मन के नयन खुले हैं जब तक,
सीखोगे तुम जीना तब तक ।
दीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।
शोर नहीं बस अनहद से ही,
सदा पहुँच जाएगी रब तक।
दिल दरिया तो छलकेगा ही,
तट भावों को रोके कब तक।
जान नहीं पाया हूँ कुछ भी,
जान यही पाया हूँ अब तक।
-महेन्द्र वर्मा
सीखोगे तुम जीना तब तक ।
दीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।
शोर नहीं बस अनहद से ही,
सदा पहुँच जाएगी रब तक।
दिल दरिया तो छलकेगा ही,
तट भावों को रोके कब तक।
जान नहीं पाया हूँ कुछ भी,
जान यही पाया हूँ अब तक।
-महेन्द्र वर्मा
मन के नयन खुले हैं जब तक,
ReplyDeleteसीखोगे तुम जीना तब तक ।
वाह.....बहुत ही सुंदर प्रस्तुति..
मज़ा आ गया पढ़कर .
ReplyDeleteकविता की सादगी में कविता के भावों का जादू छिपा है.
ReplyDeleteदीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।
जान नहीं पाया हूँ कुछ भी,
जान यही पाया हूँ अब तक।
ये पंक्तियाँ तो कमाल हैं.
बहुत ही सुंदर और प्रभावी रचना की प्रस्तुति। मुझे बहुत ही अच्छी लगी।
ReplyDeleteवर्मा सा.
ReplyDeleteसादगी के साथ दर्शन का पुट आपकी ही ग़ज़लों में दिखता है. सदा प्रेरित करने वाला. मक़्ते ने ग़ज़ब का प्रभाव पैदा किया है. जो समझ गया वो ज्ञानी! प्रणाम स्वीकारें हमारा!
बहुत सुंदर पंक्तियाँ .... अर्थपूर्ण
ReplyDeleteदीये को कुछ ऊपर रख दो,
ReplyDeleteपहुँचेगा उजियारा सब तक ।
>>>वाह...लाज़वाब...अद्भुत अभिव्यक्ति...
दीये को कुछ ऊपर रख दो,
ReplyDeleteपहुँचेगा उजियारा सब तक ।
हमेशा की तरह कमाल की ग़ज़ल आदरणीय
बहुत सुन्दर .... हिंदी के शेर सीधे दिल में उतर रहे हैं ...
ReplyDeleteकमाल की ग़ज़ल ...
बहुत सुन्दर .... हिंदी के शेर सीधे दिल में उतर रहे हैं ...
ReplyDeleteकमाल की ग़ज़ल ...
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
शोर नहीं बस अनहद से ही,
ReplyDeleteसदा पहुँच जाएगी रब तक।
दिल दरिया तो छलकेगा ही,
तट भावों को रोके कब तक। बहुत ही सुंदर रचना गहरा दर्शन समेटे। लाजवाब है हर ेक पंक्ति
दीये को कुछ ऊपर रख दो,
ReplyDeleteपहुँचेगा उजियारा सब तक ।
शोर नहीं बस अनहद से ही,
सदा पहुँच जाएगी रब तक।
बहुत ही सुंदर तत्वज्ञान। बहुत दिनों बाद आपको पढा, बेहद भाया।
शोर नही बस अनहद से ही......लाजवाब
ReplyDeleteNice information
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