शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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यूँ ही
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यादों के कुछ ताने-बाने और अकेलापन, यूँ ही बीत रहीं दिन-रातें और अकेलापन। ख़ुद से ख़ुद की बातें शायद ख़त्म कभी न हों, कुछ कड़वी कुछ मीठी याद...
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अब न कहना
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सबने उतना पाया जिसका हिस्सा जितना, क्या मालूम, मेरे भीतर कुछ मेरा है या सब उसका, क्या मालूम । कि़स्मत का आईना बेशक होता है बेहद नाज़ुक, ...
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ले जा गठरी बाँध
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वक़्त घूम कर चला गया है मेरे चारों ओर, बस उन क़दमों का नक़्शा है मेरे चारों ओर । सदियों का कोलाहल मन में गूँज रहा लेकिन, कितना सन्नाटा पसरा...
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शीत - सात छवियाँ
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धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव, ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव । रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद, पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर...
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उजाले का स्रोत
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सदियों से ‘अँधेरे’ में रहने के कारण ‘वे’ अँधेरी गुफाओं में रहने वाली मछलियों की तरह अपनी ‘दृष्टि’ खो चुके हैं । उनकी देह में अँधेरे से ग्रस...
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सूर्य के टुकड़े
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छंदों के तेवर बिगड़े हैं, गीत-ग़ज़ल में भी झगड़े हैं। राजनीति हो या मज़हब हो, झूठ के झंडे लिए खड़े हैं । बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन, जि़ंदा ...
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मौसम की मक्कारी
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हरियाली ने कहा देख लो मेरी यारी कुछ दिन और, सहना होगा फिर उस मौसम की मक्कारी कुछ दिन और । बाँस थामकर नाच रहा था छोटा बच्चा रस्सी पर, दिख...
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जाने किसकी नज़र लग गई
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कभी छलकती रहती थीं बूँदें अमृत की धरती पर, दहशत का जंगल उग आया कैसे अपनी धरती पर । सभी मुसाफिर इस सराय के आते-जाते रहते हैं, आस नहीं...
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