शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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अपने हिस्से की बूँदें

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तूफ़ाँ बनकर वक़्त उमड़ उठता है अक्सर, खोना ही है जो कुछ भी मिलता है अक्सर । उसके माथे पर कुछ शिकनें-सी दिखती हैं, मेरी  साँसों  का  हिसाब र...
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गीत बसंत का

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सुरभित मंद समीर ले                                                  आया है मधुमास। पुष्प रँगीले हो गए किसलय करें किलोल, माघ करे जादूगरी अपन...
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नवगीत

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कुछ दाने , कुछ मिट्टी किंचित सावन शेष रहे । सूरज अवसादित हो बैठा ऋतुओं में अनबन , नदिया पर्वत सागर रूठे पवनों में जकड़न , जो ह...
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दीये का संकल्प

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तिमिर तिरोहित होगा निश्चित दीये का संकल्प अटल है। सत् के सम्मुख कब टिक पाया घोर तमस की कुत्सित चाल, ज्ञान रश्मियों से बिंध कर ही...
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महेन्‍द्र वर्मा
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