कृष्ण विवर

कुछ भी नहीं था
पर शून्य भी नहीं था
चीख रहे उद्गाता ।

जगती का रंगमंच
उर्जा का है प्रपंच,
अकुलाए-से लगते
आज महाभूत पंच,

दिक् ने ज्यों काल से
तोड़ लिया नाता।

न कोई तल होगा
न ही कोई शिखर,
अस्ति और नास्ति को
निगलेगा कृष्ण विवर,

तुम्ही जानते हो
न जानते विधाता।

                    
-महेन्द्र वर्मा

9 comments:

  1. उद्गाता ने जो समझ लिया वह गा दिया. विधाता ने अभी गायन सीखना है. दार्शनिक भाव से भरी कविता.

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  2. सार्थक प्रस्तुति आदरणीय

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  3. सार्थक प्रस्तुतिकरण !
    हिंदीकुंज

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  4. बहुत शानदार और सार्थक प्रस्‍तुति के लिए धन्‍यवाद।

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  5. विधि का विधान तो विधाता ही जनता है. बहुत गूढ़ भाव लिए सुंदर प्रस्तुति.

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  6. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  7. गहरा दर्शन समेटे भाव ...

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  8. बहुत ही उम्दा।

    http://chlachitra.blogspot.in/
    http://cricketluverr.blogspot.in/

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  9. न कोई तल होगा
    न ही कोई शिखर,
    अस्ति और नास्ति को
    निगलेगा कृष्ण विवर,

    ...वाह...बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति..

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