शाश्वत शिल्प
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सुख-दुख से परे
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एकमात्र सत्य हो तुम ही तुम्हारे अतिरिक्त नहीं है अस्तित्व किसी और का सृजन और संहार तुम्ही से है फिर भी कोई जानना नहीं चाहता तुम्हारे बारे ...
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अंजुरी भर सुख
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तुम जब भी आते हो मुस्कराते हुए आते हो, कौन जान सका है इस मुस्कान के पीछे छिपी कुटिलता को ? हर बार तुम दे जाते हो करोड़ों आंखों...
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दो कविताएँ
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एक उस दिन आईने में मेरा प्रतिबिंब कुछ ज्यादा ही अपना-सा लगा मैंने उससे कहा- तुम ही हो मेरे सुख-दुख के साथी मेरे अंतरंग मित्र ! प...
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