शाश्वत शिल्प
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फागुनी दोहे
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फागुनी दोहे
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फागुनी दोहे
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फागुन आता देखकर, उपवन हुआ निहाल, अपने तन पर लेपता, केसर और गुलाल। तन हो गया पलाश-सा, मन महुए का फूल, फिर फगवा की धूम है, फिर रंगों की ...
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फागुनी दोहे
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देहरी पर आहट हुई, फागुन पूछे कौन। मैं बसंत तेरा सखा, तू क्यों अब तक मौन।। निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल। इतराता सा वह चला, लेकर र...
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