शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
(Move to ...)
Home
▼
ग़ज़ल: पलकों के लिए
›
आँख में तिरती रही उम्मीद सपनों के लिए, गीत कोई गुनगुनाओ आज पलकों के लिए। आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई, धूप के टुकड़े कहीं ...
43 comments:
ग़ज़ल
›
अंधकार को डरा रौशनी तलाश कर, ‘मावसों की रात में चांदनी तलाश कर। बियाबान चीखती खामोशियों का ढेर है, जल जहां-जहां मिले जि़ंदगी तलाश कर।...
45 comments:
नवगीत
›
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है, जीवन से कुछ रीत रहा है। सहमे-सहमे से सपने हैं, आशा के अपरूप, ...
40 comments:
फागुनी दोहे
›
फागुन आता देखकर, उपवन हुआ निहाल, अपने तन पर लेपता, केसर और गुलाल। तन हो गया पलाश-सा, मन महुए का फूल, फिर फगवा की धूम है, फिर रंगों की ...
44 comments:
गीतिका
›
यादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है, ख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है। जाने कैसी चोट लगी है अंतःतल में, टूटे दिल को आस बंधाना बह...
47 comments:
दर्शन और गणित का संबंध
›
मानवीय ज्ञान के क्षेत्र में दो शास्त्र- गणित और दर्शन- ऐसे विषय हैं जिनका स्पष्ट संबंध मस्तिष्क की चिंतन क्षमता और तर्क से है। मानव जा...
23 comments:
क्षणिकाएं
›
1. घटनाएं भविष्य के अनंत आकाश से एक-एक कर उतरती हैं और क्षण भर में घटित होकर समा जाती हैं अतीत के महापाताल में बताओ भला कहां है...
37 comments:
दोहे : अवसर का उपयोग
›
आशा ऐसी वस्तु है, मिलती सबके पास, पास न हो कुछ भी मगर, हरदम रहती आस। आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में हैं व्यर्थ, एक वर्ष उद्यम भरा, महती इ...
40 comments:
‹
›
Home
View web version