शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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ग़ज़ल: पलकों के लिए

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आँख में तिरती रही उम्मीद सपनों के लिए, गीत कोई गुनगुनाओ आज पलकों के लिए। आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई, धूप के टुकड़े कहीं ...
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ग़ज़ल

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अंधकार को डरा रौशनी तलाश कर, ‘मावसों की रात में चांदनी तलाश कर। बियाबान चीखती खामोशियों का ढेर है, जल जहां-जहां मिले जि़ंदगी तलाश कर।...
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नवगीत

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पल-पल छिन-छिन बीत रहा है, जीवन से कुछ रीत रहा है।                     सहमे-सहमे से सपने हैं,                     आशा के अपरूप,       ...
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फागुनी दोहे

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फागुन आता देखकर, उपवन हुआ निहाल, अपने तन पर लेपता, केसर और गुलाल। तन हो गया पलाश-सा, मन महुए का फूल, फिर फगवा की धूम है, फिर रंगों की ...
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गीतिका

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यादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है, ख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है। जाने कैसी चोट लगी है अंतःतल में, टूटे दिल को आस बंधाना बह...
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दर्शन और गणित का संबंध

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मानवीय ज्ञान के क्षेत्र में दो शास्त्र- गणित और दर्शन- ऐसे विषय हैं जिनका स्पष्ट संबंध मस्तिष्क की चिंतन क्षमता और तर्क से है। मानव जा...
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क्षणिकाएं

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1. घटनाएं भविष्य के अनंत आकाश से एक-एक कर उतरती हैं और क्षण भर में घटित होकर समा जाती हैं अतीत के महापाताल में बताओ भला कहां है...
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दोहे : अवसर का उपयोग

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आशा ऐसी वस्तु है, मिलती सबके पास, पास न हो कुछ भी मगर, हरदम रहती आस। आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में हैं व्यर्थ, एक वर्ष उद्यम भरा, महती इ...
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महेन्‍द्र वर्मा
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