद्ध समय मान लिए हुए हैं .शुक्रिया आपके इस शोध आलेख के महत्वपूर्ण अंशों के लिए .यौमे आज़ादी सालगिरह मुबारक.

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  23. इस तेरहवें मास के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी, पहली बार जाना आपके इस लेख के माध्यम से. खगोल विज्ञान सदैव मुझे रहस्यमय लगता है और रोचक भी. महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए धन्यवाद.

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  24. बहुत ज्ञानवर्धक आलेख...आभार

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  25. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है
    जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों
    में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम
    इसमें वर्जित है, पर हमने
    इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है,
    जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत
    वेद नायेर ने दिया है.

    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती
    है...
    Feel free to surf my web-site : संगीत

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  26. सारर्भि‍त.और बढि़या जानकारी..आभार..महेन्द्र जी..

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  27. बहुत ही उम्दा जानकारी इस शोधपत्र अंश के द्वारा |आभार |

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  28. शाश्वत शिल्प में सदैव दुर्लभ तथा अमूल्य ही प्राप्त होता है...........आभार .....

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  29. बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित जानकारी दी है.
    एक एक तथ्य को बहुत अच्छे से क्रमवार समझाया है आपने.

    आभार,महेंद्र जी.

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  30. आभार आपका...
    नयी जानकारी हमारे लिए !

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