शाश्वत शिल्प
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वक़्त
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अपने हिस्से की बूँदें
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तूफ़ाँ बनकर वक़्त उमड़ उठता है अक्सर, खोना ही है जो कुछ भी मिलता है अक्सर । उसके माथे पर कुछ शिकनें-सी दिखती हैं, मेरी साँसों का हिसाब र...
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बेवजह
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मुश्किलों को क्यों हवा दी बेवजह, इल्म की क्यों बंदगी की बेवजह । हाथ में गहरी लकीरें दर्ज थीं, छल किया तक़़दीर ने ही...
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उम्र का समंदर
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दिन ढला तो साँझ का उजला सितारा मिल गया, रात की अब फ़िक्र किसको जब दियारा मिल गया । ज़िंदगी की डायरी में बस लकीरें थीं मगर, कु...
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ले जा गठरी बाँध
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वक़्त घूम कर चला गया है मेरे चारों ओर, बस उन क़दमों का नक़्शा है मेरे चारों ओर । सदियों का कोलाहल मन में गूँज रहा लेकिन, कितना सन्नाटा पसरा...
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