शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

▼
Showing posts with label फागुनी दोहे. Show all posts
Showing posts with label फागुनी दोहे. Show all posts

फागुनी दोहे

›
फागुन आता देखकर, उपवन हुआ निहाल, अपने तन पर लेपता, केसर और गुलाल। तन हो गया पलाश-सा, मन महुए का फूल, फिर फगवा की धूम है, फिर रंगों की ...
44 comments:

फागुनी दोहे

›
देहरी पर आहट हुई, फागुन पूछे कौन। मैं बसंत तेरा सखा, तू क्यों अब तक मौन।। निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल। इतराता सा वह चला, लेकर र...
40 comments:
›
Home
View web version

About Me

My photo
महेन्‍द्र वर्मा
View my complete profile
Powered by Blogger.