शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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गीत बसंत का
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सुरभित मंद समीर ले आया है मधुमास। पुष्प रंगीले हो गए किसलय करें किलोल, ...
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सपना
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ना सच है ना झूठा है, जीवन केवल सपना है। कुछ सोए कुछ जाग रहे, अपनी-अपनी दुनिया है। सत्य बसा अंतस्तल में, बाहर मात्र छलावा है। दुख न...
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होनहार बिरवान के होत चीकने पात
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कवि वृंद ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात‘ और ‘तेते पांव पसारिए, जेते लंबी सौर‘ जैसी लोकोक्तियों के जनक प्रसिद्ध जनकवि वृंद का जन्म सन् ...
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ग़ज़ल
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रोज़-रोज़ यूं बुतख़ाने न जाया कर, दिल में पहले बीज नेह के बोया कर। वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से, ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर। तू...
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अंजुरी भर सुख
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तुम जब भी आते हो मुस्कराते हुए आते हो, कौन जान सका है इस मुस्कान के पीछे छिपी कुटिलता को ? हर बार तुम दे जाते हो करोड़ों आंखों...
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ग़ज़ल
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भीड़ में अस्तित्व अपना खोजते देखे गए, मौन थे जो आज तक वे चीखते देखे गए। आधुनिकता के नशे में रात दिन जो चूर थे, ऊब कर फिर जि़ंदगी से भ...
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दोहे
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समर भूमि संसार है, विजयी होते वीर, मारे जाते हैं सदा, निर्बल-कायर-भीर। मुँह पर ढकना दीजिए, वक्ता होए शांत, मन के मुँह को ढाँकना, कारज ...
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क्षणिकाएँ
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1. हम तो अक्षर हैं निर्गुण-निरर्थक तुम्हारी जिह्वा के खिलौने अब यह तुम पर है कि तुम हमसे गालियाँ बनाओ या गीत 2. मैंने तो...
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