शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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घर की चौखट
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गूँज उठा पैग़ाम आखि़री, चलो ज़रा, ‘जो बोया था काट रहा हूँ, रुको ज़रा।’ हर बचपन में छुपे हुए हैं हुनर बहुत, आहिस्ता से चाबी उनमें भरो ज़रा। ...
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मंजर कैसे-कैसे
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मंजर कैसे-कैसे देखे, कुछ हँस के कुछ रो के देखे। बड़ी भीड़ थी, सुकरातों के- ऐब ढूंढते-फिरते देखे। घर के भीतर घर, न जाने...
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श्रद्धा और तर्क
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श्रद्धा किसी व्यक्ति के प्रति भी हो सकती है और किसी अलौकिक शक्ति के प्रति भी। दोनों में सम्मान और विश्वास का भाव निहित होता है। किसी व्य...
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ख़ामोशी
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तन्हाई में जिनको सुकून-सा मिलता है, आईना भी उनको दुश्मन-सा लगता है। दिल में उसके चाहे जो हो तुझको क्या, होठों से तो तेरा नाम जपा करता ह...
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सद्गुण ही पर्याप्त है
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पुष्पगंध विसरण करे, चले पवन जिस छोर, किंतु कीर्ति गुणवान की, फैले चारों ओर । ग्रंथ श्रेष्ठ गुरु जानिए, हमसे कुछ नहिं लेत, बिना क्र...
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बुरा लग रहा था
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कोई शख़्स ग़म से घिरा लग रहा था, हुआ जख़्म उसका हरा लग रहा था। मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी, किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था। ये ...
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तेरा-मेरा-सब का
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सबसे ज्यादा अपना है, वह जो मेरा साया है। मन की आंखें खुल जातीं, दिल में अगर उजाला है। कुछ आखर कुछ मौन बचा, यह मेरा सरमाया है। दुन...
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ग़ज़ल
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उतना ही सबको मिलना है, जिसके हिस्से में जितना है। क्यूं ईमान सजा कर रक्खा, उसको तो यूं ही लुटना है। ढोते रहें सलीबें अपनी, जिन...
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