शाश्वत शिल्प
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क्षणिकाएँ
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क्षणिकाएँ
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सफेद बादलों की लकीर
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1. कितनी धुँधली-सी हो गई हैं छवियाँ या आँखों में भर आया है कुछ शायद अतीत की नदी में गोता लगा रही हैं आँखें ! 2. विवेक ने कहा- हाँ, यही...
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दो कविताएँ
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1. मैं ही सही हूँ शेष सब गलत हैं ऐसा तो सभी सोचते हैं लेकिन ऐसा सोचने वाले कुछ लोग अनुभव करते हैं अतिशय दुख का क्योंकि शेष सब लोग लगे हुए...
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क्षणिकाएं
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1. घटनाएं भविष्य के अनंत आकाश से एक-एक कर उतरती हैं और क्षण भर में घटित होकर समा जाती हैं अतीत के महापाताल में बताओ भला कहां है...
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क्षणिकाएँ
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1. हम तो अक्षर हैं निर्गुण-निरर्थक तुम्हारी जिह्वा के खिलौने अब यह तुम पर है कि तुम हमसे गालियाँ बनाओ या गीत 2. मैंने तो...
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