तिमिर तिरोहित होगा निश्चित
दीये का संकल्प अटल है।
सत् के सम्मुख कब टिक पाया
घोर तमस की कुत्सित चाल,
ज्ञान रश्मियों से बिंध कर ही
हत होता अज्ञान कराल,
झंझावातों के झोंकों से
लौ का ऊर्ध्वगतित्व अचल है।
कितनी विपदाओं से निखरा
दीपक बन मिट्टी का कण.कण,
महत् सृष्टि का उत्स यही है
संदर्शित करता यह क्षण-क्षण,
साँझ समर्पित कर से द्योतित
सूरज का प्रतिरूप अनल है ।
शुभकामनाएँ
-महेन्द्र वर्मा
दीप उत्सव पर आपको शुभकामनाएँ. सुंदर कविता. ये पंक्तियाँ विशेषरूप से भा गईं.
ReplyDeleteझंझावातों के झोंकों से
लौ का ऊर्ध्वगतित्व अचल है।
दीप सूर्य का हाई तो लघु रूप है ... निश्चय ही अंधेरे का अंत होगा ...
ReplyDeleteदीया जले तो अँधेरा तो छंटेगा ही
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "कुम्हार की चाक, धनतेरस और शहीदों का दीया “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
दीप पर्व दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर , दीप पर्व मुबारक !
ReplyDeleteदीप उत्सव की शुभकामनाएँ !!!
ReplyDeleteHappy Diwali
ReplyDeleteशब्द शब्द में प्रकाश प्रवाहित हो रहा है... इस कविता के मर्म को आत्मसात करते हुए आपको भी दीवाली की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... Thanks for sharing this!! :) :)
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रकाश बिखेरती प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसत्य है कि उत्स यही है ।
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