कुछ भी नहीं था
पर शून्य भी नहीं था
चीख रहे उद्गाता ।
जगती का रंगमंच
उर्जा का है प्रपंच,
अकुलाए-से लगते
आज महाभूत पंच,
दिक् ने ज्यों काल से
तोड़ लिया नाता।
न कोई तल होगा
न ही कोई शिखर,
अस्ति और नास्ति को
निगलेगा कृष्ण विवर,
तुम्ही जानते हो
न जानते विधाता।
-महेन्द्र वर्मा
पर शून्य भी नहीं था
चीख रहे उद्गाता ।
जगती का रंगमंच
उर्जा का है प्रपंच,
अकुलाए-से लगते
आज महाभूत पंच,
दिक् ने ज्यों काल से
तोड़ लिया नाता।
न कोई तल होगा
न ही कोई शिखर,
अस्ति और नास्ति को
निगलेगा कृष्ण विवर,
तुम्ही जानते हो
न जानते विधाता।
-महेन्द्र वर्मा
उद्गाता ने जो समझ लिया वह गा दिया. विधाता ने अभी गायन सीखना है. दार्शनिक भाव से भरी कविता.
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति आदरणीय
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुतिकरण !
ReplyDeleteहिंदीकुंज
बहुत शानदार और सार्थक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteविधि का विधान तो विधाता ही जनता है. बहुत गूढ़ भाव लिए सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
गहरा दर्शन समेटे भाव ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा।
ReplyDeletehttp://chlachitra.blogspot.in/
http://cricketluverr.blogspot.in/
न कोई तल होगा
ReplyDeleteन ही कोई शिखर,
अस्ति और नास्ति को
निगलेगा कृष्ण विवर,
...वाह...बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति..