दीये का संकल्प





तिमिर तिरोहित होगा निश्चित
दीये का संकल्प अटल है।

सत् के सम्मुख कब टिक पाया
घोर तमस की कुत्सित चाल,
ज्ञान रश्मियों से बिंध कर ही
हत होता अज्ञान कराल,

झंझावातों के झोंकों से
लौ का ऊर्ध्वगतित्व अचल है।

कितनी विपदाओं से निखरा
दीपक बन मिट्टी का कण.कण,
महत् सृष्टि का उत्स यही है
संदर्शित करता यह क्षण-क्षण,

साँझ समर्पित कर से द्योतित
सूरज का प्रतिरूप अनल है ।



शुभकामनाएँ

-महेन्द्र वर्मा




14 comments:

  1. दीप उत्सव पर आपको शुभकामनाएँ. सुंदर कविता. ये पंक्तियाँ विशेषरूप से भा गईं.
    झंझावातों के झोंकों से
    लौ का ऊर्ध्वगतित्व अचल है।

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  2. दीप सूर्य का हाई तो लघु रूप है ... निश्चय ही अंधेरे का अंत होगा ...

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  3. दीया जले तो अँधेरा तो छंटेगा ही
    बहुत सुन्दर
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं|


    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "कुम्हार की चाक, धनतेरस और शहीदों का दीया “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. दीप पर्व दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।

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  6. बहुत सुंदर , दीप पर्व मुबारक !

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  7. दीप उत्सव की शुभकामनाएँ !!!

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  8. शब्द शब्द में प्रकाश प्रवाहित हो रहा है... इस कविता के मर्म को आत्मसात करते हुए आपको भी दीवाली की शुभकामनाएँ!

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  9. बहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... Thanks for sharing this!! :) :)

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  10. बहुत ही सुंदर प्रकाश बिखेरती प्रस्तुति।

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  11. बहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  12. सत्य है कि उत्स यही है ।

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