शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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तितलियों का ज़िक्र हो

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प्यार का, अहसास का, ख़ामोशियों का ज़िक्र हो, महफ़िलों में अब ज़रा तन्हाइयों का ज़िक्र हो। मीर, ग़ालिब की ग़ज़ल या, जिगर के कुछ शे‘र ह...
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जो भी होगा अच्छा होगा

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जो  भी   होगा  अच्छा   होगा, फिर क्यूँ सोचें कल क्या होगा । भले  राह  में  धूप  तपेगी, मंज़िल पर तो साया होगा । दिन को ठोकर खाने वाले, ...
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शीत - सात छवियाँ

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धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव, ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव । रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद, पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर...
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महेन्‍द्र वर्मा
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