ज्ञान हो गया फकीर

नैतिकता कुंद हुई
न्याय हुए भोथरे,
घूम रहे जीवन के
पहिए रामासरे।

भ्रष्टों के हाथों में
राजयोग की लकीर,
बुद्धि भीख माँग रही
ज्ञान हो गया फकीर।

घूम रहे बंदर हैं
हाथ लिए उस्तरे।

धुँधला-सा दिखता है
आशा का नव विहान,
क्षितिज पार तकते हैं
पथराए-से किसान।

सोना उपजाते हैं
लूट रहे दूसरे।
                                                                -महेन्द्र वर्मा

36 comments:

  1. देश के वर्तमान हालात की इससे बढ़िया काव्यात्मक व्याख्या और क्या होती? जितनी प्रशंसा करूँ कम रह जाएगी.

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  2. सम्सामायिक बहुत सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें...

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  3. भ्रष्टों के हाथों में
    राजयोग की लकीर,
    बुद्धि भीख माँग रही
    ज्ञान हो गया फकीर।
    हम भ्रष्टों के भ्रष्ट हमारे ,काहे मन अधीर ,
    जब वोट दिया उनको तो फिर कैसी पीर .
    भाई साहब देश की वर्तमान दुरावस्था पर बेहतरीन कायात्मक संवाद है यह पोस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शनिवार, 25 अगस्त 2012
    काइरोप्रेक्टिक में भी है समाधान साइटिका का ,दर्दे -ए -टांग काhttp://veerubhai1947.blogspot.com/

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  4. धुँधला-सा दिखता है
    आशा का नव विहान,
    क्षितिज पार तकते हैं
    पथराए-से किसान।

    सोना उपजाते हैं
    लूट रहे दूसरे।
    वर्तमान हालात की काव्यात्मक व्याख्या के लिए बधाई

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  5. आपका यह अन्दाज़ पहले भी देखा है.. धार वही है, शब्द भले कोमल हों.. भ्रष्टों के हाथों में राजयोग की रेखाएं नहीं वर्मा सर, हाथों में राजयोग की लकीरें ही भ्रष्टाचार की ओर ले जाती हैं आजकल.. Power (राजयोग की लकीरें)corrupts and absolute power corrupts absolutely!!

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  6. वाकई यह शाश्वत रहने वाला शिल्प है।..बधाई।

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  7. धुँधला-सा दिखता है
    आशा का नव विहान,

    वाकई धुँधला है देश का भविष्य...
    बेहतरीन रचना !!

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  8. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 27-08-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-984 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  9. आशा न छूटे. आशा छूट गई तो फिर सब हाथ पर हाथ धरे बैठ जायेंगे|

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  10. भ्रष्टों के हाथों में
    राजयोग की लकीर,
    बुद्धि भीख माँग रही
    ज्ञान हो गया फकीर...

    कलयुग के लक्षण हैं या कुंद हो गए हैं आज वीर ... बहुत ही सामयिक रचना ...

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  11. देश की आज की दशा पर सटीक प्रस्तुति

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  12. "मैं रोऊँ सागर के किनारे सागर हंसी उडाये" क्या कीजियेगा चहुँ ओर यही दृश्य है

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  13. शाश्वत शिल्प .बधाई

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  14. भ्रष्टों के हाथों में
    राजयोग की लकीर,
    बुद्धि भीख माँग रही
    ज्ञान हो गया फकीर।

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  15. भ्रष्टों के हाथों में
    राजयोग की लकीर,
    बुद्धि भीख माँग रही
    ज्ञान हो गया फकीर।

    Great expression..

    .

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  16. भ्रष्टों के हाथों में
    राजयोग की लकीर,
    बुद्धि भीख माँग रही
    ज्ञान हो गया फकीर।..बहुत ही प्रभावपूर्ण पंक्तियाँ आभार

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  17. बेहद सशक्‍त भाव लिए हुए उत्‍कृष्‍ट पोस्‍ट ...आभार

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  18. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो
    कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
    स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर
    शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
    पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी
    किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
    ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि
    प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    My homepage ; खरगोश

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  19. देश के हालात का सटीक चित्रण...
    क्षितिज पार तकते हैं
    पथराए-से किसान।

    बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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  20. भाई महेंद्र जी!
    आप mere blog pr पधारे आपका स्वागत और आभार. सम्मान एक ब्लोगर का होना ही चाहए और वह इसलिए नहीं की मैं स्वयं एक ब्लोगर हूँ इसलिए ऐसा कर रहा हूँ. यह सम्मान इस लिए भी आवश्यक है क्योकि यह उर्वरा शक्ति का कार्य करना है नए रचनाकारों के लिए. जो अच्छा और आदर्श सोचते हैं वे अच्छे है, लेकिन वे उनसे भी अधिक अच्छे हैं जो म केवल सोचते हैं अपितु लिपि बद्ध भी करते है. कार्य महत्पूर्ण है. कृति के बिना आदर्श वाक्य भी मूक मौन और निष्प्राण भी हैं. रचनाकार को मिलता तो कुछ नहीं, दूसरे लोग जब चार पैसे पैदा कर रहे होते हैं ये ब्लोग्गर के और मानिटर पर आख गडाए रहते हैं. समाज को बहुत कुछ देते हैं. यदि हम उन्हें यह सम्मान भी न दे सकें तो लगता है उनके साथ साथ अपने पर भी अर्याचार कर रहें हैं. मेरे लिए हर रचनाकार भले ही उसकी भाषा -शैली में वह बात न हो जो पेशेवर लोगों में होती है, लेकिन पेशेवर लोगों से वे लाखगुना अच्छे है.
    वे रचनाकार इसलिए हमारे श्रद्धा और प्रशंसा के अधिकारी हैं. उम्र चाहे उनकी छोटी ही क्यों न हो हमारे लिए एक मोडल हैं...आज नहीं हैं तो कल बन सकते है.. एक बात कहूँ जी केवल नाम और मान सम्मान के ब्लॉग पर आ रहा है वह टिक नहीं पायेगा अधिक दिनों तक यदि वह संवेदनशील, धैर्यवान और ऊर्जावान नहीं होगा. और यदि उसमे यह गुण हैं तो उसे सम्मान की आव्शाकता भी नहीं. हां उनका सम्मान करके प्रकारांतर सर हम अपना ही सम्मान करते है.

    भाई महेंद्र जी, मैंने आपका वह लेख, वह पीड़ा, आपके विचार आज पढ़ा चर्चा मंच पर जिसने आपने सम्मान को लेकर बहुत प्रश्न उठाये हैं. टिप्पणियों को भी मैंने पढ़ा है. कुल मिलाकर यह कहाँ चाहता हूँ कि क्या हम - आप यह सोचकर के पर बैठे थे कि हमें कोई सम्मानित कर..... सम्मान तो चरित्र, विचार, कृति और व्यक्त्तित्व का होता है. इब्मे त्रुटि न हो, क्या उचिं अट्टालिकाओं के नीव के पत्थर दीखते है? उन्हें खुश मीनार और बुर्ज को देख कर होती है.. मीनारें भी जानतीं हैं हमारा कोई मूल्य नहीं.. यदि नीव करवट ले ले तो हमारा क्या होने वाला है? अपने को ही समझने के लिए लिखा था एक बार.-

    पूछते हो चिन्तक को
    समाज से प्रतिदन में मिलता है क्या?
    परन्तु चिन्तक को कभी मान -सम्मान,
    मकान -दुकान की लिप्सा रही है क्या?
    पूछते हो चिन्तक भौतिक रूप में
    समाज को देता है क्या?
    अरे! चिन्तक ही समाज को
    बनाने सवारने और मिटाने की दावा है.
    यही विज्ञान रूप में सिद्धांत और संत रूप में दुआ है.

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  21. बहुत सुंदर रचना
    क्या कहने

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  22. भ्रष्टों के हाथों में
    राजयोग की लकीर,
    बुद्धि भीख माँग रही
    ज्ञान हो गया फकीर।

    ...वर्तमान हालात का बहुत सटीक चित्रण...

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  23. भ्रष्टों के हाथों में
    राजयोग की लकीर,
    बुद्धि भीख माँग रही
    ज्ञान हो गया फकीर।

    bahut hi marmik aur vartman parivesh ki sateek vyakhya .....abhar verma ji

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  24. क्षितिज पार तकते हैं
    पथराये से किसान
    उपजाते सोना हैं
    लूट रह दूसरे .

    यथार्थ ।

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  25. महेंद्र जी, ज्ञान वर्तमान में वाकई फ़कीर हो गया है क्योंकि सरकार हमें (जनता) को चूतिया समझती है... अपना काला सच छिपाने के लिए वो ऐसे ऐसे कुतर्क पेश कर देते हैं कि जैसे इस देश को कुछ पता ही नहीं...

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  26. शब्दों और भावों के विलक्षण प्रयोग ने शिल्प को शाश्वत कर दिया.यह चमत्कार आपकी कलम में ही नज़र आता है.

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  27. धुँधला-सा दिखता है
    आशा का नव विहान,
    क्षितिज पार तकते हैं
    पथराए-से किसान।

    सुंदर, संवेदनशील पंक्तियाँ.....

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  28. घूम रहे बंदर हैं
    हाथ लिए उस्तरे।

    कमाल की रचना ...
    आभार आपका !

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  29. धुँधला-सा दिखता है
    आशा का नव विहान,
    क्षितिज पार तकते हैं
    पथराए-से किसान.... संवेदनशील पंक्तियाँ!

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  30. ज्ञान हो गया फकीर
    एकदम सत्य

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  31. धुँधला-सा दिखता है
    आशा का नव विहान,
    क्षितिज पार तकते हैं
    पथराए-से किसान।
    sahi bat ....

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  32. shashwat-shilp.blogspot.in gives me so much pleasure

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